वन विभाग में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारी अधिकारियों का आरटीआई के माध्यम से पर्दाफाश करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट विनोद जैन पर दर्ज मुकदमा कोर्ट ने वापस कर दिया है।
गौर तलब है कि 27 अगस्त 2016 को देहरादून वन प्रभाग में कार्यरत शफीक अहमद नाम के एक फॉरेस्ट गार्ड ने उनको साजिश रच कर एक झूठे मुकदमे में फंसा दिया था। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वन विभाग में नौकरी कर रहे सफीक अहमद ने नेहरू कॉलोनी थाने में प्रार्थना पत्र दिया था कि आरटीआई एक्टिविस्ट विनोद जैन उससे पैसे की मांग कर रहा है और पैसा ना देने पर केस करने की धमकी दे रहा है। इसी तहरीर पर नेहरू कॉलोनी थाने ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उनको गिरफ्तार कर लिया, और उनको जेल भेज दिया।
लेकिन मामले में कोई दम न मिलने पर उत्तराखंड सरकार के अभियोजन विभाग ने इस केस को वापस लेने के लिए प्रार्थना पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया।
न्यायालय ने प्रार्थना पत्र को जनहित और सद्भावना में सुनिश्चित करते हुए तथा केस में कोई दम न पाते हुए जनहित में यह मुकदमा वापस ले लिया।
बड़ा सवाल अभी अधूरा
अहम सवाल यह भी है कि आरटीआई एक्टिविस्ट खिलाफ तो मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया लेकिन वन विभाग के जो बीट अधिकारी के खिलाफ फर्जी प्रमाण पत्रों से नियुक्ति पाने के दस्तवेजी सबूत थे, उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आरटीआई एक्टिविस्ट विनोद जैन ने कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका अभियान जारी रहेगा और इस तरह के उत्पीड़न के बाद वह और मजबूती से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे।
ये था मामला
विनोद जैन द्वारा आईटीआई में खुलासा किए जाने के बाद वन आरक्षी शफीक अहमद को फर्जी दस्तावेजों से नौकरी लगने पर वन विभाग ने जांच बिठाई थी। जांच मे पुष्टि होने पर उसे 11मार्च 2019 को बर्खास्त कर दिया गया था। इस वन आरक्षी के पास पद पर नियुक्ति हेतु ना तो निर्धारित शैक्षिक योग्यता थी और ना ही कोई दूसरे दस्तावेज।
यहां तक कि उसने फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र बनाकर उनके आधार पर नियुक्ति प्राप्त की थी। उसके साथ ही साथ जालसाजी करके अधिकारियों को भी गुमराह किया गया था।
लेकिन इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। सवाल यह है कि यदि जालसाजों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ ही कार्यवाही की जाएगी तो भला भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज कौन उठाएगा !