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सीएम को क्यों नही दिखते 18 हजार उपनल कर्मियों के आंसू, उपेक्षा,अपमान, असमानता और उपेक्षा !

May 31, 2020
in पर्वतजन
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मनोज गरकोटी

आखिर क्यों नही दिखाई देता माननीय मुख्यमंत्री जी को 18 हज़ार उपनल कर्मचारियों का दर्द
उत्तराखंड मे सभी जानते है कि 18 हज़ार उपनल कर्मचारी उत्तराखण्ड के विभिन्न विभागों में राज्य गठन से अब तक कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं लेकिन सरकार का कहना है कि राजकीय कर्मचारी और उपनल कर्मचारी के कार्य में भिन्नता होती है इसलिये उनको समान कार्य का समान वेतन नही दिया जा सकता।
आखिर कितना सही है सरकार का तर्क !
एक नियमित वाहन चालक और उपनल से कार्यरत वाहन चालक के कार्य में क्या भिन्नता हो सकती है !
इसी प्रकार वर्तमान में कोरोना जैसी महामारी में राज्य के प्राथमिक चिकित्सालयों हो या फिर राजकीय चिकित्सा कॉलेज में लैब टेक्नीशियन के रूप में कोरोना का सैम्पल लेना हो या फिर कोरोना मरीजों की सेवा में वार्डो में वार्ड ब्यॉय हो या फिर एम्बुलेंस में वाहन चालक हो या फिर पर्यावरण मित्र हो या फिर सभी आवश्यक सेवाओं जैसे ऊर्जा, पेयजल, ख़ाद्य आपूर्ति जैसे विभिन्न विभागों में कार्य कर रहे है ऐसे में उक्त पदों पर नियमित कर्मचारी और उपनल कर्मचारी के कार्य मे क्या भिन्नता हो सकती है।
उक्त इन बातों से स्पष्ट है कि समान कार्य का समान वेतन का नियम लागू होना चाहिये था जो कि संविधान भी हमको अधिकार देता है साथ ही सरकार एक आदर्श नियोक्ता है तो सरकार को तो सबसे पहले ये लागू करना चाहिये।
सरकार एक आदर्श नियोक्ता होने के वावजूद 27 अप्रैल 2018 को एक शासनादेश करती है जिसमे कहा जाता है कि नियमित कर्मचारी और उपनल कर्मचारी के कार्यों में भिन्नता है। यही नही सरकार द्वारा माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल के 12 नवंबर 2018 के निर्णय जो कि उपनल कर्मचारियों के चरणबद्ध तरीके से नियमित करने तथा मिनिमम पे स्केल दिये जाने का था, जिसको भी सरकार द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

यही नही राज्य स्थापना दिवस नवंबर 2019 मे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने पीआरडी और उपनल के वेतन बढ़ोतरी की घोषणा की थी लेकिन बढ़ोतरी केवल पीआरडी कर्मचारियों की हुई है। यहाँ भी उपनल कर्मचारियों की उपेक्षा ही हुई है।
वही दूसरी तरफ सरकार ने मिनिमम वेजेज भी बढ़ाये हैं और 2018 से राज्य सरकार ने राज्य के 13 प्रतिशत महंगाई भत्ता बढ़ाया है। जिसमें एक समूह घ के कर्मचारी से अधिकारी वर्ग तक को ₹ 2500 से लेकर ₹ 15000 तक का लाभ मिला है साथ कर्मचारियों को वर्ष में एक इंक्रीमेंट भी बेसिक सैलरी स्लैब के अनुसार ₹ 1000 से ₹ 5000 तक का मिलता है। 2018 से अब तक दो इंक्रीमेंट भी मिल चुके हैं वही दूसरी तरफ 18 हज़ार उपनल कर्मचारी जो कि प्रदेश के ही राजकीय विभागों में कार्यरत हैं, उनके वेतन में जून 2018 से आतिथि तक एक रुपये की भी बढ़ोतरी नही की गई।

उपनल कर्मियों का दुख-
हर इंसान अपनी तरक्की चाहता है लेकिन 10 वर्षो से कार्य कर रहा उपनल कर्मचारियों हो या फिर एक दिन से कार्य कर रहा हो उपनल कर्मचारी दोनों में कोई अंतर नहीं है दोनों का वेतन समान होता है और ना कोई इंक्रीमेंट और प्रमोशन जैसी व्यवस्था।

10 से 15 साल अच्छा काम करने के बाद भी जॉब सिक्योरिटी नही है।

18, 20, 22 वर्ष काम करके कोई सैनिक जब रिटायरमेंट होकर उपनल से उत्तराखण्ड के विभाग में कार्य करता है तो उसको उसके समकक्ष पद का आधे से भी कम वेतन दिया जाता है।
वेतन बढ़ोतरी की कोई समय सीमा नही।


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