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डाक्टर हुए विश्वविद्यालय के हवाले : पड़े वेतन के भी लाले

गिरीश गैरोला//

आयुष बिगाड़ सकता है विभाग का हाजमा।

चिकित्सा संवर्ग के डॉक्टर अर्ध शासकीय विभाग के हवाले।

कर्मचारियों को पड़ सकते हैं वेतन के लाले।

आयुर्वेद यूनिवर्सिटी का तय नहीं हुआ अभी तक ढांचा।

चुप्पी साधे हैं उच्चाधिकारी

आयुष के जरिये सूबे के सेहत सुधारने की उम्मीद पाले लोगों के लिए बुरी खबर है। आयुष नाम के वटवृक्ष को खाद–पानी  देने वाले कर्मचारियों को ही वेतन के लाले पड़ने लगे हैं। निदेशक आयुर्वेद ने चिकत्सा संवर्ग के डॉक्टर्स को अर्ध शासकीय आयुर्वेद यूनिवर्सिटी मे नियम को ताक पर रखकर तबादला कर दिया और यूनिवर्सिटी को इसकी कोई सूचना नहीं दी। पदोन्नति के बाद अपनी मूल स्थान से रिलीव हो चुके डॉक्टर्स को अब यूनिवर्सिटी ज्वाइन  कराने से इंकार कर रही है।

देर सबेर यदि युनिवर्सिटी  उन्हे ज्वाइन करवा भी लेती है तो उन्हे वेतन कहां से मिलेगा ये अभी तक तय नहीं है। लिहाजा तबादले पर गए डॉक्टर्स  को वेतन के लाले पड़ने लगे हैं ।राजकीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी संघ के प्रांतीय सचिव हरदेव सिंह रावत की  मानें तो निदेशक स्तर से यूनिवर्सिटी मे व्यवस्था मे तो तैनाती की जा सकती है किन्तु वहां ट्रान्सफर नहीं किया जा सकता है। क्यूंकि यूनिवर्सिटी अपने सीमित अनुदान से चलती है। तबादले के आदेश के साथ उनका वेतन चिकित्सा संवर्ग निदेशालय से ही दिये जाने के आदेश भी निर्गत किए जाने चाहिए थे। ऐसा उच्च अधिकारियों की जानबूझ कर की गयी लापरवाही के चलते हो रहा है।

उत्तराखंड मे मई 2017 मे शासन स्तर से डीपीसी के बाद आयुर्वेद चिकित्सा मे 41 स्वीकृत एसएमओ के पदों के सापेक्ष 6 पदों पर पदोन्नति के बाद ट्रान्सफर किए हैं। जिसमे 2 पद  ऋषिकुल आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय,1 पद गुरुकुल आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, 1 पद चमोली जनपद ,1 अल्मोड़ा और 1 बागेश्वर मे है।20 जुलाई को प्रभारी सचिव हरवंस  सिंह चुग के हस्ताक्षर से  कार्यालय ज्ञाप संख्या 930 /XXXX/2017 -89-2008 से 6 आयुर्वेदिक डॉक्टरों को एसएमओ पद पर पदोन्नति के बाद नए स्थल पर तैनाती दी गयी। हास्यास्पद स्थिति तब पैदा हुई, जब आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी  ने अपने यहां डॉक्टर्स को तैनाती देने से साफ इंकार कर दिया। दरअसल निदेशक आयुर्वेद डॉ अरुण कुमार त्रिपाठी जो आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी के वीसी भी हैं, ने इन कर्मचारियों को उनके तबादले का आदेश तो दे दिया किन्तु जहां इन्हे ज्वाइन करना था ,उन्हे कोई सूचना नहीं भेजी।गौर करने वाली बात ये है कि 41 पदों के सापेक्ष डीपीसी के बाद जो पदोन्नति हुई है, वह आयुर्वेद के चिकित्सा संवर्ग के लिए हुए है जबकि आयुर्वेद यूनिवर्सिटी का अभी तक  कोई ढांचा ही तैयार नहीं हुआ है।यूनिवर्सिटी एक आॅटोनोमस बॉडी है, जिसका खुद का खर्चा भी अनुदान से चलता है, ऐसे मे चिकित्सा संवर्ग के डॉक्टर्स को यूनिवर्सिटि मे तबादला तो कर दिया गया किन्तु ये अभी भी स्पष्ट नहीं है कि उन्हे वेतन कहां से मिलेगा!

आयुर्वेदिक और यूनानी  चिकित्सा संघ के  प्रांतीय सचिव हरदेव सिंह रावत ने बताया कि निदेशालय से यूनिवर्सिटी डॉक्टर्स को ट्रान्सफर पर नहीं भेजा जा सकता है केवल व्यवस्था पर ही भेजा जा सकता है और विशेष परिस्थिति मे वहा  भेजे गए डॉक्टर्स को चिकित्स संवर्ग से ही वेतन मिलना चाहिए।

युनिवर्सिटि मे ट्रान्सफर किए गए डॉक्टर्स कई दिनों से हरिद्वार यूनिवर्सिटि मे  तैनाती स्थल से युनिवर्सिटी के हर्रावाला कैम्पस देहारादून के चक्कर लगा चुके हैं किन्तु उन्हे ज्वाइनिंग नहीं मिल सकी है।

भले ही निदेशक आयुर्वेद और आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी के वीसी पद पर एक ही व्यक्ति – एके त्रिपाठी तैनात हैं फिर भी दोनों विभाग अलग – अलग हैं और उन्हे वहां तैनात करने से पूर्व ये तय नहीं किया गया कि उनका वेतन कहां से निकलेगा!

अपनी समस्या को लेकर राजकीय आयुर्वेद एवं  यूनानी  संघ के पदाधिकारी सोमवार को निदेशक से भी मिलने पंहुचे पर वहां निदेशक उन्हे नहीं मिले। दूरभाष से संपर्क करने पर निदेशक अरुण कुमार त्रिपाठी ने दुबारा पत्र भिजवाने की  बात तो कही पर ये नहीं समझा सके कि यूनिवर्सिटी मे तैनाती  के बाद उन्हे वेतन कहां से मिलेगा!

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