राज्य सूचना आयोग ने यह सवाल हरिद्वार जिले में राशन विक्रेताओं से सूचना का अधिकार के अंतर्गत राशन वितरण के अभिलेख मांगे जाने पर उनकी गुमशुदगी दर्ज होने की सूचना दिए जाने पर खड़ा किया है।
आयोग में राशन विक्रेताओं द्वारा राशन वितरण की सूचना न दिए जाने पर कई अपील दायर की गई है। सुनवाई के दौरान प्रत्येक अपील में यह सामने आया कि राशन विक्रेता के अभिलेख हो गए हैं या नष्ट हो गए हैं, जिसकी पुलिस रिपोर्ट दर्ज है।
आयोग ने इस पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए राशन वितरण में बड़ी अनियमित्ता का संदेह व्यक्त किया है। आयोग ने अलग-अलग अपीलों/शिकायतों में अपने अंतरिम आदेश में जिला खाद्य पूर्ति अधिकारी को रिपोर्ट तलब की है कि पूरे जिले की कितनी दुकानों के अभिलेख आज तक खो चुके हैं, कितनी रिपोर्ट दर्ज है और दुकान संचालकों पर क्या कार्रवाई की गई है।
आयोग ने राशन वितरण के अभिलेख खोने व पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की इस दृष्टिकोण से गहन जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं कि कहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में घपले के साक्ष्यों को मिटाने के उद्देश्य से तो रजिस्टर गायब नहीं हुए हैं।
आयोग में सुनवाई के दौरान विभाग के अधिकारियों का कहना था कि हरिद्वार के कुछ क्षेत्रों में आरटीआई कार्यकर्ता के नाम पर कुछ लोग गिरोह बंद तरीके से सूचना अनुरोध पत्र लगातार तथा विक्रेताओं से राशन वितरण से सम्बन्धित सूचना मांगा करते हैं।
आयोग ने एक ही सूचना कई व्यक्ति द्वारा एक साथ मांगे जाने व सूचना प्राप्त करने के नाम पर अवलोकन के लिए एक साथ राशन विक्रेता के यहां पर कार्यालय में पहुंचने को भी गंभीरता से लिया है।
धारा 18 में दर्ज अनुज कुमार की शिकायत पर राज्य सूचना आयुक्त ने सुनवाई के दौरान कहा कि शिकायतकर्ता अपने सहयोगियों के साथ संगठित गिरोह के रूप में राशन विक्रेताओं से सूचना मांगते हैं तो इससे उनकी मंशा पर सवाल उठता हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम यदि जनहित में पारदर्शी व्यवस्था के लिए हो रहा है तो यह उचित है लेकिन यदि इसका इस्तेमाल अवांछित किया जा रहा है, किसी को डरा कर स्वार्थ पूर्ति की कोशिश की जा रही है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है।
राज्य सूचना आयोग ने स्पष्ट किया कि सूचना का अधिकार का इस्तेमाल सद्भावना से लोकहित में किया जाता है तो यह लोकतंत्र की ताकत बन जाता है जब इसका दुरुपयोग होता है तो सिस्टम के लिए खतरा बन जाता है आयोग ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए शिकायतकर्ता को चेताया की सूचना अधिकार जवाबदेह नागरिकों के हाथ में है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और जवाबदेह पारदर्शी सिस्टम के लिए दुर्जेय औज़ार है। इसे राष्ट्र के मध्य नागरिकों में शांति सामन्जस्य भंग करने के दुरूपयोग करने वाला औज़ार लिए के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
आयोग का कहना है कि बिना उचित कारण के तथा भ्रष्टाचार संबंधी मामलों को तार्किक अंत तक पहुंचाने की इच्छा व्यक्त के बिना सूचना आवेदन नहीं लगाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता द्वारा उचित दर विक्रेता के रिकॉर्ड में आग लगने 1. वहीं अन्य उचित दर विक्रेता के सूचना अनुरोध पत्र लगाने के बाद रिकॉर्ड खोने को आयोग ने गंभीरता से लिया। पूर्व में भी अन्य अपील/शिकायत में यह तथ्य प्रकाश में आया कि राशन विक्रेता के रिकॉर्ड खो गए हैं। सुनवाई के दौरान विभाग के अधिकारी सूचना अनुरोध पत्र प्राप्त होने के बाद रिकॉर्डों की गुमशुदगी दर्ज कराने पर स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाए। विभाग के अधिकारियों के पास जानकारी ही नहीं है कि कितनी दुकानों के अभिलेख गुम हो चुके हैं।
विभाग यह भी नहीं बता पाया कि राशन विक्रेताओं द्वारा अभिलेख खोने, सूचना अनुरोध पत्र लगने के बाद थाने में गुमशुदगी दर्ज कराने के संबंध में लोक सूचना अधिकारी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। विभाग को यह भी नहीं मालूम कि फिलवक्त क्षेत्रवार कितने राशन विक्रेताओं के अभिलेख गुम हो चुके हैं। यह भी स्पष्ट नहीं हैं कि कितने प्रकरणों की पुलिस में रिपोर्ट हुई है और उन पर विभाग द्वारा क्या कार्रवाई की गई? अभिलेखों / राशन वितरण से जुड़ी पंजिकाओं का अचानक गायब हो जाना और पुलिस में एक सूचना दर्ज कर इतिश्री हो जाना यह बेहद गंभीर है।
