काशीपुर। उत्तराखंड में उपभोक्ता आयोगों की स्थिति दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है। राज्य के अधिकांश जिला उपभोक्ता आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त होने के चलते न्यायिक कार्य प्रभावित हो रहा है। यदि जल्द नियुक्तियां नहीं हुईं, तो नवंबर 2025 से प्रदेश के 13 में से 11 जिलों में उपभोक्ता मामलों की सुनवाई और निस्तारण पूरी तरह से ठप हो जाएगा।
तीन-चौथाई आयोग पहले से ही निष्क्रिय
वर्तमान में उत्तराखंड के नौ जिलों में अध्यक्ष के पद 19 मई 2023 से रिक्त हैं। वहीं कई आयोगों में सदस्यों के कार्यकाल भी समाप्त हो चुके हैं या होने वाले हैं। इससे पहले से ही तीन-चौथाई आयोगों में सुचारु रूप से काम नहीं हो पा रहा है। शेष चार जिलों के अध्यक्षों को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है, लेकिन वे भी महीने में एक या दो बार ही सुनवाई कर पा रहे हैं।
नवंबर में बड़ा संकट
आरटीआई कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार, नवंबर 2025 तक देहरादून, नैनीताल, चमोली, अल्मोड़ा, पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चंपावत और बागेश्वर सहित 11 जिलों के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। ऐसे में आयोगों में जरूरी कोरम पूरा न हो पाने के कारण उपभोक्ता मामलों की सुनवाई असंभव हो जाएगी।
नियम के अनुसार, कोई भी उपभोक्ता वाद अध्यक्ष और कम से कम एक सदस्य की उपस्थिति में ही सुना जा सकता है, लेकिन जब पद ही खाली होंगे तो न्यायिक कार्य कैसे होगा?
केवल दो जिलों में ही रह सकेगी सुनवाई
यदि नवंबर तक नियुक्तियां नहीं हुईं, तो केवल हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले ही उपभोक्ता मामलों की सुनवाई कर सकेंगे। हालांकि ऊधमसिंह नगर में भी यदि एक सदस्य का कार्यकाल समाप्त होता है, तो वहां भी कामकाज रुक सकता है।
महत्वपूर्ण जानकारी (रिक्तियों का विवरण):
- देहरादून: पुरुष सदस्य का पद मई से खाली, महिला सदस्य का कार्यकाल नवंबर में समाप्त।
- नैनीताल: अध्यक्ष और दोनों सदस्यों का कार्यकाल 28 नवंबर 2025 को समाप्त।
- उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, चमोली, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चंपावत, बागेश्वर: सभी में नवंबर-दिसंबर 2025 के बीच सदस्यों का कार्यकाल समाप्त।
- राज्य आयोग: अध्यक्ष का पद 5 जनवरी 2024 से रिक्त, एक न्यायिक सदस्य का कार्यकाल जुलाई 2025 तक, सामान्य सदस्य का कार्यकाल नवंबर 2025 तक सीमित।
नियुक्तियों में हो रही देरी से बढ़ी चिंता
नदीम उद्दीन ने बताया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया पद रिक्त होने से कम से कम छह महीने पहले शुरू हो जानी चाहिए थी। लेकिन मई 2025 तक ऐसी कोई पहल नहीं हुई, जिससे अब आयोगों के सामने कार्य बंद होने का संकट मंडरा रहा है।
सरकार की निष्क्रियता पर उठे सवाल
उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा करने वाले आयोगों की इस स्थिति को लेकर राज्य सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठने लगे हैं। यदि समय रहते नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो उपभोक्ताओं को लंबित मामलों में वर्षों तक न्याय नहीं मिल सकेगा।