कोरोना बन गया आपदा तीर्थ यात्राओं के लिए
मनोज वार्ष्णेय
सतयुग से चली आ रहीं उत्तराखंड के चार धामों की तीर्थ यात्रा को आरंभ हुए एक महीना हो चुका है। बाबा बद्रीविशाल के पट खुले हुए भी 15 दिन हो चुके हैं,लेकिन यहां के चारों धामों में एक भी भक्त प्रभु के दर्शन नहीं कर पाया है। भक्तों की बात छोड़ दें,यहां के पंडे-पुजारी भी दर्शनों को तरस गए हैं। केदारनाथ के पट 29अप्रैल को,गंगोत्री और यमनोत्री के पट 26 अप्रैल को और बद्रीनाथ के पट 15 मई को खुल गए थे।
आशा थी कि कोरोना का कहर मई के दूसरे हफ्ते तक कुछ कम होगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अभी लॉकडाउन है और इस दौरान यहां पर भक्तों के आने पर पूरी तरह रोक है। इन तीर्थ धामों में सिर्फ वही पुजारी पूजा कर पा रहे हैं जिन्हें सरकार ने पूजा की अनुमति दी है और पूजा के लिए बनाए गए मानक पूरे कर रहे हैं। इन धामों की यात्रा पहले कभी नहीं रोकी गई। यहां तक की 2013 में केदारनाथ में आई भीषण आपदा के बाद भी यह यात्रा निरंतर जारी रही। स्थानीय पुजारियों और निवासियों को याद नहीं आता कि कभी इस तरह से भक्तों या पंडे-पुजारियों को यहां आने से रोका गया हो। करीब सौ साल पहले जरूर इस यात्रा के रोके जाने की बात वह बताते हैं,लेकिन जिस प्रकार की रोक इस वर्ष लगी है,वैसी नहीं थी। इतना ही नहीं कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी इस बार नहीं होगी तथा बाबा अमरनाथ की यात्रा पर भी संशय के बादल हैं।
उत्तराखंड की इन चारों धामों की यात्रा ऐसे तो सतयुग से ही होना बताया जाता है,लेकिन आदि गुरू शंकराचार्य के द्वारा इन्हें प्रचलन में लाया जाना अधिक स्वीकार्य है। हर वर्ष इन यात्राओं पर आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। सरकार इस बात को ध्यान में रखकर ऑलवेदर सड़क का निर्माण भी करा रही है। खैर,इस वर्ष मार्च में जब कोरोना वायरस ने अपना प्रकोप दिखाना आरंभ किया तो माना जा रहा था कि यह गर्मी में समाप्त हो जाएगा। सरकार ने इन यात्राओं की तारीख भी इसी सोच से थोड़ी सी खिसका दी थी। अब जब पट खुले हुए एक माह हो चुका है और उत्तराखंड में कोरोना दिन-प्रतिदिन भयावह होता जा रहा है तो इस बात की संभावना है कि इस यात्रा सीजन में शायद ही भक्त दर्शनों के लाभ ले पाएं। विशेषज्ञ बताते हैं कि जून में मानसून आ जाता है और फिर बारिश के दिनों में तो यहां की यात्रा रुक-रुक कर ही होती है। मानसून के बाद बच्चों की पढ़ाई और ग्रीष्मकालीन अवकाश की समस्या होगी, इस कारण यात्रा के होने की संभावना न के बराबर है।
गत वर्षों में वहां पर आए भक्तों की संख्या पर एक नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि उत्तराखंड के चार धाम तथा हेमकुंड यात्रा में गत वर्ष पहले तीस दिनों में वर्ष 2018 के मुकाबले 6.4 लाख यात्री अधिक आए थे। 2019 में यह संख्या 17,15413 थी तो वर्ष 2018 में 11,10777 थी। वर्ष 2019 में 37,64185 यात्रियों ने चारधाम की यात्रा की थी जो एक नया रिकॉर्ड था। लेकिन इस वर्षअभी तक इन सभी तीर्थ स्थानों पर भक्तों की संख्या जीरो है । हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन क्षेत्रों के ग्रामीण भी अपने ग्रीष्मकालीन घरों में नहीं आए हैं। हां,माणा या उसके आसपास के कुछ ग्रामीण जरूर आए हैं जो आलू आदि की फसल बोने की तैयारी में हैं।
आशा की किरण बाकी है
