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उत्तराखंड के असली हीरो, जिन्हें युगों तक रखा जाएगा याद

March 30, 2020
in पर्वतजन
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सतपाल धानिया/विकासनगर

पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा कोरोना वायरस लोगों के लिए बहुत बड़ा अभिशाप साबित हो रहा है।
विपदा की इस घड़ी में आज कुछ ऐसे चेहरे हैं, जो इन असहाय लोगों के लिए दिल खोलकर सेवा में लगे हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ चेहरों से रूबरू करा रहे हैं और सरकार क़ो भी आईना दिखा रही हैं हमारी यह पड़ताल:-

हरबर्टपुर निवासी नीरज रोहिला की लगन को सलाम

हरबर्टपुर निवासी नीरज रोहिला २२ मार्च से ही अपने सारे काम धंधे छोड़कर इन असहाय और मजदूर वर्ग के लोगों की सेवा में रात दिन एक किये हुए जहां भी कोई भूखा प्यासा परिवार या अपने घरों को पैदल जा रहे मजदूर मिल रहे हैं। उनके लिए खाने की व्यवस्था करने में लगे हैं तो वहीं जहां भी बिना मास्क के लोग दिखाई दे रहे हैं, उन्हे मास्क और सेनेटाइजर बांट रहे हैं। इनका पूरा परिवार रात दिन खाने के पैकेट बनाकर जरूरतमंद लोगों के घर पहुंचा रहे हैं। विपदा की इस घड़ी में नीरज रोहिला इन असहाय और मजदूरों के लिए एक देवदूत बनकर सामने आए हैं और इनका यह प्रयास काफी हद तक इन जरूरतमंद लोगों के लिए काफी सुकून और राहत पहुंचा रहा है।

गर्ल्स वारियर्स भी मैदान मे

अब हम आपको एक ऐसी लड़कियों के समूह के बारे में बता रहे हैं, जिसका नाम है गल्र्स वारियर फाउंडेशन। इस ग्रुप की संस्थापक रिहाना सिद्दीकी और उनकी टीम रात दिन बेसहारा लोगों की सहायता में लगी हैं। क्षेत्र में झुग्गी झोपडिय़ों में रह रहे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों के मजदूर परिवारों में संपन्न परिवारों से राशन इकट्ठा  कर पहुंचा रही है। इस ग्रुप में लगभग बीस लड़कियां हैं जो इस आपदा में अपना घरबार छोड़कर समाजसेवा में लगी हैं। उनके इस प्रयास से अब तक करीब दो सौ परिवारों को भरपेट खाने का इंतजाम किया गया है। असली हीरो है यह लड़कियां। इस आपदा में और इनके इस सहयोग को युगों तक याद किया जाएगा।

सुरेंद्र रावत और टीम भी सेवा मे

उत्तराखंड संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच गढ़वाल मंडल अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह रावत ने अपने साथियों के साथ अपने निवास कारगी चौक कालिका बिहार मैं आस-पड़ोस के साथियों द्वारा 500 लोगों के लिए खाना बनाकर शहर से आए तथा राह चलते भूखे गरीब लोगों को खाना वितरण कर रहे हैैं और यह कार्य आगे भी जारी रहेगा। इस उनके साथ सागर सिंह संजय चौहान, विपिन कुमार नितिन कुमार, रेशमा देवी, मुन्नी बिष्ट, लक्ष्मी देवी, अनीता देवी, पूजा पटवाल आदि सेेेेवारत हैैं।

औद्योगिक नगरी सेलाकुई में कोरोना वायरस अपने पैर पसार चुका है। सेलाकुई में कोरोना वायरस से बचाव के कोई भी सरकारी संसाधन दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। तो वहीं सेलाकुई के पूर्व व्यापार मण्डल अध्यक्ष सुधीर रावत और पूर्व जिला पंचायत सदस्य सुमित चौधरी अपने खर्च पर पूरे सेलाकुई शहर को सेनेटाइजर करने के लिऐ ट्रैक्टर से कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करने में रात दिन लगे हुए हैं जिससे सेलाकुई शहर क़ो कोरोना वायरस के कहर से बचाया जा सके।

लवकेश का सामाजिक लव 
विकासनगर नगरपालिका से सभासद लवलेश शर्मा का सहयोग भी बहुत ही सराहनीय है। लवलेश शर्मा सुबह होते ही अपनी कार में राशन के पैकेट भरकर निकल पड़ते हैं और जहां भी जरूरतमंद परिवार दिखाई देता है उन्हें राशन पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इनके द्बारा अभी ताक दो सौ परिवारों तक नि:शुल्क राशन पहुंचाने का काम किया गया है और उनका कहना है कि जब तक सामथ्र्य है, तब तक ऐसे लोगों की मदद करते रहूंगा।

