घोषणाओं और हकीकतों में कितना अंतर होता है, इसका सबसे शर्मनाक पहलू रविवार को पौड़ी के नैनीडांडा धुमाकोट में हुई बस दुर्घटना के मामले में सामने आया। जब यह पता चला कि इन शवों को ढकने के लिए कवर बैग तो दूर, सफेद कपड़ा तक नहीं था।
इस बस दुर्घटना में 48 यात्रियों की मौत हो चुकी थी, इसके बावजूद पौड़ी से घटनास्थल की तरफ रवाना हुई आपदा प्रबंधन की टीम शवों को ढकने के लिए अपने साथ कवर बैग तक नहीं ले गई। जबकि पौड़ी पुलिस के पास 50 कवर बैग अभी भी उपलब्ध हैं।
जब शवों का पोस्टमार्टम कराया गया तो सवाल आया कि शवों को ढकने के लिए क्या इंतजाम है !
हालात यह हो गए कि धुमाकोट बाजार में इतने शवों को ढकने के लिए सफेद कपड़ा तक नहीं मिल पाया। फिर किसी तरह लाल, नीला, पीला जो जैसा कपड़ा मिला, उससे शवों को ढका गया।
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की खाली हाथ पहुंची टीम को देख कर स्थानीय कसाण गांव के ग्राम प्रधान ललित पटवाल और अन्य ग्रामीण गुस्से में थे, लेकिन ग्रामीणों ने किसी तरह काफी प्रयत्न करके शवों को बाहर निकाला। गौरतलब है कि इस टीम के पास घटना स्थल पर ले जाने के लिए स्ट्रेचर, सेटेलाइट फोन और आयरन कटर तक नहीं थे। जबकि जिले में यह सब उपलब्ध हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सब सामग्री मात्र दिखाने के लिए रखी गई है?
यदि आयरन कटर होता तो दुर्घटनाग्रस्त बस को काटकर दबे हुए यात्रियों को और भी जल्दी निकाला जा सकता था क्या पता किसी की सांसे लौट आती !
जनता दरबार में अध्यापिका उत्तरा बहुगुणा के मामले में चौतरफा आलोचनाओं का शिकार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुआवजे तथा घायलों के प्रति मीडिया के माध्यम से अपनी सक्रियता तो दिखाई लेकिन धरातल पर समस्याओं के निस्तारण के प्रति कोई संवेदना नहीं दिखाई। यही कारण था कि उन्हें साढे तीन घंटे तो एविएशन कंपनी को हैलीकॉप्टर के लिए मनाने मे लग गए और यहाँ के हाल ये कि कफन को कपड़ा तक नही। यही नही घायल हल्द्वानी चिकित्सालय ले जाए गए तो वहां डाक्टर ठीक से देखने को राजी नही।