पुरोला, 22 जून 2025 | रिपोर्ट: नीरज उत्तराखंडी
उत्तरकाशी जनपद के मोरी ब्लॉक स्थित खूनीगाड़ नहर में गूल निर्माण कार्य को लेकर गंभीर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। किसानों ने आरोप लगाया है कि एक ही नहर पर बार-बार योजनाएं दिखाकर लाखों रुपये खर्च किए गए, लेकिन नहर से अब तक पानी की एक बूंद नहीं निकली।
किसान मोहन दास ने इस मामले की शिकायत तहसील प्रशासन से करते हुए जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका आरोप है कि विभाग और ठेकेदार की मिलीभगत से सरकारी धन का दुरुपयोग किया जा रहा है, जबकि किसान पानी के अभाव में सूखे की मार झेल रहे हैं।
एक साल में दो योजनाएं, फिर भी सूखी नहर
शिकायत में कहा गया है कि वर्ष 2024 में एसएसपी योजना के तहत नहर पर 9.54 लाख रुपये खर्च किए गए, लेकिन इसके बावजूद नहर में पानी नहीं चला। इसके बाद भी विभाग ने 12 मई 2025 से उसी नहर पर जिला योजना मद से फिर से 7 लाख रुपये का कार्य शुरू कर दिया, जिसमें से 4 लाख का ठेका मात्र 20 हजार रुपये में पेंटी ठेकेदार को देने का आरोप है।
मोहन दास ने कहा, “यह पूरा मामला सरकारी धन की बर्बादी का उदाहरण है। किसान की जमीन तीन साल से बंजर पड़ी है, लेकिन ठेकेदार और विभाग के अधिकारी मालामाल हो रहे हैं।”
2009 से अब तक करोड़ों खर्च, फिर भी हाल बेहाल
शिकायतकर्ता का दावा है कि वर्ष 2009 से लेकर 2025 तक इस गूल पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। उन्होंने गूल निर्माण कार्य की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग करते हुए कहा कि अगर जांच में अनियमितताएं पाई जाती हैं तो सारा पैसा ठेकेदारों और जिम्मेदार अधिकारियों से वसूला जाए।
विभाग का पक्ष
इस पूरे मामले पर लघु सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता एस.के. शर्मा का कहना है कि “पूर्व में नहर में आगणन के अनुसार कार्य पूरा किया गया है और नहर में पानी चल रहा है। वर्तमान में 4 लाख रुपये की लागत से गूल की मरम्मत का कार्य किया जा रहा है।”
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि जमीनी हकीकत इससे बिलकुल अलग है। नहर में आज तक सुचारु रूप से पानी नहीं चला, और विकास के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है।
जांच की मांग
ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच कराई जाए और यदि विभागीय अधिकारी और ठेकेदार दोषी पाए जाएं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए सरकारी धन की वसूली सुनिश्चित की जाए।
अब इस पूरे मामले ने एक बार फिर ग्रामीण विकास योजनाओं की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं।


