सुगम दुर्गम का खेल समझना हो तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विधानसभा के स्कूलों का एक चक्कर लगा आइए।
देहरादून से सटी उनकी विधान सभा के प्राथमिक स्कूलों में बच्चे भले ही इक्का-दुक्का हों, लेकिन अध्यापकों की भरमार है।
उदाहरण के तौर पर मुख्यमंत्री की विधानसभा के प्राथमिक स्कूल खलधार में मात्र एक बालिका कक्षा 3 में भर्ती है। किंतु उसको पढ़ाने के लिए दो-दो सरकारी टीचर और एक अदद भोजनमाता भी कार्यरत है।
महीने मे पांच दिन आते है टीचर
हाल यह है कि 3 दिन से इस स्कूल में ताला लगा हुआ है।जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों के अनुसार इस स्कूल में अध्यापक महीने में मात्र पांच-छह दिन ही दिखाई देते हैं।
अगर सीएम की विधानसभा की स्कूल में यह हाल है तो आखिर हम किस बेशर्मी से शिक्षा व्यवस्था को किस मुंह से पटरी पर लाने की बात कर रहे हैं !
अहम बात यह भी है कि स्कूल में छुट्टी करने से पहले इसकी सूचना खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय को देनी होती है। किंतु खंड शिक्षा अधिकारी साफ कहती हैं कि स्कूल की प्रधानाचार्य अथवा किसी भी टीचर ने कोई छुट्टी नहीं ली।
कौन है खलधार के खलनायक ?
तीन दिन से बंद इस स्कूल के लिए कौन जिम्मेदार है ?जब मुख्यमंत्री की विधानसभा के स्कूल के यह हाल है तो दूरदराज के स्कूलों का तो भगवान ही मालिक है। मात्र एक बच्ची पर ₹1 लाख से अधिक का प्रतिमाह खर्च आ रहा है।
दोहरे मानक आखिर क्यों ?
जबकि खंड शिक्षा अधिकारी डोईवाला सुश्री दीप्ति का कहना है कि ऐसे स्कूल को बंद किया जाना चाहिए। किंतु सुगम की तैनाती को देखते हुए यह स्कूल बंद नहीं कराया जा रहा।
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे द्वारा शिक्षा व्यवस्था को सुधार करने वाले दावों की हकीकत यहां साफ नजर आती है। दूसरी ओर पहाड़ों में 10 से कम छात्र संख्या वाले सैकड़ों स्कूल बंद किए जा चुके हैं। बड़ा सवाल यह है कि यह दोहरे मानक आखिर क्यों ?
यहां पर अपनी तैनाती बचाए रखने के लिए प्रधानाचार्य ने खंड शिक्षा अधिकारी को गलत सूचना दी है कि स्कूल में 3 छात्र संख्या है। जबकि हकीकत यह है कि इस स्कूल में केवल एक बालिका पढती है। बाकी दो बच्चे नजदीकी सरस्वती शिशु मंदिर भोगपुर में अध्ययनरत हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पहले वे इसी स्कूल में बच्चों को पढ़ाते थे, किंतु अध्यापकों ने ठीक से नहीं पढ़ाया तो उन्हें मजबूरन अपने बच्चों को स्कूल से हटाना पड़ा। ट्रांसफर पोस्टिंग की रोज नई नियमावली निकाल कर अपने चहेतों को इस तरह से सुगम में तैनात करने वाले हमारे शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग चलाने के नाम पर भारी भरकम तनखा लेने वालों का जमीर आखिर कब जागेगा? सुगम का यह खेल ट्रांसफर एक्ट की आड़ में होने वाले धंधे को लेकर भी है। अब इस विद्यालय के लिए पहाड़ से अधिक से अधिक अध्यापकों को लाने और ऐसे ही स्कूलों की आड़ में ट्रांसफर उद्योग चलाने की नीयत का भी खुलासा हो गया है। हरिद्वार, देहरादून व ऊधमसिंहनगर के ऐसे स्कूलों के लिए ही शिक्षा विभाग में मनचाही बोली लगती रही है।
शिक्षा के नाम पर ऐसा खिलवाड़ करने वाले मंत्री, अधिकारियों और शिक्षकों को ‘पर्वतजन’ की भी नसीहत है कि गरीब के बच्चों से ऐसा खिलवाड़ करने से पहले अपनी आस-औलाद का भी ध्यान कर लिया करो ! ऊपर वाले की लाठी मे आवाज नही होती !