उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने विभिन्न विभागों में समूह ग के अंतर्गत कनिष्ठ सहायक कंप्यूटर ऑपरेटर के रिक्त 96 पदों, संग्रह अमीन के रिक्त 2 पदों तथा आशुलिपिक वैयक्तिक सहायक के रिक्त 16 पदों तथा सहायक भंडारपाल के रिक्त 12 पदों के लिए सीधी भर्ती द्वारा चयन के लिए एक विज्ञापन निकाला है।
16 अक्टूबर को प्रकाशित इस विज्ञापन में आवेदन करने की तिथि 17 अक्टूबर है।ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि भी 16 नवंबर है। इसमें वैयक्तिक सहायकों के लिए 3 विभागों ने वैकेंसी निकाली है।
जिसमें प्राथमिक शिक्षा विभाग ने 22 पदों के लिए तथा पीडब्ल्यूडी ने भी 22 पदों के लिए और लघु सिंचाई विभाग ने 3 वैयक्तिक सहायकों के लिए आवेदन मांगे हैं।
अब आप विडंबना देखिए कि इन तीनों विभागों ने एक ही काम, एक ही वेतनमान तथा एक ही पदनाम के लिए कंप्यूटर विज्ञान में अलग-अलग योग्यता मांगी है।
लघु सिंचाई विभाग के वैयक्तिक सहायकों के पदों के लिए डीओईएसीसी सोसायटी द्वारा संचालित कंप्यूटर पाठ्यक्रम या माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तराखंड द्वारा संचालित कंप्यूटर पाठ्यक्रम का सर्टिफिकेट मांगा है।
जबकि जनजाति कल्याण विभाग के आशुलिपिक कम कंप्यूटर ऑपरेटर के पदों के लिए भी डीओएसीसी सोसायटी द्वारा संचालित सीसीसी पाठ्यक्रम उत्तीर्ण या राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त किसी अन्य सोसाइटी से प्रशिक्षण का सर्टिफिकेट मांगा है।
लोक निर्माण विभाग ने वैयक्तिक सहायक के पदों के लिए डीओईएसीसी सोसायटी द्वारा संचालित एक वर्षीय कंप्यूटर पाठ्यक्रम या किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से 1 वर्षीय कंप्यूटर पाठ्यक्रम उत्तीर्ण होना अनिवार्य मांगा है। इस बात को हर कोई जानता है कि किसी मान्यता प्राप्त प्राइवेट संस्थान से 1 वर्षीय कंप्यूटर पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने का सर्टिफिकेट बिना एक भी दिन कोर्स किए भी लिया जा सकता है ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिसमें बेरोजगारों ने फर्जी तरीके से नौकरी लगने के बाद बैक डेट में ऐसे सर्टिफिकेट बनवाए हैं।
इसी तरह से प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने भी वैयक्तिक सहायक के पदों के लिए डीओईएसीसी सोसायटी द्वारा संचालित सीसीसी पाठ्यक्रम या माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तराखंड द्वारा संचालित कंप्यूटर पाठ्यक्रम का प्रशिक्षण सर्टिफिकेट मांगा है।
अंधेर नगरी चौपट राज वाली बात यह है कि यह सभी अलग अलग विभाग एक ही काम, एक ही पदनाम और एक ही वेतनमान के लिए अलग-अलग सर्टिफिकेट मांग रहे हैं।
इससे बेरोजगारों में भारी संशय है। सीसीसी सर्टिफिकेट बहुत एडवांस कंप्यूटर विशेषज्ञ के लिए ही आवश्यक होता है। कंप्यूटर ऑपरेटर के लिए यह सर्टिफिकेट बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। एक और विडंबना देखिए, ऐसा लगता है जैसे शिक्षा का उजियारा फैलाने वाला शिक्षा विभाग खुद ही अंधेरे में है। माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तराखंड कंप्यूटर के लिए कोई भी प्रशिक्षण कोर्स संचालित नहीं करता लेकिन अन्य विभागों की तरह खुद प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने इसी परिषद द्वारा संचालित कंप्यूटर प्रशिक्षण का सर्टिफिकेट मांगा है। हद अनदेखी वाली बात यह है कि जब माध्यमिक शिक्षा परिषद कंप्यूटर का कोई कोर्स संचालित ही नहीं करता तो फिर वह सर्टिफिकेट कैसे दे सकता है! और प्रारंभिक शिक्षा विभाग को इसकी जानकारी क्यों नहीं है! सरकारी विभागों की इस तरह की मनमानी से बेरोजगार बड़ी दुविधा में हैं।
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष एस राजू भी स्वीकार करते हैं कि अलग-अलग मानक होने से बेरोजगार दुविधा में हैं। उन्होंने शासन से एक जैसे वेतनमान पदनाम और एक जैसे काम वाले पदों के लिए एक जैसी योग्यता का निर्धारण करने की संस्तुति की है।
जाहिर है कि अनावश्यक प्रमाण पत्र मांगने से भी योग्य बेरोजगार सेवा में चयनित होने से वंचित रह जाते हैं। उत्तराखंड में विभिन्न विभागों का आपस में कोई तालमेल या सामंजस्य ही नहीं है तथा ह्यूमन रिसोर्स को प्रशिक्षित करने पर कोई ध्यान किसी का भी नहीं है।
प्रिय पाठकों इस रिपोर्ट की अगली कड़ी में हम इस तरह के प्रमाणपत्रों के प्रभाव पर रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे। आप से अनुरोध है कि इस संबंध में यदि आपके भी कोई सुझाव हों अथवा कोई शिकायत हो तो हमसे भी साझा करें तथा इस रिपोर्ट को अधिक से अधिक शेयर कीजिए। ताकि एक ऐसा माहौल तैयार हो कि सरकार संज्ञान लेकर इस तरह के मनमाने मानकों पर अंकुश लगाने और एक रूपता लाने के लिए संबंधित विभागों को निर्देश दे सके।