छात्रवृत्ति घोटाला में हरिद्वार के कई कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले कॉलेज मालिकों और अधिकारियों को जेल यात्रा कराके जीरो टोलरेंस का दम भरने वाली प्रचंड बहुमत की सरकार का दम अपने विधायकों के गिरेबान तक पहुंचने मे फूलने लगा है। सरकार की ढिलाई से हैरत मे आई ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों ने दखल देना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस पर गरम , अपनों पर नरम
यूं तो छात्रवृत्ति घोटाले पर सरकार की कलाई तभी खुल गई थी, जब भाजपा के वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर के बेटे के नाम से चल रहे तीन कॉलेजों में छात्रवृत्ति घोटाला सामने आने पर उन्हें जेल जाने से बचाने के लिए हाई कोर्ट में सरकार ने जानबूझकर अपनी पैरवी कमजोर कर दी और हरबंस कपूर के बेटे को गिरफ्तारी से राहत मिल गई। कपूर के बेटे के तीन कॉलेजों के खिलाफ मुकदमा भी सरकार ने 1 साल से लटका रखा था।
यह मुकदमा तक हाईकोर्ट के आदेश के बाद दर्ज हो पाया था। कपूर भाजपा के 8 बार विधायक रह चुके हैं। वह मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष भी रहे।
21 जनवरी को सुनवाई के बाद सरकार से कोर्ट ने 11 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा था। उसके बाद क्या हुआ, यह सार्वजनिक नहीं हो पाया।
भाजपा विधायक कुलदीप का कालेज
इसके बाद दूसरा नंबर भाजपा के दूसरे विधायक कुलदीप कुमार के कॉलेज का था जब से जांच की आंच भाजपाई विधायकों के कॉलेजों तक पहुंची है, तब से सरकार एसआईटी के चूल्हे से लकड़ियां पीछे लकड़ियां पीछे खिसकाने में लगी है।
इसके अलावा अन्य भाजपा नेताओं से जुड़े कालेजों के खिलाफ भी गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई न होने पर सब कुछ देख रही पब्लिक भी हैरत मे है।
विकास नगर के भाजपा विधायक कुलदीप कुमार के कॉलेज का नाम एसबी कॉलेज ऑफ एजुकेशन है लेकिन यहां के छात्रवृत्ति घोटाले पर क्या कार्यवाही की गई किसी को कुछ पता नहीं।
कांग्रेस नेता पर गरम
जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और रुड़की के पूर्व विधायक सुरेश चंद जैन के भतीजे चैरब जैन को एसआईटी ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया था। उनके कॉलेज फोनिक्स ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन पर 25 करोड़ से अधिक की छात्रवृत्ति घोटाले का आरोप था। सुरेश चंद्र जैन इससे पहले भाजपा से भी विधायक रह चुके हैं।
हालात को देखते हुए लगता है कि भाजपा में ही रहते तो संभवतः गिरफ्तारी से बच सकते थे।
उत्तराखंड सरकार के इस कारनामे से केंद्रीय जांच एजेंसियां भी हैरत में हैं। इसी को देखते हुए अब प्रवर्तन निदेशालय ने छात्रवृत्ति घोटाले में दखल देने का मन बना दिया है। सूत्रों के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने कालेजों से छात्रवृत्ति घोटालों से संबंधित दस्तावेज तलब किए हैं।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने छात्रवृत्ति घोटाले पर सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा है कि क्यों न इसकी जांच सीबीआई से करा दी जाए।
गौरतलब है कि छात्रवृत्ति घोटाले की जांच रविंद्र जुगरान तथा चंद्रशेखर करगेती आदि के प्रयासों से ही हाईकोर्ट ने शुरू कराई थी।
बल्कि हकीकत यह है कि सरकार ने छात्रवृत्ति घोटाले की जांच को दबाने का हर संभव प्रयास किया हाईकोर्ट के आदेश पर बनी एसआईटी ने छात्रवृत्ति घोटाले की जांच तो शुरू कर दी लेकिन यह केवल हरिद्वार में ही सीमित रखी थी।
उसके बाद एक जनहित याचिका हाई कोर्ट में फिर से डाली गई जिसके बाद सरकार को उत्तराखंड के सभी जिलों में छात्रवृत्ति घोटाले की जांच करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बावजूद सरकार ने छात्रवृत्ति घोटाले की जांच को केवल कांग्रेस के कार्यकाल तक ही सीमित रखा है। जबकि उससे पहले की भाजपा सरकार मे भी छात्रवृत्ति घोटाला हुआ था लेकिन उसकी कोई जांच नहीं हो रही।
घोटालों की जांच में सरकार का यह भेदभाव सिर्फ कांग्रेसी नेताओं के बैकग्राउंड वाले कॉलेजों तक ही सीमित नही रहा बल्कि समाज कल्याण अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करते समय भी परिलक्षित हुआ है।
अधिकारियों पर भी पिक एंड चूज
तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी हरिद्वार गीताराम नौटियाल के भाई कांग्रेस नेता है और वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं।
सरकार ने उनको तो गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया लेकिन भाजपा विधायकों के करीबी अधिकारियों के खिलाफ दर्जनों घोटालों में मुकदमा दर्ज होने के बावजूद उनका अभी तक बाल बांका नहीं हुआ है।
केंद्रीय जांच एजेंसियों का दखल
गौरतलब है कि 3 सितंबर को छात्रवृत्ति घोटाले पर देहरादून के भाजपा नेता रविंद्र जुगरान की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट में सरकार से पूछा था कि क्यों ना घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए।
श्री जुगरान ने कहा था कि वर्ष 2003 से अब तक अनुसूचित जाति जनजाति के छात्रों का छात्रवृत्ति का पैसा नहीं दिया गया है। इससे लगता है कि अब तक विभाग की ओर से करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ है।
हाईकोर्ट ने इस बात को लेकर नाराजगी जताई थी कि वर्ष 2017 में घोटालों की जांच के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने एसआईटी गठित की थी और उसे 3 महीने में जांच पूरी करने के लिए कहा गया था लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी।
अब प्रवर्तन निदेशालय एजेंसियों के भी दखल देने के बाद भाजपा नेताओं से जुड़े कॉलेजों की मुश्किलें भी शुरू हो सकती है।