वर्ष 2001 से लेकर 2010 तक भर्ती हुए प्राथमिक अध्यापकों के सर पर नौकरी जाने का खतरा मंडराने लगा है। विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से भर्ती लगभग 13500 अध्यापकों को फरमान सुना दिया गया है कि वे या तो वर्ष 2019 तक डीएलएड कर दें वरना उन्हें अपात्र घोषित कर दिया जाएगा।
डी एल एड करने के लिए 50% अंकों से 12वीं उत्तीर्ण होना भी अनिवार्य शर्त है। अब सवाल यह है कि जिन अध्यापकों को सरकार पहले ही विशिष्ट btc का प्रमाण पत्र देकर नौकरी दे चुकी है, उन्हें डीएलएड कराने की क्या तुक है!
अथवा जो अध्यापक 16-17 साल पहले इंटर कर चुके होंगे, वह किस तरह से दोबारा से 50% अंकों के साथ इंटर कर पाएंगे! विशिष्ट बीटीसी के अध्यापकों को कहा गया है कि वह तत्काल नेशनल ओपन स्कूल से डीएलएड करने का रजिस्ट्रेशन करा लें। पहले रजिस्ट्रेशन कराने के लिए दो बार तिथियां बढ़ाई गई हैं। अंतिम तिथि 30 सितंबर गुजर चुकी है और पूरे प्रदेश के प्राथमिक शिक्षक आंदोलित हो गए हैं।
2001से 2017तक पूरे अध्यापक और बी पीएड,सी पी एड,डी पी एड की अंतिम तिथि 30सितम्बर तक रजिस्ट्रेशन करना था।डी एल एड के लिए और जिन अध्यापक का बीएड है उनका रजिस्ट्रेशन 9अक्तूबर से शुरू हो गया है।
एक अहम सवाल यह भी है कि वर्ष 2001 से पहले तत्कालीन अविभाजित प्रदेश उत्तर प्रदेश के समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने महज 12वीं पास बेरोजगारों को भी अध्यापक बनवाया था। इस हिसाब से तो उनके लिए भी बारहवीं के लिए 50% अंक होने आवश्यक हैं और उन्हें भी डी एल एड करना चाहिए किंतु उनके लिए यह पैमाना लागू नहीं किया गया है। यह पैमाना सिर्फ 2001 के बाद के अध्यापक के लिए लागू किया गया है। जबकि यदि इसकी वास्तव में आवश्यकता होती तो फिर यह आज की तिथि में अध्यापन कार्य करा रहे 2001 से पहले के अध्यापकों पर भी लागू होना चाहिए।
जाहिर है कि सरकार का पैमाना इसमें छात्रों को पढाए जाने की योग्यता का आकलन न होकर कुछ और ही तत्व है जो फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ भी विशिष्ट बीटीसी वाले अध्यापकों के समर्थन में आ गया है ।वर्ष 2001 से 2010 तक लगभग 13500 अध्यापक विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से भर्ती किए गए थे। यह अध्यापक बीएड, बीपीएड, सीपीएड, यह अध्यापक सीपीऐड तथा मृतक आश्रित हैं जिन्हे विशिष्ट btc के माध्यम से सरकार ने समय- समय पर साल भर या 6 महीने आदि का कोर्स कराकर रामनगर बोर्ड से बाकायदा परीक्षा करवाई तथा उन्हें विशिष्ट btc का प्रमाण पत्र दिया गया। यह अध्यापक 2001 से लेकर अब तक बच्चों को पढ़ा रहे हैं। अब अचानक से यह बात सामने आई है कि सरकार ने विशिष्ट बीटीसी संचालित कराने के लिए केंद्र सरकार के एनसीटीई विभाग से अनुमति ही नहीं ली थी।
शिक्षा विभाग के अफसरों का कहना है कि उन्होंने वर्ष 2001 में अनुमति लेने के लिए एनसीटीई को पत्र लिखा था तथा कुछ औपचारिकताएं भी पूरी की थी किंतु तत्कालीन जिम्मेदार अफसरों ने अज्ञात कारणों से एनसीटीई की मान्यता के विषय में गंभीरता पूर्वक कार्यवाही नहीं की तथा विभागीय लापरवाही के कारण यह बात ध्यान में नहीं रही।
बहरहाल 2001 से लेकर 2010 तक प्राथमिक शिक्षा में कई आईएएस और विभाग के अफसर निदेशक के पद पर तैनात रहे हैं ।गलती किस के स्तर से हुई यह कहना मुश्किल है। किंतु इसका खामियाजा प्राथमिक शिक्षकों को उठाना पड़ रहा है। शिक्षा मंत्री से अपनी समस्या बताने गए इन अध्यापकों को शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने यह कहते हुए लौटा दिया कि डीएलएड तो करना ही पड़ेगा।
झगड़े की जड़ यह है कि विभाग अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। अपितु एनसीटीई का फरमान सीधे शिक्षकों पर ही ठोक कर ,अपनी गलती पर पर्दा डालना चाह रहा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2001 में उत्तर प्रदेश ने तो विशिष्ट बीटीसी के लिए एनसीटीई की अनुमति ले ली थी किंतु उत्तराखंड राज्य अलग बनने की आपाधापी के दौरान संभवतः अफसरों का इस पर ध्यान नहीं गया और यह अनदेखी लगातार चलती रही।
सवाल यह है कि यदि विभाग की नीयत सही हो तो एनसीटीई की परमिशन न लेने को प्रक्रियागत खामी मानते हुए एनसीटीई से बातचीत की जा सकती है।अथवा कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया जा सकता है। संविधान भी मानता है कि प्रक्रियागत खामियों के आधार पर किसी को भी न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।
कहीं कुछ और एजेंडा तो नही!
एक संभावना यह भी है कि पूरे देश में एक तरह की शिक्षा नीति को संचालित करने की आड़ में उत्तराखंड में सरकार विशिष्ट btc वाले अध्यापकों को बाहर का रास्ता दिखा कर शिशु मंदिरों के लिए रास्ता बनाना चाह रही हो। एक शिक्षा नीति के अंतर्गत शिशु मंदिरों में अथवा अन्य निजी स्कूलों में भी अध्यापकों को डीएलएड करना आवश्यक है। ऐसे में भविष्य में बड़ी संख्या में 3000 प्राइमरी स्कूलों को बंद कर के लगभग इतने ही शिशु मंदिरों को वित्तपोषित करने की दिशा में डीएलएड अनिवार्य करना भाजपा सरकार का एक गोपनीय एजेंडा हो सकता है। पर्वतजन पहले भी सरकार के इस अभियान को प्राथमिकता से प्रकाशित कर चुका है।
यदि सरकार वाकई विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों के प्रति संजीदा है तो वह एनसीटीई से परमिशन की छूट के लिए एनसीटीई में आवेदन भी कर सकती है ।अथवा इसे प्रक्रियागत खामी बताते हुए कोर्ट का सहारा ले सकती है।
बहरहाल राजकीय शिक्षक संघ के समर्थन में विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक आंदोलन शुरु कर चुके हैं ।और देखना होगा कि देर सवेर निकाय और पंचायत चुनाव सहित लोकसभा चुनाव मे हो सकने वाले नुकसान का आकलन करके सरकार क्या कदम उठाती है!