डबल इंजन की सरकार में स्वास्थ्य महकमे का वही हाल है, जो सिंगल इंजन वाली सरकारों में था। शुरुआत में सरकार द्वारा कई दावे किए गए, किंतु अब सड़कों पर प्रसव होने से लेकर इलाज के अभाव में मरने का क्रम टूट नहीं पा रहा है। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना से लेकर प्रधानमंत्री स्वास्थ्य योजना तक सब कागजों में सिमटकर रह गई है। प्रदेश के अधिकांश अस्पतालों ने मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना द्वारा इलाज कराए जाने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है कि जब उनका पिछला बकाया भुगतान ही नहीं हुआ तो वो क्यों नि:शुल्क इलाज करें।
१७ अक्टूबर को महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण द्वारा एक कार्यालय ज्ञाप जारी किया गया, जो यह दर्शाता है कि प्रदेश में न सिर्फ चिकित्सा व्यवस्था पटरी से बाहर है, बल्कि अब ऐसी खबरें भी अखबारों में प्रकाशित होने लगी हैं कि महानिदेशक को खुद सफाई देनी पड़ी कि १६ अक्टूबर को विभिन्न समाचार पत्रों में प्रदेश के चिकित्सक राजपत्रित अवकाश के दिवसों में ओपीडी का कार्य नहीं करेंगे। महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को यह सफाई देने की नौबत क्यों आई, किन कारणों से अखबारों में राजपत्रित अवकाशों में डॉक्टरों द्वारा ओपीडी का कार्य नहीं करने की खबरें छपी, किन लोगों ने किन कारणों से छपवाई, इन तमाम सवालों के बीच पटरी से उखड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूर पोल खुल गई है। उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग की बदहाली के कारण ही गली मोहल्लों में हर दिन नए डॉक्टर अपनी दुकानें खोलकर मोटी कमाई कर रहे हैं, जबकि लाखों रुपए वेतन लेने वाले डॉक्टर सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सरकार कुछ ऐसे निर्णय जरूर लेगी, ताकि गरीब आदमी को सुलभ स्वास्थ्य सुविधा प्रदान हो सके।