दिनांक-9-10-2017
विजयपाल रावत//
सुबह 4 बजे फोन की घंटी बजी तो नींद खुली। हिमालय दिग्दर्शन यात्रा के लिये हल्द्वानी से तनुजा जोशी देहरादून के रेलवे स्टेशन में पंहुच चुकी थी। उन्हें रिसीव कर घर पंहुचा। बेहद जरूरी गर्म कपड़े, सिलीपींग बैग और ड्राई फूड के सीमित सामान को छांट कर मेरी पत्नी किरन ने मीठी सिवांईयां खिला कर हमें विदा किया।
समय के पाबंद ठाकुर साहब रतन असवाल की डांट के डर से तय समय से आधा घंटे पहले आनन-फानन हम दोनों द्रोण होटल पंहुचे, जहाँ सभी सह यात्रियों को इक्कठा होना था। थोड़ी देर बाद ओमान में कार्यरत कोटद्वार के बड़े भाई अजय कुकरेती पंहुचे उनके और अपने साजो-सामान को देखकर एक दूसरे को सहयात्री के रूप में पहचानने में देर ना लगी।
फिर दिल्ली से बड़े भाई दलबीर रावत, पौड़ी से अरविंद धस्माना, पूर्व सैनिक एवं कर्मठ अध्यापक मुकेश बहुगुणा उर्फ मिर्ची बाबा, पलायन एक चिंतन के संयोजक ठाकुर रतन असवाल वरिष्ठ पत्रकार गणेश काला, सबसे कम उम्र के साथी इंजीनियर सौरभ असवाल, असिस्टेंट कमिश्नर जीएसटी मनमोहन असवाल, मानव शास्त्री नेत्रपाल यादव, सभी सहयात्री इस यादगार ट्रैकिंग के लिये पंहुच चुके थे। हमारी हौसलाफजाई हेतु दून डिस्कवर मासिक पत्रिका के संपादक दिनेश कंडवाल जी, समय साक्ष्य प्रकाशन के प्रवीण भट्ट, बड़े भाई रविकांत उनियाल उर्फ छोटू भाई भी द्रोण होटल पंहुच कर ठीक 8 बजे प्रातः हमारी इस यात्रा को हरी झंडी दिखाते हुऐ इस पहाड़ की यात्रा का शुभारम्भ कर हमें भराड़सर के लिये रवाना किया।
हंसी-मजाक और राजनीतिक चर्चा में कांग्रेस की तिमले की चटनी से लेकर भाजपा के ठप पड़े डबल इंजन की रफ्तार पर तथा पहाड़ और उसके गंभीर विषयों पर खट्टी-मीठी गपशप के साथ हम देहरादून से मंसूरी वहां से जमुना पुल होते हुऐ नैनबाग से पहले सुमन क्यारी पंहुचे। जहाँ पुरोला के एसडीएम शैलेन्द्र नेगी जी के आग्रह पर एक-एक मीठी चाय की प्याली के साथ पहाड़ के ऊंचे-निचे डांडों के सफर की थकान को दुरूस्त किया।
एसडीएम नेगी हमारे इस दल की यात्रा को लेकर काफी उत्साहित थे वे इसे इस क्षेत्र के पर्यटन के विकास के लिये मील का पत्थर साबित होने की दिली शुभकामनाओं से हमें प्रोत्साहन देने के लिये सुबह ही देहरादून से पुरोला के लिये चले थे। बातचीत की इस छोटी से मुलाकात के बाद एसडीएम नेगी साहब की गाड़ी के पिछे-पिछे हम नैनबाग से डामटा तथा नौगांव होते हुऐ लगभग 2 बजे पुरोला पंहुचे।
कुमोला रोड़ पर स्थित सहयात्री मनमोहन असवाल जी के घर पर उनके आग्रह पर रामा-सिरांई का लाल भात और स्थानीय राजमा के स्वादिष्ट लंच से सभी सहयात्रीयों का तन-मन तृप्त हो गया। मनमोहन भाई के स्नेहशील माता-पिता से विदा लेकर हम मोरी की तरफ बढ़े रास्ते से हमारी इस यात्रा का एक सहयोगी स्थानीय नौजवान कृष्णा हमारे साथ हो लिया। जो आज के गंतव्य फिताडी गाँव का रहने वाला था। उसके हंसमुख स्वभाव और वाकपटुता के राजनीतिक व्यंग्यों ने पूरी गाड़ी का वातावरण हंसी के ठहाकों में परिवर्तित कर दिया।
