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RTI खुलासा: UKPSC समीक्षा अधिकारी परीक्षा में मूल्यांकन धांधली, न्याय की तलाश में भटक रहा अभ्यर्थी

देहरादून।
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) द्वारा आयोजित समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी भर्ती परीक्षा (मुख्य)-2023 के मूल्यांकन में भारी अनियमितता सामने आई है। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत प्राप्त अभिलेखों से पता चला है कि एक अभ्यर्थी को पहले एक प्रश्न में 23 अंक दिए गए, लेकिन बाद में इन्हें बिना किसी स्पष्ट टिप्पणी के घटाकर 15 अंक कर दिया गया।

यह मामला देहरादून निवासी अभ्यर्थी आयुष का है, जो इस परीक्षा में मात्र चार अंकों के अंतर से चयन सूची से बाहर हो गए। उन्होंने आयोग से RTI के माध्यम से अपनी और अन्य चयनित अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाएं प्राप्त कीं। प्राप्त निबंध पेपर में प्रश्न संख्या दो के उत्तर पर उन्हें पहले 35 में से 23 अंक दिए गए थे, लेकिन बाद में ये अंक काटकर 15 कर दिए गए, जबकि कॉपी पर कहीं भी संशोधन का कारण दर्ज नहीं किया गया।

📌 अन्य विषयों में भी पाई गईं गंभीर गड़बड़ियां

आयुष ने दावा किया है कि हिंदी कंपोजीशन विषय में प्रश्न संख्या चार और पांच के हिंदी-अंग्रेज़ी रूपांतरण में भी मूल्यांकन की त्रुटियां हैं।

  • ‘हलफनामा’ जैसे शब्द के सही उत्तर पर उन्हें शून्य अंक दिए गए, जबकि एक अन्य अभ्यर्थी को उसी उत्तर पर एक अंक दिया गया।
  • आयुष का यह भी कहना है कि जिन उत्तरों को गलत बताया गया है, वह ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में सही रूप से परिभाषित हैं।

📌 आयोग से शिकायत, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं

आयुष के पिता राजेंद्र प्रसाद बेलवाल, जो स्वयं एक शिक्षक हैं, उन्होंने इस मामले को लेकर आयोग के सचिव गिरधारी सिंह रावत से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की और शिकायत दर्ज कराई। सचिव द्वारा उन्हें कार्रवाई का आश्वासन दिया गया, लेकिन अब तक किसी भी स्तर पर पुनर्मूल्यांकन या स्वतंत्र विशेषज्ञ से जांच की पहल नहीं की गई है।

📌 पारदर्शिता पर उठे सवाल

इस मामले ने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की मूल्यांकन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

  • जब एक ही प्रश्न पर अलग-अलग अभ्यर्थियों को अलग अंक मिल रहे हैं
  • और बिना कारण अंक काटे जा रहे हैं,
    तो निष्पक्षता और समानता के सिद्धांत पर यह सीधा प्रहार है।

इस एक प्रकरण से स्पष्ट है कि उत्तराखंड की प्रतिष्ठित परीक्षाओं में मूल्यांकन की गुणवत्ता और पारदर्शिता की पुनः समीक्षा आवश्यक है। यदि मूल्यांकन में इस प्रकार की चूक होती रही, तो यह न केवल मेधावी छात्रों का हक छीनने वाला होगा, बल्कि आयोग की साख को भी गहरी चोट पहुंचाएगा।

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