उत्तराखंड पुलिस की मित्रता की सर्वत्र तारीफ
उत्तराखण्ड पुलिस की इस आपदा में जितनी भी सराहना की जाए उतनी ही कम है। चौबीस घंटे सड़कों पर खड़े खाकी में पुलिसकर्मी देवदूत से कम साबित नही हो रहे हैं। जहां भी कोई भूखा परिवार दिखाई दे रहा है या पता लग रहा है, उस घर तक राशन पहुंचाने का काम करते हुए देखे जा रहे हैं। साथ ही जो पैदल मजदूर अपने घरों की तरफ जा रहे हैं। उन्हें खाना पकाकर खिला रहे हैं, जिससे काफी हद तक इन आपदा में फंसे लोगों क़ो काफी राहत मिल रही है। पछवादून पुलिस का यह सहयोग काबिलेतारीफ है, जिसकी सभी पीडि़त सराहना करते हुए देखे जा रहे हैं।
अब बात करते हैं अपनी पड़ताल के सबसे अहम पहलू की, जो कि आपको अंदर तक झकझोर देगा। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल रहे ये मजदूर सबसे ज्यादा मुसीबतें झेल रहे हैं। हालाकि पुलिस प्रशासन जितना भी संभव है, मदद कर रहा है, लेकिन यह मदद नाकाफी साबित हो रही है। हमारी टीम ने हिमाचल, उत्तराखण्ड बॉर्डर और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड बॉर्डर पर जब पड़ताल की तो स्थिति बहुत ही भयावह दिखाई दी। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर जब यह मजदूर बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं तो इन्हें सुरक्षा की दृष्टि से रोका जा रहा है, जिससे ये मजदूर घंटों तक रात हो या दिन सड़क पर ही बैठे देखें जा रहे हैं।

घने जंगलों और पहाड़ो से भूखे प्यासे गुजरकर पैदल ही सफर कर रहे हैं छोटे-छोटे बच्चे महिलाएं युवतियां बुजुर्ग दर-दर भटकने को मजबूर हो गए हैं, इन्हें घर तक पहुंचाने के लिए सरकार ने अभी तक कोई व्यवस्था नहीं की है, जिससे पैदल सफर कर रहे लोगों में सरकारों के प्रति रोष देखने को मिल रहा है। कोई भी विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री इनकी सुध नहीं ले रहा है। ये तो गनीमत है कि स्थानीय ग्रामीण और समाजसेवी, पुलिस ऐसे लोगों की मदद कर रहे हैं, जिससे इन्हें राहत मिल रही है, लेकिन सरकारों के रवैए से ये तबका बहुत ही नाराज दिखाई दे रहा है।
सबसे अहम पहलू जो हमे हमारी पड़ताल में नजर आया, वो ये है कि उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश चारों राज्यो में भाजपा की सरकार है, लेकिन आपस में कोई भी सामंजस्य देखने को नहीं मिल रहा है। कोई भी राज्य अपने अपने राज्यों के पैदल और भूखे चल रहे मजदूरों को राहत पहुंचाने में गंभीर दिखाई नही दे रहा है। इन्हें इनके घरों तक पहुंचाने के लिए कोई भी वाहन किसी भी राज्य ने अंतर्राज्यीय बॉर्डर पर नहीं उपलब्ध करवाया है, जिससे कि सैकड़ों किलोमीटर पैदल सफर कर बॉर्डर पर पहुंचे मजदूरों को इनके घरों तक छोड़ा जा सके और राहत पहुंचाई जा सके।


सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात जो सामने आयी है, वो यह है कि किसी भी अंतर्राज्यीय बॉर्डर पर कोई भी चिकित्सा विभाग की टीम को तैनात नहीं किया गया है और न ही स्केनिंग ही की जा रही है, जिससे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की पहचान की जा सके और न ही जो पैदल चलकर अपने घरों को जा रहे हैं, उनकी जांच या दवाई दी जा सके, क्योंकि अधिकतर जो लोग पैदल सफर कर रहे, उनके पास दवाई तो दूर, खाना खाने तक के पैसे नहीं हैं और बड़ी संख्या में बीमार लोग भी पैदल ही सफर कर रहे हैं। बाहरी राज्यों के होने के चलते इन्हें स्थानीय सरकारी अस्पतालों की जानकारी नहीं है। ऐसे में अंतर्राज्यीय बॉर्डरों पर चिकित्सकों की एक टीम का होना बहुत जरूरी है, जिससे ऐसे लोगो को राहत पहुंचायी जा सके।


अब बात करते हैं पछवादून क्षेत्र में मिलने वाली सरकारी सहायता की, वो कह सकते हैं ऊंट के मुंह में जीरे के समान है, क्योंकि जो व्यवस्था होनी चाहिए थी, वह हो नहीं पा रही है और न ही ऐसे परिवारों को अभी तक चिह्नित किया गया है, जिन्हें समय आने पर उचित सहायता पहुंचाई जा सके। वर्तमान स्थिति यह है कि अभी स्थानीय समाजसेवी ही मोर्चा संभाले हुए हैं, जो हरसंभव मदद जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं। क्षेत्र में बहुत बड़ी आबादी ऐसी है जो दिहाड़ी मजदूरी पर ही निर्भर है और उनके घरो में चूल्हा तभी जलता है जब उन्हें मेहनताना मिलता है। रही बात सरकार के दावों की, तो आने वाले समय में स्थिति स्पष्ट हो ही जानी है, क्योंकि पछवादून में कोरोना वायरस को खत्म करने की जंग अगर लड़ी जा रही है तो महज पुलिस के भरोसे और पुलिस काफी हद तक सीमित संसाधनों के कोरोना वायरस की जंग को खत्म करने में जूझती हुई नजर आ रही है और प्रयास कर रही है कि क्षेत्र में कोरोना वायरस जैसी वैश्विक आपदा अपने पैर न पसार सके।


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