जगदम्बा कोठारी
कोरोना महामारी को लेकर देश विदेश मे हाहाकार मचा है। लाॅक डाउन के चलते लोग जहां तहां सड़कों पर भूखे प्यासे घूम रहे हैं। किसी के पास छत नहीं है तो सैकड़ों भूखे पेट ही पैदल गंतव्य की ओर निकल पड़े हैं।
उत्तराखंड सरकार न तो “जो जहां है, उनको वहीं रोकने” के लिए बंदोबस्त कर पाने में सफल हो रही है और ना ही उनको उत्तराखंड में उनके घरों तक पहुंचाने में कारगर पहल कर पा रही है। जबकि दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किसी काम के लिए 1000 बसों को सड़क पर उतार दिया है। उत्तराखंड सरकार की एक तारीफ तो बनती है कि अपने लोगों को भले ही वह उत्तराखंड लाने की व्यवस्था नहीं कर पा रही हो लेकिन गुजरात के लोगों को उत्तराखंड से गुजरात पहुंचाने के लिए जरूर व्यवस्था कर दी है।
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आए दिन हेल्पलाइन नंबर बदले जा रहे हैं और अक्सर उन नंबरों को बंद करके सरकार की इज्जत उतारने में लगे हुए हैं। जो नंबर बंद हो जा रहे हैं, वे लगातार सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड हो रहे हैं और लोग और भी अधिक कंफ्यूज हो रहे हैं तथा सरकार को कोस रहे हैं।
एक वट्सैप ग्रुप का स्क्रीनशाॅट। ऐसे निकल रहा गुस्सा
उत्तराखंड के जोशीमठ जैसे सीमांत कस्बों से लेकर उत्तर प्रदेश की लगती सीमाओं तक मैदानों में लोगों के जत्थे पैदल पैदल दिन-रात आ जा रहे हैं। अधिकांश लोगों की न कोई खोज खबर लेने वाला है और ना ही उन्हें भोजन पानी के लिए पूछने वाला।
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गढ़वाल और कुमांऊ के जिलों मे सड़कों पर लोग सैंकड़ों किलोमीटर दूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं उनके लिए कोई परिवहन सेवा नहीं है। ऐसे मे उत्तराखंड सीएम की प्रदेश भर मे निंदा हो रही है। हजारों उत्तराखंडी प्रवासी देशभर मे जगह जगह फंसे हैं लेकिन सरकार अपने फंसे हुए प्रदेशवासियों के प्रति कितनी लापरवाह है कि इस बात का अंदाजा लगाना बहुत आसान है।
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सभी फंसे हुए नागरिकों की सहायता के लिए सरकार ने तीसरी बार हेल्प लाईन नम्बर जारी किया मगर पहले जारी किये गये दो नम्बरों की तरह इस नम्बर पर भी फोन करने पर यह ‘स्थायी रूप से सेवा मे नहीं है’ बता रहा है। अब प्रदेश के मुखिया के नेतृत्व पर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि या तो प्रदेश के अधिकारी सीएम के आदेशों को गम्भीरता से नहीं लेते या फिर त्रिवेंद्र रावत द्वारा जनता को टोपी पहनायी जा रही है।
तीन दिन पहले त्रिवेन्द्र सरकार ने दिल्ली मे उत्तराखंड सरकार के रेजीडेंट कमिश्नर ईला गिरी को इन फंसे लोगों की मदद के लिए प्रभारी नीयुक्त किया। इनको सहायता के लिए नम्बर 09634636389 जारी किया गया लेकिन ईला गिरी ने सहायता करना तो दूर किसी भी पीड़ित का फोन तक रिसीव किया। उसके बाद 24 मार्च को इसी काम के लिए पीसीएस रैंक के अधिकारी आलोक पांडे की नियुक्ति हुई और सरकार की ओर से फिर एक नया नम्बर जारी हुआ और वह भी स्विच ऑफ जा रहा था। अब फिर सरकार ने एक नया नम्बर 9997954800 जारी किया लेकिन डायल करने पर ‘यह नम्बर उपलब्ध नहीं है।’बताया जा रहा है।
ऐसे मे सरकार से मदद की आस लगाये पीडितों मे सरकार के प्रति गुस्सा पनपना जायज है। राज्य सरकार को अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से सीख लेनी चाहिए। सीएम योगी ने देशभर मे फंसे अपने नागरिकों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए एक हजार बसों के आपातकालीन संचालन को मंजूरी दी है वहीं उत्तराखंड सरकार सीएम योगी के आदेश पर दिल्ली से ॠषिकेश भेजे गये 200 उत्तराखंडियों को भी घर नहीं पहुंचा सकी। यूपी की बसों मे आये कुमांऊ के निवासियों को हल्द्वानी और गढ़वाल के निवासियों को ऋषिकेश छोड़ दिया गया इसके बाद आगे की कोई व्यवस्था सरकार नहीं कर सकी है।
पर्वतजन लगातार पाठकों तक विभिन्न जगह फंसे कामगर युवाओं की खबर पहुंचा रहा है। दर्जनों लोग ऋषिकेश से रूद्रप्रयाग तक पैदल ही पहुंच चुके हैं और सैकड़ों सड़कों पर हैं। सरकार एक तरफ तो लाॅक डाउन मे छूट तीन घंटे से बढाकर छह घंटे कर रही है वहीं दूसरी ओर यातायात सेवा पूरी तरह से बंद की गयी है। ऐसे मे सरकार को दून,ऋषिकेश, हल्द्वानी जैसे शहरों से प्रत्येक जिले के लिए कम से कम एक या दो बस सेवा तो शुरू करनी ही चाहिए जिससे रास्तों मे फंसे लोग अपने घरों तक जल्द और सुरक्षित पहुंच सकें वरना वर्तमान स्थिति प्रदेश मे कोरोना से ज्यादा घातक हो सकती है।