यूपी-उत्तराखंड के संबंधों मे आई ठंडक
बीते 2 महीनों में उत्तराखंड सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के आपसी संबंधों में शुरुआती गर्माहट ठंडी होने लगी है। परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर ठंडा रुख और आदित्यनाथ योगी के पिता द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तुलना 120 की स्पीड और 20 की स्पीड से करने के बाद उत्तराखंड सरकार का रुख भी सर्द हो चला है।
यही कारण है कि पिछले दिनों आदित्यनाथ योगी को जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर विश करने के लिए सरकार का कोई नुमाइंदा नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी रविवार 29 अक्टूबर लखनऊ से हिमाचल चुनाव प्रचार के लिए निकले। वह सुबह 10:30 बजे जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पर पहुंचे लेकिन उनके स्वागत में स्थानीय पुलिस प्रशासन के अलावा सरकार का कोई नुमाइंदा नहीं था। किसी भी छुटभैया नेता और अधिकारी के पहुंचने की भनक लगने पर ही उनकी मिनट-मिनट की लोकेशन जानने तथा उनके आने-जाने, रहने-खाने की चिंता मे अपनी जान सुखा देने वाले अधिकारी भी उनकी आमद से अनजान थे।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हरिद्वार के अलकनंदा होटल पर मालिकाना हक को लेकर यूपी-उत्तराखंड को फटकार लगाई है। कोर्ट ने दोनों राज्यों को बातचीत के आधार पर हल निकालने के लिए 13 नवंबर तक का समय दिया है। ऐसा न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिव को तलब किया है।
हालत यह है कि उत्तराखंड में स्थित भवनों जैसी परिसंपत्तियों को भी योगी सरकार उत्तराखंड को सौंपने को राजी नहीं है, तो पेचीदा मसलों के हल बातचीत से निकलने की उम्मीद भी बेमानी है।
6 माह पहले डबल इंजन-ट्रिपल इंजन को लेकर जो गर्मजोशी उत्तराखंड की ओर से दिखाई जा रही थी, उसकी आंच धीरे धीरे एकतरफा होते हुए ठंडी होने लगी है।
उत्तराखंड मूल के आदित्यनाथ योगी के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही उत्तराखंड के आम लोगों के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार को भी यह उम्मीद थी कि अब दशक से लंबित पड़े परिसंपत्तियों के मसले सुलझ जाएंगे। किंतु बैरागी मन के आदित्यनाथ योगी ने उत्तर प्रदेश की सियासत के साथ ही अपनी निष्ठा बनाए रखी। सियासत के तकाजे को देखते हुए उत्तराखंड के वाजिब हक की तरफ से भी आदित्यनाथ योगी ने मुंह फेर लिया।
अब उत्तराखंड को सुप्रीम कोर्ट से ही अपने परिसंपत्तियों की बंटवारे की उम्मीद है। उत्तराखंड महज 5 लोकसभा सीटों का राज्य होने के चलते भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के हितों के साथ खड़ा दिखाई देता है। या फिर तटस्थ है।
आदित्यनाथ योगी के पिता ने पिछले दिनों मीडिया के कुरेदने पर यूपी-उत्तराखंड के कामकाज की तुलना 20 और 120 की स्पीड से तो की ही, साथ ही यह नुक्ता भी जोड़ना न भूले कि परिसंपत्तियों का बंटवारा यदि अभी नहीं हुआ तो कभी नहीं होगा।
बंटवारे को लेकर जिस तरीके का सियासी रुख उत्तर प्रदेश का है, उससे उत्तराखंड को सियासी नुकसान होना तय है।
जाहिर है कि देर-सवेर उत्तराखंड को अपना मसला सुप्रीम कोर्ट में ही ले जाना पड़ेगा, क्योंकि केंद्र सरकार भी उत्तर प्रदेश के हितों को देखते हुए मुश्किल ही कोई हस्तक्षेप करेगी। बहरहाल लगातार होती तुलना और हितों को होते नुकसान से त्रिवेंद्र सरकार उत्तर प्रदेश के प्रति नाउम्मीद सी तो हो चली है।