कोरोना महामारी में हर कोई अपने अपने स्तर से प्रवासियों की और लॉक डाउन में फंसे लोगों की मदद कर रहा है।
गुजरात के डॉक्टर देवेश्वर भट्ट भी अपनी टीम के साथ 15 दिनों से गुजरात से प्रवासियों को उत्तराखंड पहुंचाने के लिए अपने दिन रात एक कर रहे थे लेकिन आखरी समय पर सरकार ने डॉक्टर भट्ट को पीछे धकेल कर सारा क्रेडिट खुद ले लिया।
और जब डॉक्टर भट्ट की बिटिया सपना भट्ट ने अपने पापा के योगदान का जिक्र किया तो उत्तराखंड सरकार मे भी हलचल तेज हो गयी। जब इस पर चर्चाओं ने जोर पकड़ा तो उनकी संस्था ने इस पर विचार विमर्श किया और फिर यह वीडियो डिलीट कर दिया गया। इसके बाद उनसे उत्तराखंड सरकार को धन्यवाद देने वाला दूसरा वीडियो बनवाया गया। उत्तराखंड सरकार ने दूसरे वीडियो से अपने पक्ष मे खबरें चलवाई कि “कुछ लोग दुर्भावना से उत्तराखंड सरकार के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।।”
हकीकत क्या है आइए हम आपको बताते हैं।
उत्तराखंड के अधिसंख्य पाठकों ने डॉक्टर भट्ट की बेटी सपना भट्ट द्वारा बनाया गया एक वीडियो जरूर देखा होगा जो नहीं देख पाए उनके लिए हम यह वीडियो फिर से उपलब्ध करा रहे हैं।
देखिए वीडियो
एक सरल सहज वीडियो पर इतना हंगामा !!
इस वीडियो में बेहद सहज सरल अंदाज में सपना भट्ट अपने पापा के योगदान को लोगों से साझा कर रही हैं। इस वीडियो में डॉक्टर भट्ट बिल्कुल सहज और सरल हैं। इस वीडियो में कहीं से भी एक भी बार यह नहीं कहा गया है कि प्रवासियों के टिकट के लिए पैसे डॉक्टर भट्ट ने दिए थे।। कोई भी व्यक्ति जो इतने बड़े पद पर हो जहां पैसा कोई मायने नहीं रखता हो, वहां पर पांच दस लाख की बात करना भी छोटी बात होती है। डॉक्टर भट्ट और उनकी बिटिया सिर्फ 15 दिनों में उनके द्वारा किए गए कार्य और उनकी टीम सहित गुजरात प्रशासन के लिए धन्यवाद कर रहे हैं।
देवेश्वर भट्ट का पहला वीडियो ( यह सरकार ने हटवा दिया)
पर्वतजन की खबर पर तिलामिलाई सरकार
पर्वतजन ने भी जब यह खबर की थी तो डॉक्टर भट्ट से फोन पर बात की थी और अपनी खबर में भी दो बार इस बात का जिक्र किया था कि पूरा मैनेजमेंट और मेहनत डॉक्टर भट्ट और उनकी टीम की थी तथा इसका भुगतान सरकार ने किया था।
यह वीडियो और पर्वतजन की खबर वायरल होने के बाद उत्तराखंड में सियासी भूचाल आ गया।
यूकेडी के एक आध कार्यकर्ता ने जरूर इस बात को इस तरह से प्रचारित किया कि जैसे डॉक्टर भट्ट ने ही भुगतान किया हो , लेकिन इसके बाद सरकार ने पर्वतजन सहित डॉक्टर भट्ट को भी निशाने पर ले लिया और सरकार को लगा कि अब उनकी छवि खतरे में पड़ गई है।
अहम सवाल यह है कि क्या सरकार का अहम और स्वाभिमान इतना पिलपिला हो गया है !
क्या सरकार की छवि इतनी कमजोर है कि जरा सी बातों से उसे बड़ा फर्क पड़ जाता है !