4 बजे मोरी पंहुच कर हमने आगे के सफर के लिये जरूरी रसद सामाग्री को गाड़ी में रख कर जल्दी आगे के सफर का रूख किया। इस सफर के अन्य युवा साथी कांग्रेस के स्थानीय ब्लाक अध्यक्ष राजपाल रावत, प्रहलाद रावत और उनके साथी अपने नीजी वाहन से हमारे सफर में साथ हो लिये। मोरी से नैटवाड़ होते हुऐ टोंस और पक्की सड़क को छोड़ हम उसकी साहयक सुपीन नदी के तीर सदियों से बदहाल सड़क के उबड़-खाबड़ सफर से होते हुऐ सांकरी पंहुचे।
सांकरी आजकल हरकीदून,केदारकांठा आदि ट्रैकिंग वाले पर्यटकों के चलते गुलजार था। हम पहाड़ के चिंतकों के लिये इस दूरस्थ क्षेत्र की यह तरक्की एक सुखद एहसास था। जो यहाँ के स्थानीय लोगों ने कड़ी मेहनत से पिछले पांच-दस सालों में हासिल किया था। खैर यहाँ से रतन भाई के द्वारा जरूरत के टैंट, अतिरिक्त स्लीपिंग बैग,छाता-रैनकोट,मीठी-चटपटी टाफी, ट्रैकिंग स्टीक, तंबाकू-पानी आदि सामान फटाफट पैक कर गाइड को साथ लेकर जखोल पंहुचे।
जखोल पंहुचते-पंहुचते रात हो चुकी थी। जखोल से आगे सड़क के हाल देख कर डर लग रहा था। तनु ने अपना मोबाइल खिड़की से बाहर निकाल कर सड़क का चलती गाड़ी से विडियो बनाया और हम इस अंजान सफर के खतरनाक पहलू से रूबरू होने लगे। यह साफ-साफ समझ आ रहा था की एक और राज्य की तरक्की की प्रतीक देहरादून की चमचमाती सड़कें है तो इस राज्य के इस पर्वतीय समाज की तकदीर में ये टूटी-फूटी बद मिजाज सड़कें थी।
थोड़ी देर बाद अचानक सुपीन नदी के तट पर गाड़ी रूक गयी। सामान उतारा गया पहले से मौजूद खच्चरों पर सामान लादा गया और टार्च के सहारे नदी के किनारे किनारे पहाड़ की ऊंची पगडंडियों का दामन थाम कर हम सब स्थानीय गाँव वासियों के दिशा निर्देश पर चलने लगे। बेहद धुप अंधेरे में चलना फिर फिसलना फिर खड़े होकर चलने का सिलसिला जारी रहा। तनु पहाड़ में चलने के इस पहले कठिन अनुभव के बावजूद हिम्मत और हौसले से चलती रही। लगभग दो-ढाई घंटे बाद हम काफी थका देने वाली यात्रा के बावजूद सुरक्षित फिताडी गाँव से सटे रैक्चा गाँव के प्रधान और हमारी इस यात्रा के आज के मेजबान के घर पंहुचे। जहां मेरे कालेज की छात्र राजनीति का सहयोगी साथी मेरे अनुज जयमोहन राणा ने गांववासीयों सहित हमारा गर्म-जोशी से स्वागत किया। बेहद कड़कड़ाती ठंड में चाय की चुस्की और ड्राईफूड के बाद शानदार कांस की पारंपरिक थालीयों में शाकाहारी और मांसाहारी भोजन ने हमारी सारी थकान मिटा दी।
रात को थकान और अंधेरे के चलते गाँव की खूबसूरती को निहार ना सकने के कारण हम जल्दी ही बेहद नर्म और गर्म बिस्तर की इस आखिरी रात में जल्दी सो गये।
क्रमशः जारी…..
(फोटो साभार- अरविंद धस्माना, तनु जोशी)