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आयुर्वेद में चलता है मृत्युन्जय मिश्रा का सिक्का!

August 25, 2017
in पर्वतजन
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रिश्तेदारों को बनाया गया है अफसर।  घर बैठे दी जा रही तनखाह

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून की जड़ में मृत्युंजय मिश्रा द्वारा उत्पन्न किया गया भ्रष्टाचार वर्तमान विश्वविद्यालय प्रशासन में भी जारी है।
इसमें उत्तराखंड शासन के आला अधिकारी भी सहभागी हैं।
ज्ञात हो कि उक्त विश्वविद्यालय ने भ्रस्टाचार और गबन घोटालों की सभी सीमायें पार कर आये दिन समस्त मीडिया में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है। इसकी यदि गहराई से राज्य सरकार किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच कराए तो करोड़ों रुपये के घोटाले पाये जाएंगे।
परंतु पूर्व सरकार की भांति ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टोलरेंस का दम भरने वाली वर्तमान सरकार से भी यह अपेक्षा करना व्यर्थ ही है क्योंकि विश्वविद्यालय के समस्त भ्रस्टाचार में उच्च अधिकारियों के भी लिप्त होने के कारण ऐसा कुछ सम्भव नहीं है।
इसी कड़ी में मृत्युंजय मिश्रा के जमाने से ही प्रारंभ विश्वविद्यालय में अवैध नियुक्तियों, निर्माण कार्यों,वाहनों, उपकरणों आदि के क्रय- विक्रय एवम् उनके उपयोग आदि में व्यापक अनियमिताएं विद्यमान है।

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मृत्युंजय मिश्रा द्वारा अवैध तरीके से नियुक्त कई कर्मियों और वाहनों को उन्होंने अपने कार्यकाल में उच्च अधिकारियों और राजनेताओं की चाकरी मे लगाया हुआ था जिससे उन्हें उन रसूखदारों का पूरा सहयोग मिलता रहा है।
हद तो तब हो गई कि उन्होंने अपने एक निजी संबंधी मिस आरती को भी तीन वर्ष पूर्व उपनल के माध्यम से कनिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्त कर अपने ही आवास को कैम्प कार्यालय बनाकर वहीं पर तैनात दिखा दिया। जबकि विश्वविद्यालय के ढांचे में कैम्प कार्यालय का प्रावधान ही नहीं है। यह कार्यालय तो देश में आकस्मिक सेवा देने वाले विभागों के मुखियाओं के लिए होता है। जबकि वह तो न ही विश्वविद्यालय के मुखिया थे और न ही विश्वविद्यालय कोई देश को आकस्मिक सेवायें देता है।
इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के कई उच्च संसाधन युक्त वाहनों, चालकों और अन्य कर्मियों को कैम्प कार्यालय के नाम पर अपने निजी पारिवारिक कार्यो हेतु तैनात कर उसका भरपूर उपयोग किया।इन कारनामों को गहराई से तत्कालीन कुलपति महोदय डॉ. एस. पी. मिश्रा ने संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड शासन के सचिव को दिनांक 19/08/2016 को कार्यवाही करने हेतु कड़ा पत्र लिखकर अवगत कराया परन्तु हमाम में सब नंगे होने के कारण कोई भी कार्यवाही नही हुई।

