Google ने आज शनिवार को तिब्बत का नक्शा तैयार करने वाले पंडित नैन सिंह पर अपना डूडल तैयार किया है।आज उनका जन्मदिन है
बिना किसी तामझाम के उन्नीसवीं शताब्दी में सिर्फ एक कंपास , कंठी तथा रस्सी के सहारे उन्होंने पूरा तिब्बत नाप दिया था।
आज के ही दिन यानी 21 अक्टूबर 1831 को पंडित नैन सिंह रावत का जन्म हुआ था।
यह दुख की बात है कि हमारी सरकारें हमारी ही धरोहरों को भूल गई है।
किंतु Google ने उन पर डूडल बनाकर यह बताया है कि पंडित नैन सिंह उत्तराखंड ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय धरोहर है। जिस पर हम लोगों को तो स्वाभिमान होना ही चाहिए।
यह उस दौर की बात है जब, अंग्रेज पूरे भारत का नक्शा तैयार कर रहे थे। किंतु कैप्टन माउंटगुमरी के नेतृत्व में तैयार हो रहे इस नक्शे के लिए तिब्बत जाने की मनाई होने के कारण अड़चन आ गई।
ऐसे में 18632 पंडित नैन सिंह ने यह नक्शा तैयार किया था। पंडित नैन सिंह रावत का जन्म पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील में स्थित मिलम गांव में ही हुआ था। भारत तिब्बत व्यापार मार्ग का मानचित्र और ल्हासा तथा तिब्बत के एक बड़े भू-भाग का मानचित्र उन्होंने ही तैयार किया था।
21 अक्टूबर 1830 को जन्मे पंडित नैन सिंह ने इस मानचित्र के लिए तिब्बती भाषा सीखी। उन्हें अंग्रेजी और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था। पहाड़ प्रकाशन ने उन पर एक पूरा का पूरा ग्रंथ लिखा है। उनके अथक ज्ञान के कारण ही ठाकुर होते हुए भी उन्हें पंडित की उपाधि मिली थी।
ऐसे तैयार किया था नक्शा
नक्शा तैयार करने के लिए अंग्रेजों ने नैन सिंह को खुफिया तरीके से तिब्बत भेजा था। यदि वे पकड़े जाते तो उन्हें मार दिया जाता। इसलिए नैन सिंह रावत बौद्ध भिक्षु के रूप में तिब्बत गए। लगभग 1863 से 1877 के बीच उन्होंने तिब्बत के बंद दरवाजों से दुनिया को परिचित कराया।
वह चमोली जिले के माणा पास से होते हुए तिब्बत पहुंचे थे तथा शिमला से लेकर लद्दाख से लहासा और असम तक की तमाम यात्राएं करके उन्होंने वह काम कर डाला जो अंग्रेजों के लिए भी असंभव था।
डेढ़ दशक पहले भारत सरकार ने उन पर डाक टिकट भी जारी किया था। अंग्रेजों ने उन्हें यात्रा पूरी होने के बाद बरेली में जागीरदार बना दिया और उन्हें कंपेनियन ऑफ दी इंडियन एंपायर की उपाधि दी।
आज के दिन हमें अपने हिमालय पुत्र से सबको अवगत कराना तो बनता है ना!!