गिरीश गैरोला/ उत्तरकाशी/
धर्म और संस्कृति के साथ योगा को जोड़कर पहाड़ को एक्सप्लोर करने मे लगे हैं उत्तरकाशी के पीयूष।
योगा को धर्म और संस्कृति के साथ जोड़कर स्वरोजगार की दिशा मे उत्तरकाशी के पीयूस बनूनी एक नयी इबादत लिखने जा रहे है।
विदेशियों को योगा सिखाने के दौरान अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और लंदन जैसे कई देशों की यात्रा कर चुके पीयूष ने अब योगा को क्षेत्र की संस्कृति, परिधान, पकवान, अध्यात्म, पर्यावरण, गंगा और हिमालय से जोड़ कर स्वरोजगार की दिशा मे एक पहल शुरू की है।
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इसके लिए पीयूष ने सुरुआत अपने ही घर से की है ।अपने खाली पड़े पुराने घर को पारंपरिक लुक देकर ऐसा संवारा है कि आज विदेशी इस घर के मुरीद हो गए हैं और हर किसी की दिली तमन्ना होती है कि वो कुछ क्षण इस घर मे जरूर गुजारे।
इस घर मे मिट्टी- गारे की चिनाई की गयी है। जिसके कारण घर सर्दी मे गरम और गर्मी से सर्दी का अहसास देता है।
लकड़ों को टच हुड से वूडन फिनिश दिया गया है। घर की सभी वस्तुओं का पौराणिक स्वरूप आज भी बरकरार है।
पीयूष का सपना है कि जिस तरह अपने देश से युवा रोजगार की तलाश मे विदेश मे जा रहे हैं उसी तर्ज पर हम भी विदेशियों को अपने देश मे बुलाकर ऐसा आतिथ्य दें कि हमारे प्रत्येक रीति–रिवाज , परंपराए और त्यौहार उनके लिए विशेष पर्व बन जाये।
पीयूष कि माने तो आने वाले विदेशियों के दल को योगा करने के लिए वरुणावत टॉप पर ले जाकर ऊंचाई पर होने का अहसास बताया जाएगा।
कोशिश की जाएगी कि विदेशी अपने पहाड़ी वेश भूषा मे वरुणावत पर्वत के टॉप पर योगा और ध्यान करे।
इसी कड़ी मे उन्हे तांदी नृत्य मे शामिल कर अपने क्षेत्र की संस्कृति का आदान – प्रदान का अवसर दिया जाएगा और इस अवधि मे विदेशियों को स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले जैविक पकवान खिला कर उनकी पौष्टिकता का भी अहसास कराया जाएगा। जिसमे कंडाली का साग, झंगोरा की खीर,कोदा कि रोटी, गाहत का सूप और चौंसा आदि प्रमुख होंगी।
पीयूष ने बताया कि विश्व ख्याति प्राप्त योगाचार्य अमरीका निवासी राबर्ट मोसस और केरल निवासी स्वामी गोविंदानन्द भी उनके संपर्क मे हैं। इनके साथ मिलकर पीयूष उत्तराखंड की सुरम्य वादियों मे योगा के साथ संस्कृति के योग करके स्वरोजगार की दिशा मे और बेहतर करने के लिए प्रयासरत हैं।
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दीप से दीप जले तभी असल में प्रकाश होगा,वरना प्रकाश तो ओमप्रकाश मे भी है।