बद्रीनाथ के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल इस बात से इंकार नहीं करते की यात्रा होने की संभावना अभी बाकी है। वे कहते हैं-21 जून को होने वाले सूर्य ग्रहण के बाद सब ठीक हो जाएगा। हाल-फिलहाल जोशीमठ से बद्रीनाथ जाने के लिए सारे रास्ते बंद हैं और आधा दर्जन से अधिक स्थानों पर बैरिकेटिंग लगी हुई है,जिसे पार करना संभव ही नहीं है। दूसरी तरफ देखें तो इस यात्रा के न होने से कम से कम पांच हजार पंडे-पुजारी और दूसरे पूजा-अर्चना करने वालों की रोजी-रोटी संकट में आ गई है। इस वर्ष भक्तों के न आने से मंदिर में चढ़ावा भी जीरो है और ऑनलाइन पूजा भी बंद ही है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि जो भक्त पूजा कराना चाहते हैं वह चाहते हैं कि उन्हें लाइव आरती दिखाई जाए। जबकि बद्री केदार समिति केवल पूजा के लिए दान स्वीकार करने की बात कहती रही है। इन चार धामों की यात्रा से करीब 12 से 13 हजार करोड़ रुपए का कारोबार हर वर्ष होता रहा है जो इस बार पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। यहां पर यह बात भी ध्यान देने वाली है कि जो लोग दान-दक्षिणा में आगे रहते हैं उन्होंने कोरोना के पीड़ितों की मदद के लिए उस धनराशि को खर्च कर दिया है। जिससे अब यहां पर दान आने में भी परेशानी होता तय है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा
हिंदुओं की सबसे कठिन तीर्थ यात्रा कैलाश मानसरोवर की यात्रा इस वर्ष नहीं होगी। इस यात्रा के लिए भक्तों को पूरे वर्षभर तैयारी करनी पड़ती है और उनकी साध होती है कि वह जीवन में कम से कम शिव के इस सबसे बड़े धाम के दर्शन अवश्य करें। कोरोना ने उनकी इस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया है। राजस्थान में वर्ष 2007 से इस यात्रा से जुड़े राजेन्द्र अग्रवाल बताते हैं-इस वर्ष इस यात्रा के होने की संभावना खत्म सी है। हमने गत वर्ष यहां से 168 यात्रियों को मानसरोवर की यात्रा करवाई थी और इस बार करीब 250 भक्तों को भेजे जाने का विचार था। ऐसे भी अब यात्रा मार्ग पहले की तुलना में काफी सरल हो गया है और उतनी परेशानी इस वर्ष नहीं होती जितनी कि गत वर्ष हुई थी। अग्रवाल के अनुसार रजिस्ट्रेशन आदि की लंबी प्रक्रिया के बाद ही इस यात्रा पर कोई जा सकता था, लेकिन अब इन औपचारिकताओं और स्वास्थ्य संबंधी तैयारी के लिए समय बहुत कम है,इसलिए यात्रा की संभावना न के बरावर ही है। दूसरी तरफ चीन के साथ हो रही तनातनी भी इस यात्रा के न होने का एक कारण बन चुकी है।
राजस्थान पर बड़ी मार
राजस्थान से हर वर्ष हजारों यात्री यहां दर्शनों के लिए जाते हैं,लेकिन इस वर्ष की यात्रा के एक महीने के बाद भी एक भी यात्री यहां से नहीं गया है। जयशिवशंकर तीर्थ यात्रा के वीरेन्द्र चतुर्वेदी बताते हैं- एक महीने में करीब 15 हजार यात्री तो जयपुर से चले ही जाते हैं। पूरे राजस्थान में यह संख्या कम से कम पचास हजार होगी। उनके अनुसार इस यात्रा के न होने से कम से कम एक लाख लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया है। सिर्फ जयपुर में ही कम से कम 5 हजार लोग प्रभावित हुए हैं। यात्रा से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जुड़े लोगों के लिए अब अगली यात्रा ही सहारा नजर आ रही है। अनुमानित 25 करोड़ का यात्रा करोबार भी प्रभावित हुआ है।
सकारात्मक पक्ष भी है यात्रा का
भले ही यात्रा न हो रही हो,लेकिन अमरनाथ जी में शिवलिंग गत वर्षों की तुलना में बेहतर बताया जा रहा है तथा कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए जिस प्रकार से यात्रियों को पैदल चलना पड़ता था वह दूरी भी अब भारत की ओर से काफी कम हो गई है। यहां पर सड़क निर्माण के कारण भक्त गाड़ियों से अधिक दूरी तर कर पाएंगे। इससे यात्रा में लगने वाले समय की बचत भी होगी। रही बात चारधामों की तो ऑलवेदर रोड के कारण यहां की काफी सड़क चौड़ी हो चुकी है और कई स्थानों पर सुरंग आदि तैयार हैं।(photo courtsy atul sati joshimath)