हाइकोर्ट न्यूज: विनियमितिकरण नियमावली पर पुनर्विचार याचिका  खारिज। अधर में लटका सैकड़ों विनियमित कर्मियों का भविष्य 

देहरादून,  जुलाई 2025 — उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल ने बहुप्रतीक्षित निर्णय सुनाते हुए विनियमितिकरण नियमावली 2016 को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका हिमांशु जोशी बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में दाखिल की गई थी, जिसे न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ ने 2 जुलाई 2025 को खारिज कर दिया।

🔹 पृष्ठभूमि:

उत्तराखंड शासन द्वारा वर्ष 2016 में विनियमितिकरण नियमावली लागू करते हुए विभिन्न विभागों में लगभग 700 कार्मिकों को नियमित किया गया था। इनमें से 176 असिस्टेंट प्रोफेसर्स को 30 दिसंबर 2016 को उच्च शिक्षा विभाग में समूह ‘क’ के पदों पर विनियमित किया गया।

इस नियमावली को हिमांशु जोशी एवं अन्य द्वारा उच्च न्यायालय, नैनीताल में चुनौती दी गई। सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की एकलपीठ ने नियमावली 2016 को निरस्त कर दिया था।

🔹 संशोधित नियमावली 2018:

इस निर्णय के अनुपालन में शासन ने 7 जनवरी 2019 को संशोधित विनियमितिकरण नियमावली, 2018 लागू की, जिसमें पहले से विनियमित कर्मियों के पदों को रिक्त मानते हुए संगत सेवा नियमावली के अनुसार भरने तथा चयन में 10 अंकों का वेटेज देने का प्रावधान किया गया।

इस संशोधित नियमावली को भी न्यायालय में चुनौती दी गई थी। हेमा मेहरा एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने 15 फरवरी 2019 को निर्णय पारित करते हुए संशोधित नियमावली को वैध ठहराया और 2016 में विनियमित सभी कार्मिकों का विनियमितिकरण नियमावली लागू होने की तिथि यानी 14 दिसंबर 2016 से ही निरस्त माना।

🔹 सरकार ने नहीं किया तत्काल निष्कासन:

इस स्पष्ट निर्णय के बावजूद सरकार ने कार्मिकों का विनियमितिकरण समाप्त नहीं किया, क्योंकि इस फैसले के विरुद्ध एकलपीठ और युगलपीठ में पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की पीठ ने भी पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था।

बाद में 8 नवंबर 2019 को एकलपीठ में पुनः पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई, जो वर्षों से विचाराधीन थी। अंततः, 2 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ ने इस अंतिम पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया।

🔹 क्या होगा आगे?

अब जबकि पुनर्विचार याचिका खारिज हो चुकी है, 2016 की नियमावली के आधार पर नियमित किए गए असिस्टेंट प्रोफेसर्स और अन्य कर्मियों के विनियमितिकरण पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। सरकार अब तक इसी याचिका के आधार पर निर्णय को टाल रही थी। अब सभी की नजर इस पर टिकी है कि सरकार अगला कदम क्या उठाएगी

डॉ. हेमा मेहरा की याचिका के अनुसार, न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि विनियमितिकरण को नियमावली लागू होने की तिथि (14 दिसंबर 2016) से ही शून्य माना जाएगा।

इस निर्णय से उच्च शिक्षा विभाग समेत अन्य विभागों में कार्यरत सैकड़ों विनियमित कर्मियों का भविष्य अधर में लटक गया है। अब यह देखना अहम होगा कि सरकार इस संवेदनशील विषय पर न्यायालय के आदेशों के अनुरूप क्या कार्रवाई करती है

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