पेपरलीक मामले मे दो साल से निलंबित काबिल अफसर संतोष बडोनी। न आरोप, न जांच, न चार्जशीट। आखिर नुकसान किसका ! सर्वोच्च न्यायालय और शासनादेश और सीएम के आदेश भी ताक पर।
तेजी से भागती इस दुनिया में क्या आप लोगों को अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पूर्व सचिव संतोष बडोनी का भी कुछ ख्याल आया है या फिर सरकार सिस्टम और आम लोग उनको पीछे छोड़ अपने जीवन में आगे बढ़ गए हैं।
वर्ष 2022 से लेकर अब तक नियम विरुद्ध निलंबन झेल रहे उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पूर्व सचिव संतोष बडोनी के खिलाफ ना तो अभी तक कोई चार्जशीट दी गई है और ना ही उनका निलंबन समाप्त किया गया है।
वह अभी तक अपने निलंबन के संबंध में 9 प्रतिवेदन विभाग को दे चुके हैं लेकिन उन पर भी कोई विचार नहीं किया गया 2 वर्ष के बावजूद भी उनका निलंबन समाप्त न होना अपने आप में शर्मनाक है।
उत्तराखंड सरकार एक बेहतरीन अफसर की कार्य क्षमता से वंचित हो रही है। विभाग ने उनका निलंबन तो कर दिया लेकिन ना तो उनके खिलाफ कोई आरोप मिला था और ना ही उनके खिलाफ कोई शिकायत थी और न ही भर्ती घोटाले की जांच कर रही एसटीएफ ने उनके खिलाफ कोई फीडबैक दिया था। फिर भी बिना कारण के उनका निलंबन कर दिया गया।
नियमो, कानूनों को ताक पर रख कर निलंबन
निलंबन संबंधी नियमों में यह स्पष्ट है कि निलंबन तभी किया जाए जब नियोक्ता के पास पर्याप्त तथ्य और आधार हैं कि संबंधित अधिकारी के विरुद्ध ऐसे प्रमाण हैं जिनके आधार पर उन्हें वृहद दंड दिया जा सके , लेकिन संतोष बडोनी के मामले में ऐसी कोई प्रमाण तो छोड़िए कोई शिकायत भी नहीं थी।
संतोष बडोनी के निलंबन का कोई औचित्य भी नहीं था क्योंकि निलंबन से 16 दिन पूर्व ही उनको यूकेएसएससी मुख्यालय से सचिवालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। और तब वह आयोग में किसी भी तरह का प्रभाव नहीं रखते थे। जाहिर सी बात है कि संतोष बडोनी का निलंबन कानून का उल्लंघन करके किया गया। क्योंकि आयोग के अधिनियम 2014 की धारा 24 में आयोग का कार्य करने वाले अधिकारियों को किसी भी कार्यवाही से संरक्षण दिया गया है। अर्थात आयोग का कार्य करने वाले अधिकारी कर्मचारी पर तब तक कोई जांच, अभियोजन या अन्य कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक संबंधित विषय में उनकी दुर्भावना की पुष्टि न हो जाए। इस प्रावधान के अनुपालन में भी कोई जांच नहीं की गई और सीधे निलंबित कर दिया गया।
लचर आरोपों की भी जांच नही
संतोष बडोनी को पेपर लीक मामले में लापरवाही, इसके पर्यवेक्षण में लापरवाही और सरकार की छवि धूमिल करने के प्रारंभिक आरोपों पर निलंबित किया गया पर निलंबित आदेश में लगाए गए इन आरोपों की कोई भी जांच पिछले लगभग 2 वर्षों की अवधि में नहीं की गई।
निलंबन के मामलों में यह प्रावधान है कि निलंबन के अधिकतम तीन माह की अवधि में आरोपी कर्मचारियों को आरोप पत्र दे दिया जाए और 6 माह तक यदि आरोप पत्र न दिया गया हो तो उसे तत्काल बहाल कर दिया जाए, लेकिन संतोष बडोनी के मामले में लगभग 2 वर्ष बाद भी इसमें से कुछ नहीं हुआ।
जिस वजह से निलंबन, वह उनकी ड्यूटी मे ही नही
यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जिन कार्यों में लापरवाही या पर्यवेक्षण की लापरवाही में निलंबित किया गया वह सचिव यूकेएसएससी के रूप में उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं था, बल्कि तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के दायित्व के आधीन था। तत्कालीन परीक्षा नियंत्रण के विरुद्ध कोई कार्यवाही की गई हो, इसका तो कोई पता नहीं, यहां तक की परीक्षा नियंत्रक के अधीन किसी भी कार्मिक पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तथा आयोग के अध्यक्ष सदस्य वाले लगभग 40 कर्मियों में से केवल सचिव पर अकेले कार्रवाई किस आधार पर की गई यह नहीं बताया गया।
