हाल ही में जून २०१७ के आखिरी सप्ताह में राज्य बीज निगम के जिन १० भ्रष्ट अधिकारियों को करोड़ों रुपए के सरकारी धन के गबन के आरोप में निलंबित किया गया, उनमें से अधिकांश भ्रष्ट अधिकारियों को वर्ष २०१०-११ में भी निलंबित किया गया था और एक वरिष्ठ अधिकारी आरके निगम को बर्खास्त किया गया था। इन सारे अधिकारियों को ओमप्रकाश ही खुला संरक्षण देते रहे। जैसे ही सरकार बदली, वर्ष २०१२ में कांग्रेस की सरकार आते ही प्रमुख सचिव कृषि के पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए ओमप्रकाश ने उन सभी भ्रष्ट अधिकारियों को आश्चर्यजनक रूप से वापस सेवा में बहाल कर दिया था।
उत्तराखंड बीज निगम आज बंदी के कगार पर है तो इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार अफसर भी ओमप्रकाश ही है। ओमप्रकाश लगभग १२-१३ वर्षों से कृषि सचिव तथा बाद में प्रमुख सचिव कृषि के तौर पर निगम के सर्वेसर्वा बने रहे। उनके इशारे के बिना राज्य बीज निगम में कोई पत्ता तक नहीं हिल सकता था। इसके बावजूद भी जब बीज निगम के घोटालों की जांच हुई तो ओमप्रकाश की संलिप्तता की कोई जांच नहीं की गई।
लंबे समय तक कृषि विभाग में सचिव और प्रमुख सचिव के पद पर जमे रहने के कारण इनकी तराई बीज विकास निगम में ऊपर से नीचे तक सारे बीज माफियाओं, दलालों और भ्रष्ट अधिकारियों से सांठ-गांठ है। इस बीज निगम के आरके निगम और पीके चौहान जैसे अधिकारियों की भी बिहार एवं झारखण्ड राज्यों के अनेक प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूटर्स एवं सप्लायर्स से सीधी सांठ-गांठ है। जिसके माध्यम से ओमप्रकाश परोक्ष रूप से अपनी मनमर्जी से तराई बीज निगम को व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए चलाते रहे।
ओमप्रकाश से निगम के डिस्ट्रीब्यूटरों की अवैध संलिप्तता इसी बात से प्रकट होती है कि उनके द्वारा सदैव केवल बिहार और झारखण्ड राज्य के कुछ व्यक्तियों के पक्ष में पद का दुरुपयोग करते हुए डिस्ट्रीब्यूटरशिप एवं डीलरशिप के लिए मौखिक एवं लिखित सिफारिशें तथा अनुचित दबाव डाला जाता रहा है।
आईएएस ओमप्रकाश बिहार राज्य में बांका जनपद के ग्राम बौंसी मौजा डलिया थाना बौसी के मूल निवासी हैं तथा बिहार में जनपद भागलपुर में इन्होंने अपना आलीशान बंगला बनाया हुआ है। तराई बीज विकास निगम के कुछ भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारियों के साथ ही बिहार के अनेक दलालों और बीज माफियाओं से इनके अंतरंग संबंध हैं। ये व्यक्ति ओमप्रकाश से मिलने के लिए अक्सर देहरादून आते रहते हैं और उनके द्वारा इन व्यक्तियों से नियमित फोन पर बातचीत होती रहती है।
ओमप्रकाश ने निगम में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके बिना किसी उचित आधार के निगम के अधिकारियों के विधिक देयकों, अंतिम वेतन, अवकाश नकदीकरण आदि का भुगतान भी रुकवा दिया था। इससे न सिर्फ कर्मचारियों की कार्यक्षमता और मनोस्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, बल्कि निगम की बदनामी भी हुई। बाद में उच्च न्यायालय के आदेशों के उपरांत निगम को उक्त देयों का भुगतान ब्याज सहित करना पड़ा।
ओमप्रकाश ने वर्ष २०१२ में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके आरके निगम तथा पीके चौहान के द्वारा अप्रैल २०१२ की बैक डेट से प्रभावी कराते हुए वितरकों तथा विक्रेताओं को बीजों के विक्रय मूल्य पर दिए जाने वाले कमीशन प्रतिशत की दरें अत्यधिक बढ़वा दी थी तथा बीजों के परिवहन हेतु निगम के गोदाम से उनके विक्रय काउंटर तक की स्थानीय यातायात, भाड़ा छूट पर प्रति कुंतल बीज पर दूरी के हिसाब से बढ़ती दरों पर प्रदान किए जाने की अनुमति दिला दी थी। जिससे निगम को खासा नुकसान उठाना पड़ा।
कमीशन दरों में बढोतरी तथा स्थानीय परिवहन भाड़ा छूट वितरकों तथा विक्रेताओं को निगम हित के विपरीत अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए बैकडेट से अनुमन्य कराई गई थी।