बात 28 मार्च 2019 की हैं जब देहरादून में दैनिक जागरण के कार्यालय में उत्तराखंड के नामी समाजसेवियों की एक बैठक हुई| बैठक की अध्यक्षता उत्तराखंड पलायन आयोग के अध्यक्ष SS Negi ने की ।
उत्तराखंड के अनेकों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस बैठक में पलायन के कारणों को खोजा और पलायन के बाद अपवाद व अवसर पर ध्यान केंद्रित किया गया। गति फाउंडेशन के अध्यक्ष व 108 जीवनदायिनी एम्बुलेंस सेवा के सूत्रधार अनूप नौटियाल ने पलायन के 19 वर्ष का लेखा जोखा रखा। जिस से जलवायु,जलश्रोतों व ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़े बुरे प्रभाव का जिक्र किया गया था।
इस बैठक में तृणमूल इकोनॉमी पर जब चर्चा हुई, तो हैरानी भरे तथ्य सामने आए। अनेकों ग्रामीण आज भी 5₹ प्रतिदिन के आय पर आश्रित हैं। एकल परिवारों का कुनबा तैयार हो रहा हैं। नशाखोरी से पहाड़ धड़क रहे है
सामाजिक कार्यकर्ता देवेश आदमी बताते है कि, इस बैठक में मुझे भी विशेष आमंत्रण मिला था| बैठक में मुझे अपनी बात रखने का पूरा समय दिया गया। चूंकि बैठक लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आहूत की गई थी इसलिए मेरा उद्देश्य था कि, उत्तराखंड के 5 सीटों पर चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाये। उत्तराखंड की जनता को जातिवाद, राममन्दिर, पाकिस्तान, हिन्दू मुस्लिम जैसे मुद्दों पर न भटकाया जाये| पहाड़ में जातिवाद का जहर लेकर कोई चुनाव यात्रा न करें।
इस बैठक के 3 दिन बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने EC रोड़ पर उत्तराखंड जागरूकता सम्मेलन किया| जिसमें मुख्यमंत्री ने मंच से मुझे बात रखने के लिए आमंत्रित किया ।
अनेकों सामाजिक कार्यकर्ताओं व शंत साधुओं से सुसज्जित सभागार में मैंने धर्म जाति व सीमापार पर चुनाव न लड़ने की बात कही,जिस में मेरे उद्देश्य सिर्फ सामाजिक आर्थिक राजनीतिक विकासवाद था| मैंने यह भी बात रखी कि, हमें धार्मिक विस्तारवाद सोच छोड़ विकासशील मानसिकता की उपज तैयार रखनी चाहिए। जिस का सभी शंतों ने खंडन किया|
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत व सुनील उनियाल गामा खजान दास सहित अनेकों राजनीतिक व्यक्तियों के साथ उसी दौरान चाय पीते पीते बात हुई| जिस में पुनः मैंने अपने वक्त्व का जिक्र किया, जिस को सभी लोगों ने स्वीकार किया |मेरी सोच की तारीफ भी की, मगर वे किसी डोर से बंधे है यह मजबूरी जताई।
उस बैठक में मेरे साथ मेरी मित्र मधु बिष्ट थी,जो प्रेस क्लब देहरादून की अध्यक्ष हैं| वो इस बात से चौंक गई कि, जनप्रतिनिधियों के कितने चेहरे होते हैं। सभी पत्रकार मित्रों ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि, सामाजिक मुद्दों के मर जाने के कारण ही उत्तराखंड का विकास रुका हुआ है| वैश्विक मुद्दों का बोलबाला स्थानीयता को खत्म कर देता है|
जिन को रोटी की उम्मीद है, उन्हें बोटी का प्रलोभन दिया जाता है| “अंत में न अन मिला न अना” समाज खुद में खुद से ठगा हुआ महसूस करता है। जिस सवाल का जवाब हम दैनिक जागरण के दफ्तर में खोज रहे थे, उस का जवाब हमें मुख्यमंत्री के सभागार में मिला।
सामाजिक कार्यकर्ता देवेश आदमी कहते है उस दिन मेरी समझ में आ गया कि, पार्टी विचारधारा व्यक्ति की विचारधारा को किस तरह खत्म करती है।
अंत में जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो अनेकों आंतकी हमलों से देश दहल उठा | फिर पाकिस्तान हिन्दू मुस्लिम हिंदुत्ववादी शब्दों ने पहाड़ की असल समस्या का गला घोंट दिया। किसी ने भी पहाड़ के विकास का मुद्दा धरातल से नही उठाया। पांचो लोकसभा सीटों पर BJP को जीत हासिल हुई और पहाड़ आज भी हांसिये पर हैं।
न तब पहाड़ के मुद्दे सामने आए, न अब पहाड़ के मुद्दे सुने जा रहे है| अनैच्छिक विकास कार्य, अदृष्य जनमानुष यही आया पहाड़ के हिस्से। ठगा हुआ पहाड़ी आज भी मलीन बस्तियों का वसिंदा हैं कल भी रहेगा।