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इसके उपरांत सभी हदें तो तब पार हो गई जब भारी जनांदोलन के बाद शासन इन्हें 30 मार्च को यहां से हटाने हेतु बाध्य हुआ। परन्तु यह जनाब तो विशेष जीवन बीमा पॉलिसी करा चुके हैं। जिसका लाभ इन्हें विश्वविद्यालय के साथ भी और यहां से जाने के बाद भी मिल रहा है। यह जनाब आज भी विस्वविद्यालय की सबसे नई बोलेरो गाड़ी नम्बर UK 07 GA 1753 और उसको चलाने वाला इनका अति विश्वसनीय चालक अवतार जिसका मोबाइल नंबर 9639656487 है वह और इनका अति विस्वसनीय चतुर्थ श्रेणी का कर्मी सुरजीत लाल आज भी इन्ही के साथ कार्य कर रहा है और इनकी निजी संबंधी मिस आरती जिनको आज तक विश्वविद्यालय के किसी भी कर्मी ने देखा भी नहीं है तो उन्होंने तीन वर्षों में भला कौन सा कार्य किया होगा!परन्तु उन्हें मृत्युंजय मिश्रा के जाने के बाद भी वर्तमान विश्वविद्यालय प्रसासन नियमित रूप से जुलाई माह तक का वेतन ईमानदारी पूर्वक उनके PNB के खाता संख्या 1843000400087319 के माध्यम से प्रदान करता आ रहा है और यही नहीं उनका नियमित EPF भी उनके EPF खाता संख्या 19368 में ईमानदारी से ही जमा कर रहा है और उनके साथ ही उनके दोनों अन्य सहयोगी वाहन चालक और चतुर्थ श्रेणी कर्मी को भी उनके नियमित वेतन और EPF का भुगतान विश्वविद्यालय करता आ रहा है और यही नहीं, उनके उस वाहन के ईंधन का भी भुगतान यहीं से हो रहा है जबकि विश्वविद्यालय हमेशा आर्थिक अकाल का रोना रोते हुए अपने प्रांतीय रक्षा दल(PRD) कर्मियों समेत अन्य संविदा कर्मचारियों के वेतन में कटौती करता रहता है , जिसको लेकर उक्त कर्मी कई बार कुलसचिव को अपनी वेतन कटौती और मृत्युंजय मिश्रा के साथ कार्य करने वाले कर्मियों को पूर्ण वेतन प्रदान करने की शिकायत कर चुके हैं। यहां तक कि विश्वविद्यालय प्रशासन वित्तीय तंगहाली के चलते परीक्षा केंद्रों के परीक्षाओं में कार्य करने वाले कर्मियों और परीक्षकों के मानदेय का भी भुगतान नही कर पा रहा है।यह सब भ्रस्टाचार मृत्युंजय मिश्रा के जमाने से लेकर वर्तमान प्रशासन तक विश्वविद्यालय के तथाकथित वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जो पद विश्वविद्यालय के ढांचे में है ही नहीं परन्तु उस पद पर विद्यमान श्री मुकुल काला एवं पूर्व लेखाधिकारी सन्त राम पांचाल के सहयोग से होता आ रहा है क्योंकि सभी कर्मियों की उपस्थिति ,उनके द्वारा निष्पादित कार्यो और आहरित वेतन के सत्यापन का दायित्व प्रशासनिक अधिकारी का ही होता है और सभी तरह के भुगतान करने की जिम्मेदारी और उसका लेखा जोखा का दायित्व सन्त राम पांचाल की थी इस लिये बिना दोनों की सहमति के ऐसा घोटाला सम्भव ही नहीं है। यह सब आसानी से इसलिए भी सम्भव हो रहा है कि सभी वित्तीय अधिकार लेखाधिकारी को पूर्व स्वयंभू कुलसचिव ने अवैध तरीके से साजिशन प्रदान कर दिया था जो कि वर्तमान में भी जारी है। जबकि नियमानुसार लेखाधिकारी बिना वित्त नियंत्रक के अनुमोदन प्राप्त किये कोई भी भुगतान नही कर सकता है और यह पद विश्वविद्यालय में सृजित भी है और शासन ने वित्त विभाग के अधिकारी श्री संजीव सिंह को नियुक्त भी किया है और वह यहां आते भी हैं परन्तु उनसे अनुमोदन तो छोड़िए कोई सलाह भी नहीं ली जाती है, इन समस्त कारनामों की पूरी जानकारी वर्तमान प्रभारी कुलपति को भली भांति है क्योंकि वह स्वयं भी यहां के कुलसचिव के पद पर भी कार्य किये है और उनके सहमति से ही उपरोक्त सभी कर्मचारियों को उनके कार्यकाल में भी नियमित वेतन का भुगतान किया गया है।
ऐसा नहीं है कि यह आपत्ति पूर्व कुलपति एस. पी. मिश्रा ने ही किया है, क्योंकि विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार के उन्मूलन हेतु उसके विरूद्घ अभियान छेड़ने वाले कुशल प्रशासक पूर्व कुलपति डॉ. सौदान सिंह के भी संज्ञान में यह मामला उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में आया था। जिस पर उन्होंने कार्यवाही भी प्रारंभ की परन्तु संबंधित अधिकारी मुकुल काला और सन्त राम पांचाल ने अपने बचाव हेतु तत्कालीन कुलसचिव जो कि वर्तमान कुलपति हैं उनसे लम्बे समय का अवकाश लेकर अक्सर गायब ही रहे जिससे कार्यवाही आगे नही बढ़ सकी।

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के जड़ में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक जिंदा नमूना-

