साल भर में प्रदेश के कई बच्चों ने अपनी जान पर खेल कर साहस का परिचय दिया। खबरें भी छपी लेकिन इसके बावजूद भी जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से यह वीर बच्चे वंचित रह जाएंगे। क्योंकि जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए आवेदन ही नहीं भेजें।
राज्य बाल कल्याण परिषद के मुताबिक उत्तराखंड के बहादुर बच्चों को भी गणतंत्र दिवस के दिन राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिल सके, इसके लिए जिलों के एसपी एससीओ लेकिनआदि को कई बार पत्र भेजे गए और कहा गया की 6 से 18 वर्ष के उन बच्चों के नाम भेजें,जिन्होंने 1 जुलाई 2022 से 30 सितंबर 2023 के बीच वीरता का प्रदर्शन किया हो।
अफसर की लापरवाही कुछ इस कदर रही कि बागेश्वर को छोड़ अन्य किसी जिले ने भी अंतिम तारीख 31 अक्टूबर तक बहादुर बच्चों के आवेदन भेजे ही नहीं।
और बागेश्वर जिले के जिस बच्चे का आवेदन मिला भी उस आवेदन की जांच के लिए सीईओ को भेजा गया,लेकिन अब तक उसकी रिपोर्ट ही नहीं मिली।।
इन बच्चों ने दिया वीरता का परिचय:
- बागेश्वर जिले के जीआईसी अंसारी के छात्र भास्कर परिहार ने 24 अगस्त 2023 को एक छात्र की गुलदार से जान बचाई थी।
- सहसपुर के शंकरपुर की महमूदपुर बस्ती में पिछले साल 6 मई को नाजिया जिसकी उम्र 8 वर्ष है उसने बहादुरी का परिचय दिया। इस शाम जब सभी परिजन खेतों में काम करने गए तब उसके चचेरे भाई एहसान नसीम नाजिम और वसीम आंगन में खेल रहा था, इन सभी की उम्र 4 से 8 साल थी। इसी समय वहां गुलदार आ गया इस पर नाजिया ने वसीम नाजिम और नसीम को एक-एक कर पकड़ कर अंदर खींच लिया जबकि गुलदार एहसान को लेकर भाग गया। अगले दिन उसका सब भी मिला था।
- वही 25 सितंबर 2023 को आराधना (जिसकी उम्र 10 वर्ष थी)ने अपने छोटे भाई प्रिंस (जिसकी उम्र 7 वर्ष थी)को गुलदार से बचाया था।
- भगवानपुर तहसील के मानक मजरा गांव के नवाब (18)ने 17 मई 2023 को अपने छोटे भाई मोनिश (16)को गुलदार के हमले से बचाया था जिसमें नवाब बुरी तरीके से घायल भी हुआ था।
यह सभी वह बच्चे हैं जिन्होंने बहादुरी का परिचय दिया। और यह सभी राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के हकदार भी हैं। लेकिन अफसर नहीं इन सभी बच्चों का तिरस्कार कर दिया और प्रदेश के कई बच्चे वीरता पुरस्कार से वंचित रह जाएंगे।
आखिर क्यों अफसर की हीला हवाली हर बार नजर आती है! इसी तरह अफसरों की लापरवाही कई और कामों में भी नजर आती है जिसके चलते प्रदेश पीछे रह जाता है।