जगमोहन रौतेला
उत्तराखण्ड के माध्यमिक शिक्षा मन्त्री अरविन्द पान्डे द्वारा अध्यापकों पर लगाया गया यह आरोप अगर सच है कि कुछ अध्यापकों ने अपने तबादले के लिए फर्जी तलाक के कागज तक जमा करवाए हैं ? तो यह बहुत ही शर्मनाक हरकत है ! साथ ही क्या शिक्षा मन्त्री को इसकी उच्च स्तरीय जॉच की सिफारिश मुख्यमन्त्री से नहीं करनी चाहिए ? क्योंकि तलाक के फर्जी कागज घर में तो किसी ने बनाए नहीं होंगे ! उसमें या तो कोई बड़ा रैकेट शामिल होगा या फिर न्यायालयों के कोई कर्मचारी ? या इतना गम्भीर मामला मन्त्री को बयान देने तक सीमित रखना चाहिए ? और इसकी आड़ में यह कह देने से कि फर्जी दस्तावेज जमा करने के कारण इस बार शिक्षकों के तबादने नहीं होंगे , मामला खत्म हो जाता है क्या ?
दूसरा क्या ऐसे अध्यापकों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए , जिन्होंने गैरकानूनी दस्तावेजों के आधार पर अपना स्थानान्तरण करने का निवेदन विभाग से किया है ? अगर शिक्षा मन्त्री पूरे मामले की उच्च स्तरीय जॉच की मॉग मुख्यमन्त्री से नहीं करते हैं कि इससे साफ पता चलता है कि राज्य के माध्यमिक शिक्षा मन्त्री अध्यापकों के ऊपर किस तरह के अनर्गल आरोप लगा रहे हैं . इस बारे में शिक्षक संगठनों की चुप्पी पर भी सवाल खड़े होते हैं ! इस तरह के आरोप शिक्षकों के साथ ही राज्य की शिक्षा प्रणाली पर भी गम्भीर सवाल ही खड़े नहीं करती है , बल्कि दोनों की विश्वसनीयता पर भी चिंताजनक प्रश्न चिन्ह लगाती है !
इस मामले में शिक्षा मन्त्री ने एक आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश कैडर के अध्यापकों को वापस भेजने के लिए एनओसी के लिए अध्यापकों ने विभाग के कुछ अधिकारियों को मोटी घूस दी है . जिसके प्रमाण उनके पास हैं . मन्त्री का कहना है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश जाने वाले अध्यापकों की फाइल तब तक के लिए रोक दी है , जब तक की अध्यापकों को घूस की रकम वापस नहीं मिल जाती . यहॉ पर फिर से माध्यमिक शिक्षा मन्त्री की मंशा पर सवाल खड़ा होता है कि जब उनके पास घूस देने के प्रमाण हैं तो वे ऐसे अधिकारियों को निलम्बित कर के जॉच क्यों नहीं करवा रहे हैं ? क्या ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों का किसी भी तरह से विभाग में रहना सही होगा ? दूसरा यह भी कि जिन अध्यापकों ने अपने मूल कैडर राज्य उत्तर प्रदेश जाने के लिए रिश्वत दी उनके खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं ? क्या रिश्वत लेने वाले की तरह ही रिश्वत देने वाला भी भ्रष्टाचार में बराबर का गुनहगार नहीं है ?
अपने विभाग से भ्रष्टाचार को दूर करने का दम्भ भरने वाले मन्त्री आखिर किसके दबाव में भ्रष्टाचार के प्रमाण होने के बाद भी चुप्पी साध रहे हैं ? और किसके दबाव में भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों व अध्यापकों को बचाया जा रहा है ? क्या अध्यापकों के तबादले रोकने मात्र से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा ? या फिर यहॉ भी ” प्रमाण ” होने की घोषणा कर के किसी न किसी तरह से अपने हित साधने का कार्य किया जा रहा है ? मन्त्री की इस बारे में की जा रही कोरी बयानबाजी से तो इसी तरह की बू आ रही है।