आये दिन अनियमित कार्यो और भ्रस्टाचार को लेकर कीर्तिमान स्थापित करने वाले इस विश्वविद्यालय का एक जिंदा नमूने के रूप में विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री मुकुल काला भी है जो कि अपने योगदान के समय से ही विवादित रहे हैं क्योंकि विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का पद ही सृजित नही है। उसके बावजूद भी यह महाशय अपने आका पूर्व स्वयंभू कुलसचिव की कृपा से इस पद पर विद्यमान है जबकि इन पर विश्वविद्यालय की परिसंपत्तियों के खरीदारी से लेकर उनको खुर्दबुद करने, विश्वविद्यालय के पूर्व वर्षों में होने वाली नियुक्तियों हेतु आये आवेदकों के दस्तावेजों में छेड़छाड़ करने आदि जैसे संगीन आरोप लग चुके हैं जिसको इन्होंने अपने दिनांक 15/12/2016 के पत्रांक के माध्यम से लिखित रूप से स्वीकार भी किया है।ज्ञात हो कि यह महाशय राजकीय महिला इण्टर कालेज श्रीनगर से लिपिकीय सेवा के कर्मचारी के रूप में कार्य करते हुए अपने राजनैतिक एवं नौकरशाही में पैठ के बदौलत इस विश्वविद्यालय में अवैध तरीके से इस असृजित पद तक पहुंचे हैं जबकि इनके अवैध कार्यपध्दति को देखते हुए तत्कालीन महान कुलपति डॉ. एस. पी. मिश्रा जी ने इनके कार्यकाल को बढाने हेतु लिखित आपत्ति उत्तराखंड शासन के सचिव से की थी परंतु उसके बावजूद भी बिना उनके अनुमोदन के इनका कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया जो कि इसी माह के इसी सप्ताह 20 जुलाई को समाप्त हो गया है। जिसे इनके उच्च रसूखों के दबाव में पुनः बढ़ाने की कार्यवाही प्रारंभ हो गई है ,जबकि इनके कारनामों की पूरी जानकारी विश्वविद्यालय के पूर्व एवं वर्तमान प्रशासन को भलीभांति है और ऐसा नहीं है कि इनके विरुद्ध अभी तक कोई विभागीय कार्यवाही नही की गई है ।वह दिखावटी की गई है,इनके कारनामों की वजह से कुछ पीड़ित लोग उच्च न्यायालय भी गए, जहां से हुई फजीहत और अनेक शिकायतों तथा तत्कालीन कुलपति महोदय के हस्तक्षेप के चलते इनके आका ने ही कई स्पष्टीकरण और क्रय विक्रय सामग्रियों के दुरुपयोग और उन्हें खुर्दबुद करने की जांच एवम् उनके भौतिक सत्यापन हेतु अपने पत्रांक सँ.513 दि. 15/6/2015, 3230 दिसम्बर 2016, 3708 जनवरी 2017, 17768 जनवरी 2016, 2086 अगस्त 2016,आदि के माध्यम से कई समितियां भी बनाई और उनके निर्देशानुसार समिति के सदस्यों ने जांच भी प्रारंभ की। परन्तु सभी समितियों को इन्होंने ठेंगा दिखा दिया।

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उन्हें न तो कोई दस्तावेज उपलब्ध कराया और ना ही कोई सहयोग किया। जिसके सन्दर्भ में तत्कालीन उप कुलसचिव श्री कुमुद उपाध्याय ने अपने भिन्न-भिन्न पत्रांकों के माध्यम से चार बार अनुस्मारक पत्र जारी किया परन्तु वह तो इ

नका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके उल्टे इन्होंने अपने रसूखों के बल पर उनकी ही विश्वविद्यालय से छुटटी करा दी। उनके बाद तत्कालीन स्वयंभू कुलसचिव के अति निकट उपकुसचिव डॉ. आलोक श्रीवास्तव की अध्यक्षता में समिति बनायी गयी और उन्होंने भी जाँच आगे बढाई परन्तु कतिपय कारणों से वह भी असफल रहे, इनके विरुद्ध कार्यवाही का प्रयास करने वाले तत्कालीन कुलपति डॉ. एस. पी. मिश्रा जी को भी विश्वविद्यालय से ही जाना पड़ा, उसके बाद महान प्रशासनिक एवम शिक्षाविद डॉ. सौदान सिंह जी ने भी विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान छेड़ा और उसी क्रम में इनके कारनामों पर भी उनकी नजर पड़ी तो उन्होंने इनके विरुद्ध कार्यवाही को प्रमुखता दिया तथा जांच और कार्यवाही हेतु तत्कालीन प्राभारी कुलसचिव डॉ. अरुण त्रपाठी जो कि वर्तमान प्रभारी कुलपति हैं ,को निर्देशित किया और उनके निर्देशानुसार तत्कालीन कुलसचिव ने भी इनके विरुद्ध मई 2017 में उच्चस्तरीय तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जिसमें वर्तमान परिसर निदेशक डॉ. पंकज शर्मा, वित्त नियंत्रक संजीव सिंह एवं डॉ. आर. बी. शुक्ला जी थे,उक्त समिति ने भी निष्पक्षता से जांच आरम्भ की परन्तु इन महाशय इन्हें भी कोई सहयोग नही किया, जबकि उक्त समिति ने भी इन्हें कई अनुस्मारक दिये।
अंततोगत्वा तत्कालीन कुलपति ने स्वयं ही दिनाँक 13 जून 2017 को अपने पत्रांक सँ. 839/आ. वी./प्रशा./2017-18 के माध्यम से कार्यवाही की जो कि उनके इस विश्वविद्यालय से जाने का कारण बना।यह सब भ्रस्टाचार के विरूद्ध जीरो टालरेंस की नीति पर चलने का दम भरने वाली वर्तमान राज्य सरकार के मुखिया के अपने विधानसभा क्षेत्र डोईवाला के अंदर आने वाले इस विश्वविद्यालय का है, अब देखना है कि ऐसे अधिकारी के सभी कारनामों से भली भांति अवगत वर्तमान प्राभारी कुलपति जिन्होंने प्रभारी कुलसचिव के रूप में इनके विरुध्द कार्यवाही आरम्भ किया था उनका अगला कदम क्या होगा।
आरती जो कि मृत्युंजय मिश्रा की भाभी है, यह उनके जुलाई माह के सैलरी का डिटेल है जिसे विश्वविद्यालय ने उपनल के माध्यम से PNB के एकाउंट में भेजा है।


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