सीएम के आदेश का भी उल्लंघन
मार्च 2022 में उनके निलंबन के छह माह पूरे होने पर व चार्जशीट न दिए जा सकने के कारण निलंबन समाप्त करने का प्रस्ताव कार्मिक विभाग द्वारा परामर्श के बाद उच्च अनुमोदन के लिए भेजा गया था। इस प्रस्ताव की नोटशीट पर मुख्यमंत्री द्वारा ,-“अपर मुख्य सचिव सचिवालय प्रशासन सचिव कार्मिक विभाग से वार्ता कर आवश्यक कार्रवाई कर लें।” के आदेश दिए थे, किंतु निलंबन समाप्त किए जाने के लिए दिए गए इस आदेश के 1 वर्ष चार माह में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सर्वोच्च न्यायालय व शासनादेश का भी उल्लंघन
निलंबन के मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के यह आदेश हैं कि प्रत्येक तीन माह की अवधि में निलंबन की समीक्षा की जाए और यदि निलंबन को बनाए रखने की आवश्यकता हो तो कारण सहित निलंबन विस्तार का आदेश किया जाए। इसके अतिरिक्त शासनादेश दिनांक 28 /10/2003 में प्रत्येक 6 माह पर निलंबन के मामलों को रिव्यू करने का प्रावधान है, लेकिन संतोष बडोनी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का तथा उपरोक्त शासनादेशों का भी उल्लंघन हुआ है।
इनके निलंबन की समीक्षा 2 वर्ष में केवल एक बार दिनांक 7 जुलाई 2023 को हुई। इसमें यह निर्णय हुआ कि शीघ्र आरोप पत्र दिया जाए। पर इस निर्णय के 16 माह बाद भी कोई आरोप पत्र नहीं दिया गया और निलंबन को बनाए रखने का भी कोई आदेश पारित नहीं किया गया।
एसटीएफ ने भी कुछ गलत नही पाया
वर्तमान तक पेपर लीक मामले की जांच केवल एसटीएफ द्वारा की गई है। सचिवालय प्रशासन विभाग को एसडीएम द्वारा अपने पत्र दिनांक 6.10.2022 के द्वारा यह सूचित कर दिया गया था कि संतोष बडोनी के बारे में कोई जांच नहीं कर रहे हैं।
इस प्रकार पेपर लीक की जांच करने वाली विशेषज्ञ संस्था ने संतोष बडोनी के बारे में कुछ गलत नहीं पाया। कुछ अन्य विषयों पर सतर्कता अधिष्ठान ने प्रवर्तन निदेशालय ने तथा सेवानिवृत्त आईएएस सुरेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में गठित समिति ने भी इस अवधि में लगभग सभी विषयों की जांच पूरी कर दी है।
बडोनी के आर्थिक व मानसिक कष्ट की किसको परवाह
2 वर्ष बीत जाने के बाद भी किस बात की प्रतीक्षा की जा रही है, यह स्पष्ट नहीं है।
संतोष बडोनी किन गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे होंगे, इसका किसी को एहसास नहीं है। सचिवालय प्रशासन ने 22 दिसंबर 2023 को एक आदेश दिया था, जिसमें संतोष बडोनी का जीवन निर्वाह भत्ता 95% करने के आदेश दिए थे किंतु एक साल बाद भी यह बढा हुआ भत्ता उनको नहीं मिला है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति और मानसिक परेशानियां समझी जा सकती हैं।
उत्कृष्ट रही बडोनी की सर्विस
गौरतलब है कि संतोष बडोनी की 25 वर्ष की उत्कर्ष सेवा रही है और उन्हें कई बार पुरस्कृत किया गया है।
यूकेएसएससी आयोग में सचिव के पद पर कार्य करते हुए उनकी सभी प्रविष्टियों उत्कृष्ट रही है और आयोग में योगदान के लिए तात्कालीन अध्यक्ष एस राजू ने उन्हें विशेष प्रशंसा पत्र भी दिया है।
ऐसे में राज्य द्वारा किया गया नियम व कानून विरुद्ध व्यवहार वाकई एक बेहतरीन अफसर को गहरी सामाजिक आर्थिक और मानसिक वेदना पहुंचने वाला है।
यदि संतोष बडोनी ने अन्य विधिक विकल्पों का उपयोग करके कोर्ट का सहारा लिया और कोर्ट ने उन्हें बहाल कर दिया तो फिर एक संवेदनहीन सिस्टम में हम एक बेहतरीन अधिकारी का मनोबल ही तोड़ेंगे इससे ज्यादा और कुछ नहीं। देर सबेर वह कोर्ट से पूरे वेतन के साथ बहाल भी हो जाएंगे । फिर ऐसे मे उनको इतने साल घर मे बैठाने का आखिर असली नुकसान किसको होगा इसका आकलन कठिन नही है।