…तो 30 फरवरी को विदेश दौरे पर थे मुख्य सचिव!!

भूपेंद्र कुमार //

प्रदेश में अधिकारियों ने किए अनाप-शनाप विदेश दौरे!

 न जाने का मकसद साफ! न खर्चे का हिसाब साफ! और जो सीखा वह भी साफ !!

जी हां!  कैलेंडर में 30 फरवरी का दिन नहीं होता। लेकिन क्या करें! अगर सचिवालय ही सूचना के अधिकार में यह जानकारी दे रहा है तो कोई विश्वास न करें तो क्या करें !!
प्रदेश के एक पूर्व  मुख्य सचिव एसके दास के विषय में सचिवालय प्रशासन के लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी उपलब्ध कराई है कि वह 30 फरवरी 2008 को दिल्ली में थे। इस भ्रमण पर 18424 रुपए

sachivalaya
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का खर्च आया। अगर यह सूचना केवल टाइपिंग की गलती है तो कोई बात नहीं ,लेकिन अगर बिल बाउचर बनाने के लिए इन तारीखों का इस्तेमाल हुआ है तो यह एक गंभीर प्रकरण है ।

इस संवाददाता ने वर्ष 2005 से उत्तराखंड राज्य के प्रमुख सचिवों और सचिवों के विदेश दौरों से संबंधित सूचनाएं मांगी थी। तो कुछ चौंकाने वाली बात पता चली।
इस देश में वाकई अगर कोई मजे कर रहा है तो वह है ब्यूरोक्रेट नेता तो 5 साल के लिए चुने जाते हैं ।वह भी कब नेतृत्व परिवर्तन हो जाए, कब सरकार गिर जाए, इसका भी पता नहीं ।ब्यूरोक्रेट तो रिटायर होने तक मलाईदार पोस्टिंग पर मजे करते हैं । सूचना के अधिकार में यह जानकारी मांगी गई थी कि इन अफसरों ने कहां- कहां के दौरे कितने- कितने दिन के लिए किए थे और पूर्ण दौरों का क्या प्रयोजन था!
 2 वर्ष पूर्व तत्कालीन मुख्य सचिव ने  सितंबर 2015 में  सभी सचिवों और प्रमुख सचिवों से पिछले 6 माह में विदेश दौरों की स्पष्ट जानकारी मांगी थी। इसमें मुख्य सचिव की ओर से एक पत्र जारी किया गया था, जिसमें सचिवों को एक फॉर्म भरकर बताना था कि वह किस प्रदेश  अथवा विदेश गए और उनके जाने का उद्देश्य क्या था और उनके जाने से विभाग को क्या लाभ पहुंचा था! इसकी किसी ने भी जानकारी नहीं दी।
जाहिर है कि विदेश दौरों के लिए नौकरशाहों को केवल बहाना चाहिए। जिससे वह सरकारी खर्चे पर थाईलैंड, सिंगापुर ऑस्ट्रेलिया आदि देशो में घूमकर आ सकें और थोड़ा मनबहलाव हो सके।
 विदेश दौरों के नाम पर जिस कारण के लिए अफसरों का विदेश दौरा  बताया गया है, इन पत्रों का अध्ययन कर पता चलता है कि जिन विषयों से संबंधित मंजूरी दी गई थी  वह विभाग तो उन अफसरों के पास है नही ।
उदाहरण के तौर पर IAS दिलीप जावलकर को 11 अगस्त 2014 में वैट और जीएसटी सिस्टम की जानकारी का अध्ययन करने के लिए रूस  और चाइना  के भ्रमण की मंजूरी दी गई लेकिन लौटने के कुछ समय बाद जब प्रदेश में जीएसटी सिस्टम  लागू हो रहा था, उस समय  श्री जावलकर  प्रतिनियुक्ति पर  दूसरे राज्य में चले गए थे ।
इसी तरह से 8 सितंबर 2014 को IAS डॉक्टर निधि पांडे को जेंडर मेन स्ट्रीमिंग की ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए लंदन भेजा गया लेकिन वह स्वास्थ्य सचिव थी तथा कुछ समय बाद प्रदेश से चली गई ।
5 दिसंबर 2014 को डॉक्टर अहमद इकबाल जोकि अल्मोड़ा के सीडीओ थे उन्हें मिलकिट प्रोजेक्ट ट्रेनिंग के लिए  भेजा गया लेकिन तंजानिया की इस विजिट में  उन्होंने क्या सीखा और कहां अप्लाई किया, इसका कोई रिकॉर्ड  सरकार के पास नहीं है। इसी तरह से अजय प्रद्योत को भी वर्ष 2013 में विदेश भ्रमण के लिए भेजा गया था, किंतु उनके उद्देश्य में कुछ भी स्पष्ट नहीं था कि उन्हें क्यों भेजा जा रहा है तथा विदेश भ्रमण से लौटने के बाद उन्होंने क्या रिपोर्ट सबमिट की इसका भी कोई रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है।
 जाहिर है कि इस तरह के विदेश दौरों का कोई भी प्रतिफल राज्य सरकार अथवा यहां की जनता को नहीं मिल पाया है।समय-समय पर अफसरों के विदेश दौरों पर लगाम लगाए जाने की कवायद होती है,किंतु महीने दो महीने की शक्ति के बाद फिर से वही रूटीन शुरू हो जाता है। एक वरिष्ठ नौकरशाह सुझाव देते हैं कि आईएएस अफसरों के तो विभाग पोर्टफोलियो बदलते रहते हैं । बेहतर रहेगा कि विदेश दौरों के लिए विभागों के अधिकारियों को भेजा जाए ताकि वह एक लंबे समय तक विभाग को विदेश दौरों से होने वाली ट्रेनिंग का लाभ प्रदान कर सके।
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