सरकार ने डिलीट कराया पहला वीडियो। बनवाया दूसरा वीडियो
सरकार ने डॉक्टर भट्ट को फोन करके उनकी बिटिया द्वारा बनाया गया वीडियो डिलीट कराया और उनसे दूसरा वीडियो बनवाया।
आपने वह दूसरा वीडियो भी देखा होगा। जिन्होंने नहीं देखा उनके लिए हम वह वीडियो फिर से उपलब्ध करा रहे हैं।
इस वीडियो में आप डाक्टर भट्ट की बॉडी लैंग्वेज आसानी से देख परख सकते हैं कि डॉक्टर भट्ट लगभग बेमन से यह बात कह रहे हैं।
धन्यवाद आभार जताने के बजाय उल्टा अपना धन्यवाद कराया सरकार ने
डॉक्टर भट्ट ने इस वीडियो में कहा कि इसका भुगतान सरकार ने ही किया है। डॉक्टर भट्ट ने प्रवासियों को उत्तराखंड वापस बुलाने के लिए प्रदेश सरकार का धन्यवाद और आभार व्यक्त किया।
अहम सवाल यह है कि उत्तराखंड सरकार को चाहिए था कि पहले तो देवेश्वर भट्ट की 15 दिन की मेहनत के लिए डॉक्टर भट्ट और उनकी टीम का आभार व्यक्त करती किंतु उत्तराखंड सरकार ने इस वीडियो मे उल्टा अपना धन्यवाद और आभार व्यक्त करवाया है।
डाक्टर भट्ट बोले सरकार ने झुकाया और मै झुक गया
इससे बड़ी शर्मिंदगी और निर्लज्ज बात और कोई नहीं हो सकती।
आखिर कल के दिन कोई प्रवासी क्यों आगे आएगा ! जब उसे इस तरह से भी बेइज्जत किया जाएगा।
डॉक्टर भट्ट ने पर्वतजन से कहा,- ” सरकार ने मुझे झुकाया और मै झुक गया, और झुककर कोई छोटा नहीं होता।”
मुझे कुमाऊं गढ़वाल में जितने लोग जानते हैं वह जानते ही हैं।” और मेरे काम को भी जानते हैं मुझे कोई गम नहीं है। बल्कि खुशी है कि हम कुछ कर पाए।”
सवाल यह है कि जिस प्रवासी को हीरो मानकर सरकार को उसकी तारीफ करनी चाहिए थी, आखिर सरकार ने इस मददगार प्रवासी को किस घमंड के तहत झुकाया !
आने वाला समय यह सवाल उत्तराखंड सरकार से जरूर पूछेगा।
डाक्टर भट्ट और टीम की मेहनत न होती तो संभव नही था
डॉक्टर भट्ट कहते हैं,- “यदि 15 दिन तक 25-30 लोगों की टीम रात-दिन मेहनत नहीं करती तो उत्तराखंड सरकार के बस का नहीं था कि वह प्रवासियों को वापस बुला पाती।”
इतने लोगों का डाटा इकट्ठा करना, उनके नंबर इकट्ठे करके उनको यहां बुलाना। कोई आसान काम नहीं था। उनकी एप्लीकेशन देना, कलेक्टर को मीटिंग में बात करना, कलेक्टर उनकी एप्लीकेशन को वेरीफाई करता है, इसके अलावा यह सब बहुत लंबा प्रोसीजर है। आज की डेट में यह सब कौन करता है ! डाक्टर भट्ट ने कहा कि सरकार यह सब नहीं करती, उन्होंने केवल पैसे दिए।”
डॉक्टर भट्ट ने पर्वतजन से कहा,-” यदि सरकार भुगतान नहीं करती तो मै तो भुगतान तो कर ही देता। लेकिन अगर सरकार कोई सुविधा दे रही है तो उसका लाभ लेने में क्या दिक्कत है।” सरकार की आंखों का पानी कितना मर गया है ! सरकार ने डॉक्टर भट्ट का धन्यवाद करने के बजाय अपना ही धन्यवाद कराने वाला वीडियो बनवाकर उसे मीडिया मैनेजमेंट के तहत बाकायदा पूरी सोशल मीडिया टीम लगाकर वायरल कराया। हालांकि डॉक्टर भट्ट कहते हैं कि उन्हें सरकार के आभार और धन्यवाद की जरूरत नहीं थी। किंतु यह उनका बड़प्पन है। डॉक्टर भट्ट ने पर्वतजन से बातचीत में कहा कि उन्होंने अपनी बिटिया के साथ हुए इंटरव्यू में कहीं भी यह बात नहीं कही कि पैसा उन्होंने दिया है।