विभाग द्वारा इसका संज्ञान न लिया जाना आश्चर्यजनक है, कहीं ना कहीं यह राशन विक्रेताओं के साथ विभागीय संलिप्तता की ओर भी इशारा करता है। राशन विक्रेताओं द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ी पंजिकाओं (जो इसका प्रमाण है राशन पात्र को प्राप्त हुई है या नहीं) का खो जाना एवं विभाग द्वारा इसकी अनदेखी करना विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
इस आदेश की प्रति जिला पूर्ति अधिकारी, हरिद्वार को इस आशय से प्रेषित की गयी कि वह यह सुनिश्चित कराएं कि जनपद में क्षेत्रवार समस्त राशन विक्रेताओं के यहां कम से कम पिछले 3 वर्षों के अभिलेख सुरक्षित व्यवस्थित रहें।
यह बेहद गंभीर विषय है कि राशन विक्रेताओं द्वारा अभिलेख / पंजिकाएं खोने की सूचना दर्ज करा दी जाती है और विभाग को जानकारी तक नहीं होती। मसला क्योंकि अभिलेखों की सुरक्षा और संरक्षण से जुड़ा है तथा सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4(1) के अंतर्गत आता है इसलिए जिला पूर्ति अधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि आदेश प्राप्ति के 1 माह के अंदर यह सूचना अद्यतन कर ली जाए कि आतिथि तक उनके यहां पूरे जनपद में कितनी दुकानों के अभिलेख गुम अथवा नष्ट हो चुके हैं। यह सूचना भी एकत्र की जाए राशन विक्रेताओं द्वारा कब और कहां किस थाने में इसकी सूचना दर्ज कराने की किसी जिम्मेदार अधिकारी से गहन जांच कराई जाए।
जांच इस दृष्टिकोण से कराई जाए कि कहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में घपले के साक्ष्यों को मिटाने के उद्देश्य से तो रजिस्टर गायब नहीं हुए। जांच रिपोर्ट में राशन विक्रेता की भूमिका भी स्पष्ट की जाए एवं इस पर विचार किया जाए कि जो विक्रेता अभिलेखों का संरक्षण जिम्मेदारीपूर्वक नहीं कर सकता वह जिम्मेदारी पूर्वक राशन वितरण कैसे कर सकता है?
निम्न अपीलों / शिकायतों पर आयोग में सुनवाई के आदेश पारित किए गए:
- अपील संख्या 36545 एवं शिकायत संख्या 14945 में अपीलार्थी शेरपाल पुत्र स्वर्गीय तिलकराम ।
- अपील संख्या 36571 एवं शिकायत 14950 में अपीलार्थी शेखर कुमार पुत्र सुखबीर सिंह आत्माराम
- शिकायत संख्या 14959 में शिकायतकर्ता अनुज कुमार पुत्र
- अपील संख्या 36573 पुन्ना सिंह पुत्र मनफूल सिंह
उपरोक्त समस्त अपीलों / शिकायतों में आयोग में अंतरिम आदेश पारित किए गए हैं जो एक समान ही प्रकरण है जिसमें अनुरोध पत्र लगाने के बाद ही राशन विक्रेताओं के अभिलेख खो गए हैं। यह एक गंभीर विषय है।
जैसा कि शिकायत संख्या 14959 में निम्न आदेश पारित करते हुए जिला पूर्ति अधिकारी को निर्देशित किया किः
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 4(1) के अंतर्गत आता है इसलिए जिला पूर्ति अधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि आदेश प्राप्ति के 1 माह के अंदर यह सूचना अद्यतन कर ली जाए कि आतिथि तक उनके यहां पूरे जनपद में कितनी दुकानों के अभिलेख गुम अथवा नष्ट हो चुके हैं। यह सूचना भी एकत्र की जाए राशन विक्रेताओं द्वारा कब और कहां किस थाने में इसकी सूचना दर्ज कराई गई है। राशन विक्रेताओं के स्तर से अभिलेख खोने व पुलिस में सूचना दर्ज कराने की किसी जिम्मेदार अधिकारी से गहन जांच कराई जाए। जांच इस दृष्टिकोण से कराई जाए कि कहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में घपले के साक्ष्यों को मिटाने के उद्देश्य से तो रजिस्टर गायब नहीं हुए। जांच रिपोर्ट में राशन विक्रेता की भूमिका भी स्पष्ट की जाए एवं इस पर विचार किया जाए कि जो विक्रेता अभिलेखों का संरक्षण जिम्मेदारीपूर्वक नहीं कर सकता ह जिम्मेदारी पूर्वक राशन वितरण कैसे कर सकता है?
अपील संख्या 36573 श्री पुन्ना सिंह पुत्र श्री मनफूल सिंह में अंतरिम आदेश पारित करते हुए पुलिच जांच हेतु निम्न आदेश पारित किए गए:
इस विवादित स्थिति में प्रकरण पर पुलिस जांच की जानी की आवश्यकता है। अतः विभागीय अपीलीय अधिकारी जिला पूर्ति अधिकारी, हरिद्वार को निर्देशित किया जाता है कि वह प्रश्नगत प्रकरण का संज्ञान लेते हुए उल्लिखित सम्बन्धित पत्र जो मूल रूप में लोक सूचना अधिकारी के पास उपलब्ध है की जांच सम्बन्धित पुलिस थाने से कराना सुनिश्चित करें तथा जांच करवाकर कृत कार्यवाही से सुनवाई की अग्रेतर तिथि से पूर्व आयोग को भी अवगत करायें । आदेश पर अविलम्ब संज्ञान लेते हुए कार्यवाही हेतु आदेश की प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, हरिद्वार को पृथक से प्रेषित की जाए ।