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कख नीति कख माणा श्याम सिंह पटवारी ने कख कख जाणा

पुरोला ।

नीरज उत्तराखंडी 

गढ़वाली भाषा में एक लोकप्रिय कहावत है ” कख नीति कख माणा,एक श्याम सिंह पटवारी ने कख कख जाणा”

वही जौनसारी/बावरी/देवघारी  में भी एक रोचक कहावत है ” रड़ू जाबरी बौगी होड़ा” ।

उक्त दोनों कहावतें वर्तमान समय में  वन विभाग के टौंस वन प्रभाग  व  गोविंद वन्य जीव विहार एवं पार्क  प्रशासन पुरोला में सही साबित होती नजर आ रही  है। 

वर्तमान समय में चकराता वन प्रभाग में तैनात डीएफओ मंयक झा गोविंद वन्य जीव विहार एवं पार्क प्रशासन में उप निदेशक  और उत्तरकाशी में तैनात उप वन संरक्षक डीपी बलूनी टौंस  वन प्रभाग पुरोला के डीएफओ पद का अतिरिक्त कार्यभार भी देख रहें हैं। 

जाहिर सी बात है कि पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते चकराता और उत्तरकाशी से पुरोला वन विभागों के कामकाज देखना कितना संभव हो पायेगा ये आसानी से समझा जा सकता है ।

 हुआ यूँ कि विगत माह जब टौंस वन प्रभाग व गोविंद वन्य जीव विहार पुरोला व अपर यमुना वन प्रभाग बडकोट में तैनात आईएफएस अधिकारी  केके दम्पति का स्थानांतरण हुआ तो वन विभाग के पुरोला व बडकोट डिवीजन सहित गोविंद वन्य जीव विहार में डीएफओ व उप निदेशक के  पद खाली हो गए । 

आईएफएस दम्पति कुंदन कुमार व डाक्टर अभिलाषा सिंह जिनकी गिनती ईमानदार  अधिकारियों में होती है, के मार्च के दूसरे सप्ताह में तबादला  होने से पद रिक्त हो गए और नये अधिकारियों की नैताती न होने से उत्तरकाशी व चकराता में तैनात वन अधिकारियों को पुरोला टौस व वन्य जीव विहार  डिवीजन का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया । 

अब आलम यह है कि चकराता में  तैनात डीएफओ टौस वन प्रभाग व उतर काशी में  तैनात डीएफओ    गोविंद वन्य जीव विहार पुरोला का अतिरिक्त प्रभार भी देख रहें हैं। ।

सूत्रों के अनुसार वित्तीय वर्ष समाप्ति के दौरान अधिकारियों के स्थानांतरण से  टौंस वन प्रभाग पुरोला  से  एक बड़ी धनराशि  का वजट भी लैप्स  हो गया । उसे राजकोष में जमा करना पड़ा ।

गौरतलब है कि केके दम्पति की कार्यप्रणाली से कुछ ठेकेदार व जनप्रतिनिधि नाखुश थे। और उन पर जनहित  के  कार्यों  वन नियमों का हवाला देकर रोकने के आरोप भी लगाए गये।

और उनके स्थानांतरण को लेकर बीडीसी की बैठकों से लेकर  सांकरी पुरोला दून तक हाई वोल्टेज आन्दोलन भी हुआ था।अंततः मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा था । 

वही अब आखिर चर्चित केके दम्पति का  तबादला हो ही गया ।

बहरहाल केके दम्पति के तबादले से जहां  उनकी कार्य शैली से नाराज प्रतिनिधि व ठेकेदार खुश है वहीं उनकी कार्यशैली के कायल मायूस है।

बहरहाल वन विभाग के दोनों  प्रभागों पर खाली पड़े पदों पर अधिकारियों की तैनाती न होने से श्याम सिंह पटवारी वाली कहावत सही साबित हो रही हैं ।

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