देहरादून। वरिष्ठ भाजपा नेता रविन्द्र जुगरान द्वारा आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (DMMC) में करोड़ों रुपये के घोटालों को लेकर की गई कई दर्जन शिकायतों के बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने जांच समितियां गठित कर रिपोर्ट प्रस्तुत की। लेकिन, चौकाने वाली बात यह है कि दो साल पहले गठित एक जांच समिति ने अभी तक अपनी रिपोर्ट शासन को नहीं दी, जबकि दूसरी समिति पर फर्जी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आरोप लगे हैं।
दो साल में भी जांच रिपोर्ट नहीं, फर्जी रिपोर्ट पर हो रही वेतन जारी
जानकारी के मुताबिक, डिप्टी सेक्रेटरी रईश अहमद की अध्यक्षता में गठित समिति ने अब तक अपनी रिपोर्ट शासन को नहीं सौंपी है। वहीं, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी मो. ओबेदुल्लाह अंसारी की अध्यक्षता में गठित जांच समिति ने वित्त विभाग से परामर्श लिए बिना एक रिपोर्ट तैयार की और 2018 के शासनादेश को छुपाकर शासन को भेज दिया। इसी रिपोर्ट के आधार पर तीन नियमित कर्मचारियों को गलत और दोगुना वेतन जारी किया जा रहा है।
10.59 करोड़ का घोटाला उजागर, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं
अपर सचिव जितेंद्र सोनकर की अध्यक्षता में गठित जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर DMMC में हुए गबन और घोटालों को आपदा प्रबंधन विभाग ने स्वीकार कर लिया। विभाग ने 24 जनवरी 2024 को मुख्य सचिव एस.एस. संधू की अध्यक्षता में हुई बैठक में 10.59 करोड़ रुपये के गबन का खुलासा किया।
हालांकि, आश्चर्य की बात यह है कि मुख्य सचिव द्वारा घोटाले के दोषियों के खिलाफ तत्काल विधिक कार्रवाई और धनराशि की रिकवरी के आदेश देने के 14 महीने बाद भी किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ कोई FIR दर्ज नहीं हुई है। न ही अब तक गबन की गई धनराशि की वसूली की गई है।
आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों पर संरक्षण देने का आरोप
सूत्रों के अनुसार, विभागीय बजट से धन के गबन की पुष्टि हो चुकी है, और सभी सबूत उपलब्ध होने के बावजूद भी आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव और अपर सचिव आरोपियों को संरक्षण दे रहे हैं।
10.59 करोड़ रुपये के गबन के प्रमुख बिंदु:
38.26 लाख रुपये – 7 कर्मचारियों ने बिना अनुमति के ग्रेच्युटी के नाम पर निकाले।
7.92 लाख रुपये – बिना किसी प्रमाण के 7 कर्मचारियों को वितरित किए गए।
90.37 लाख रुपये – वर्ष 2011 से 2020 तक महावीर प्रसाद चमोली के निजी खाते में ट्रांसफर किए गए, फर्जी बिलों से समायोजन।
6.23 करोड़ रुपये – UNDP परियोजना के तहत मिली धनराशि का कोई रिकॉर्ड नहीं।
50 लाख रुपये – फिल्म निर्माता महेश भट्ट को बिना अनुमति दिए गए।
82.92 लाख रुपये – केदारनाथ आपदा के दौरान होटल, भोजन आदि के नाम पर खर्च दिखाया, लेकिन कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं।
1.5 करोड़ रुपये – 4 नियमित कर्मचारियों को त्रुटिपूर्ण वेतन जारी किया जा रहा है।
10 लाख रुपये – एक संविदा कर्मचारी से अधिक वेतन की रिकवरी नहीं हुई।
कार्रवाई नहीं होने से बढ़ रही नाराजगी
मुख्य सचिव के आदेश के बावजूद, 14 महीने बाद भी न तो आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई है और न ही धनराशि की वसूली की गई है। इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।
अब देखना होगा कि सरकार इस बड़े घोटाले पर क्या कदम उठाती है या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह दबा दिया जाएगा!