डॉक्टर भट्ट अफसोस की शैली में कहते हैं,-” इन्होंने मेरा वीडियो बंद करवा दिया और कहा कि इससे गलत मैसेज जा रहा है। फिर मैंने कहा कि तुम ही खुश रहो यार ! मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने एक अच्छा काम किया है। मेरे लिए वही बहुत है। मुझे नाम नहीं चाहिए। अच्छा काम करो, नाम तो अपने आप हो ही जाता है।”
देवेश्वर भट्ट के संघर्ष को सलाम करने के बजाय सरकार ने उल्टा अपना महिमामंडन कराने मे शर्म तक महसूस नही की।
आप सरकार की बेकली का अंदाजा इस बात से ही लगा सकते हैं कि 9 मई को रेल मंत्रालय ने ट्वीट करके कहा था कि “प्रवासियों के लिए ट्रेन चलवाने का उत्तराखंड सरकार का उनके पास कोई प्रपोजल नहीं है, जब प्रपोजल आएगा तो वे जरूर कुछ करेंगे।”
किंतु डॉक्टर भट्ट कहते हैं कि वे पिछले 15 दिन से प्रवासियों के लिए ट्रेन का इंतजाम कराने में लगे हुए थे और रेलवे का एक नियम है कि 1200 से 1400 यात्रियों की संख्या होने पर ही ट्रेन बुक की जाती है। वह इसी व्यवस्था में लगे रहे थे और यह संभव कर दिखाया। किंतु लास्ट टाइम पर सरकार भुगतान देती है और सारा श्रेय झटक लेती है।
सरकार ने अपनी छवि को बचाने के लिए एक तरह से गुजरात निवासी डॉ देवेश्वर भट्ट की छवि खराब करने का काम किया है। कोई भी व्यक्ति देवेश्वर भट्ट की फेसबुक वॉल पर जाकर यह चेक कर सकता है कि पहले यह समाजसेवी चुपचाप अपने काम में लगा हुआ था, कोई दिखावा नहीं, किंतु जब 11 तारीख को सरकार ने सिर्फ अपनी उपलब्धि को बढ़ा चढ़ाकर दिखलाया तो फिर डॉक्टर देवेश्वर भट्ट की बेटी ने भी सोचा होगा कि उनके पिता के योगदान को भी दिखाया जाना चाहिए।
यही सोचकर रेडियो जॉकी ममता भट्ट ने अपने पापा के योगदान को रूबरू कराना चाहा होगा। आखिर कोई भी यह क्यों चाहेगा कि उनके योगदान को जानबूझकर नेपथ्य में धकेल दिया जाए ! जिससे किसी को भी क्षुब्ध होना स्वाभाविक ही है।
लेकिन शायद पॉलिटिक्स इसी का नाम है।
डॉ देवेश्वर भट्ट कहते हैं कि, पहले वीडियो कि वायरल होने के बाद वायरल होने के बाद सरकार खुद भी घबरा गई, यह सब क्या हो गया है। डॉक्टर भट्ट क्षुब्ध शब्दों में पूछते हैं यदि वे मेहनत नहीं करते तो इनका पैसा किस काम का था ! आखिर वह थोड़ी यहां आते !”
डॉक्टर भट्ट कहते हैं कि इस काम का श्रेय यदि किसी को जाता है, तो उनकी टीम को जाता है। डॉक्टर भट्ट कहते हैं कि यदि सरकार ने उनको झुका दिया तो वो झुक गये। झुकने से कोई छोटा नहीं होता।