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खुशखबरी: तो अब शून्य अंक वाले भी बन सकेंगे  चिकित्सक !

October 21, 2017
in पर्वतजन
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 तो अब UAPMT परीक्षा में शून्य अंक पाने वाले छात्र/छात्रायें भी बन सकेंगे आयूष चिकित्सक। विश्वविद्यालय ने जारी की 23 अक्टूबर तक रजिस्ट्रेशन कराने की विज्ञप्ति-
 उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून ने राज्य के शासकीय और निजी आयुर्वेद, होमियोपैथी और यूनानी चिकित्सा महाविद्यालयो में BAMS, BHMS, BUMS पाठ्यक्रम हेतु शासकीय कोटे की सीटों में प्रवेश हेतु संयुक्त प्रवेश परीक्षा विगत 03 सितंबर को कुमाऊँ और गढ़वाल मंडल के विभिन्न परीक्षा केंद्रों में आयोजित कराई थी।
 इसके लिए 3500 रुपये प्रति परीक्षार्थी का ऑनलाइन आवेदन शुल्क जमा कराया था। जबकि CBSC समेत देश के सभी प्रदेशों में इस प्रकार की परीक्षाओं हेतु अधिकतम शुल्क 1500 -2000 निर्धारित है।
अभिभावकों को अपने पाल्य/पाल्या को यह परीक्षा दिलाने में लगभग पाँच से दस हजार रुपए खर्च हुए।अत्यधिक परीक्षा शुल्क होने के चलते देश भर के मात्र 2750 छात्रों ने ही आवेदन किया।
 इसमें नियमानुसार मात्र आरक्षित श्रेणी के छात्रों को मिलाकर मात्र 474 छात्र/छात्रायें ही उत्तीर्ण हुए, यह देश और राज्य का दुर्भाग्य ही है कि यह संख्या शासकीय कोटे की सीटों को भी नहीं स्पर्श कर पाई। इतनी अधिक परीक्षा शुल्क की रही-सही कसर भारी विवादों में विगत दिनाँक 08-10 अक्टूबर को सम्पन्न हुई काउंसलिंग ने पूरी कर दी। इसमें छात्रों से भारी भरकम सुरक्षा धरोहर राशि के साथ-साथ 3500रुपये प्रति छात्र काउंसलिंग शुल्क के भी वसूले गये। यह राशि भी NEET समेत अन्य राज्यों की होने वाली प्रवेश काउंसलिंग से बहुत अधिक थी। इसके कारण उत्तीर्ण 474 अभ्यर्थियों में से मात्र 350 अभ्यर्थी ही उक्त काउंसलिंग में सम्मिलित हुए, जो कि शासकीय कोटे की कुल सीटों का लगभग 50% ही था।  अभिभावकों को अपने पाल्य/पाल्या को इस काउंसलिंग में भी सम्मिलित कराने के लिए पुनः पाँच से दस हजार रुपए खर्च करने पड़े। साथ में दो दिन लावारिस विश्वविद्यालय परिसर में भटकना अलग से पड़ा।
 विश्वविद्यालय ने इतना मोटा काउंसलिंग शुल्क लेने के बावजूद  छात्रों और परिजनों को न्यूनतम सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई गई, जबकि NEET और अन्य राज्यों की भांति इस काउंसलिंग को ऑनलाइन कराकर इन समस्याओं से बचते हुए प्रवेश प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाया जा सकता था।
  प्रश्न यह उठता है कि राज्य में आयूष पद्धति के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के गिरते हुए स्तर के लिए जबाबदेही किसकी निर्धारित हो ?
जब पहली ही काउंसलिंग से यह स्पष्ट हो गया था कि शासकीय कोटे की आधी सीटें ही भर रही हैं तो तत्काल दूसरी काउंसलिंग की तिथि क्यों निर्धारित नही की गई ?
 20 अक्टूबर को दोपहर बाद 17 अक्टूबर की तिथि में बनी यह विज्ञप्ति विश्वविद्यालय की बेबसाइट पर अपलोड क्यों की गई ?
रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि 23 अक्टूबर तो निर्धारित की गई है, परन्तु इसका आज तक किसी भी समाचार पत्र में न तो विज्ञापन दिया गया है और न ही खबर के रूप में छपवाने का कार्य किया गया है तो भला आम जनमानस को इसकी जानकारी कैसे हो सकती है! यह महज विश्वविद्यालय के  वेबसाइट पर भी 20 अक्तूबर को अपलोड किया गया है।
  यह विश्वविद्यालय 17- 22 तक बन्द है। बेवसाइट इतनी आधुनिक और अपडेट रहती है कि वर्षो पुरानी न्यूज उस पर चलती रहती है।
आनन फानन में इतने गंभीर कार्य हेतु लिया गया यह फैसला कुछ और ही इशारा करता है!
 इससे बुरा अब इस राज्य का क्या हो सकता है कि आयूष पद्धति में अब UAPMT परीक्षा में मात्र सम्मिलित हुए अभ्यर्थी ने चाहे शून्य अंक ही प्राप्त किए हों वह BAMS, BHMS, BUMS, चिकित्सक बन सकता है। तो भला ऐसे चिकित्सकों से बेहतर इलाज की क्या आशा की जा सकती है!
 हमारे समाज में तो चिकित्सकों को उनके चिकित्सीय ज्ञान और कुशलता के चलते ही दूसरे भगवान का दर्जा प्राप्त है। राज्य सरकार एवं विश्वविद्यालय की व्यावसायिक नीति, उसकी अकुशलता और उदासीनता के चलते ही आज आयूष पद्धति की यह स्थिति आई है कि कैसे भी अभ्यर्थियों का प्रवेश सम्भव होने जा रहा है। यदि यही सब होना था तो बिना मतलब कुशल अभ्यर्थियों और आम जनता के तन- मन- धन तथा उनके कीमती समय को क्यों बर्बाद किया गया!इसका जवाब दिया ही जाना चाहिए!

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