अभागे पिता के अपने प्रिय पुत्र की मौत पर दो शब्द!
दीपराज तुम किस द्वीप की ओर चले गए…..
रोज तेरे सपनो में आगे की परछाई देखता हूँ……
नयी दुनियां, नया समाज बनाने के लिए फिर आवोंगे क्या तुम दीपराज!
मेरे प्रिय पुत्र व दोस्त दीपराज आज इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसके सपने आज भी मेरे आंखो में तैर रहे है। दीपराज के दोस्ती तोड़ने के दसवें दिन कुछ लिखने का साहस कर रहा हूँ। दीपराज इस दुनिया को बदलना चाहता था, समाज को नये आयामो, संस्कारो के साथ खड़ा देखना चाहता था,सामाजिक बुराईयों का अंत चाहता था,घर से जाने से पहले 42 लाइन लिख कर हमारे लिए, समाज के लिए छोड़कर चले गया। जिसमें ऐसा आईना दिखाकर रवाना हुआ है कि चारो तरफ रोज मुझे एक आवाज आयेगी कब बदलेगा मेरा देश, मेरा समाज। मैं इसे शहीदे आजम भगत सिंह की शहादत का शून्य भाग मांनू या अपने बेटे की कायरता या एक ऐक्सीडेंट। पुलिस ने तो ऐक्सीडेंट माना है, इसी को स्वीकार कर रहा हूँ। हां यह सच है कि अधूरी लडा़ई को छोड़कर हमारे सामने घना अंधेरा छोड़कर चले गया। रोज सुबह इस अंधेरे को हटाने का असफल प्रयास कर रहा हूँ।
मेरा दोस्त जैसा बेटा ने 2014 में इंटर की परीक्षा तमाम उलझनो के बाद भी 94 प्रतिशत के साथ पास की। बेहद खुश था, मैने उस याद दिलाया कि आप तो पिथौरागढ़ में पढ़कर छात्र राजनीति से आम राजनीति में आना चाहते थे। इंटर में जीव विज्ञान के प्रेक्टीकल की फाइल देखकर एग्जामनर ने क्लाश टीचर के सामने दीप को बुलाकर कहा था कि इसे वैज्ञानिक बनना चाहिए। दोनो को मेरे पास छोड़कर कोटा मेड़िकल की कौचिंग करने के लिए चले गया। इस नये रास्ते को चुनने पर कह गया था कि वह आई.ए.एस. अधिकारी बनना चाहता था। जब भी मैं पिथौरागढ़ से दून आता तो जरुर पूछता कि जिले में डीएम कौन है। उनकी योग्यता पर भी मुस्कराकर सवाल पूछता। 2016 में दून मेड़िकल कालेज में दाखिला लिया, उसका नाम उसके साथियो ने सी.पी.डी.रख दिया। इसका अर्थ था ” कूल पहाड़ी बंदा”। कभी किसी से ऊंची आवाज में बात नहीं करता। मां जब भी फड़ से सब्जी आदि खरीदते समय रुपये कम कराती तो नाराजगी व्यक्त करता, कहता कि गरीबो से दो रुपये कम करके खुश होते हो, बड़ी दुकानो में जाकर तो मुंह बंद रखते हो। जातीय भेदभाव, आर्थिक असमानता से दुःखी रहता था।
लॉकडाऊन में मुनस्यारी की जोहारी बोली सीखने की जिद कर रहा था, पूछा तो कहता था कि मुनस्यारी में गांव के मरीज आएंगे तो बोली आयेगी,तो उनकी बीमारी, परेशानी को जानने में आसानी होगी। अपने क्षेत्र के गांवो में जब भी जाता था तो बच्चो से सपना देखने के लिए कहता। बार बार चाचा कलाम की बात बच्चो को बताता कि ” सपना वो नहीं होता जो सपने में आता है, सपना वो है जो नींद उड़ा देता है”। गांव में लड़किया मिलती थी जो डाक्टर बनने का सपना देख रही थी, इस बात को दीप को बताता, कहता था कि इन होनहारो को मदद करेंगे।
पीजी करने की जगह मुनस्यारी में आई.ए.एस.की तैयारी करने की बात कहकर उसने हमारे पांवो पर पंख लगा दिये थे।
मेरे सुख दुःख का साथी हमेशा उर्जावान रहते हुए हौंसला देता था मुझे। जिला पंचायत पिथौरागढ़ का अपने क्षेत्र से सदस्य बनने के बाद मैने पांच लाख रुपए की पहली किश्त सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मुनस्यारी को उपकरण खरीदने के लिए दे दी। दिल में तमन्ना थी कि बेटे के आने से पहले अस्पताल को सुविधायुक्त बनाने की कोशिश करता रहूं।
हर रविवार को गांव गांव में मेड़िकल कैम्प लगाने की बात कहता था, बोलता था कि पापा आप पर्ची बनावोंगे। बहुत बाते होती थी अपने प्रिय के साथ। बहुत लोगो के सपनो को नजदीक से मरते हुए देखा था। तब मैं अपने को कुशल, समझदार समझते हुए उन अनगिनत लोगो को समझाने पर सुकून महसुस करता था। आज जब मेरे सपने रोज मौत के कुण्ड में जा रहे है तो मेरी समझ में आ रहा है कि हौशियार तो वह था जो रो रहा था, हम तो नासमझ थे जो उसे सत्य से असत्य का बौध कराने का एकदम असफल प्रयास करते आ रहे थे। मौत तो सबकी होनी है, दीप तो संदेश देकर गया है….
अपने प्रिय के लिए अंतिम पंक्ति…
मेरे बेटे
कभी इतने ऊंचे मत होना
कि कंधो पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो
उसे लगानी पड़े सीढ़िया