धनंजय ढौंडियाल
महाराष्ट्र से दून गणपति बप्पा को लाया धूलिया परिवार
देहरादून। गणेश चतुर्थी की देहरादून में खूब धूम मची हुई है और कहीं गणेश जी की मूर्ति को विसर्जित कर इस उत्सव का मनाया जा रहा हैं तो कहीं गणपति जी के नाम पर विशाल भंडारों का आयोजन किया जा रहा हैं। बड़ी संख्या में लोग रोजाना गणेश उत्सव पर भजन कीर्तन भी आयोजित कर रही हैं।
‘गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया’ से दून नगरी उद्घोषित हो रही हैं। इस दौरान रोजाना यहां भी अन्य शहरों की भांति उत्सव मनाया जा रहा हैं।
शहर में विभिन्न रंगों के बीच शोभायात्राएं निकाली जा रही हैं।
इसी कड़ी में राजधानी देहरादून के जीटीएम प्लाजा में रहने वाले धूलिया परिवार ने गणपति उत्सव को धूमधाम के साथ मनाया। इस मौके पर धूलिया परिवार द्वारा एक भव्य झांकी निकाली गई जिसमे बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के अलावा कई पार्टियों के राजनीतिक हस्तियों, वह राजधानी के मीडिया कर्मियों ने भी शिरकत की।
गणपति बप्पा के त्यौहार को हर साल धूमधाम से मनाने वाला दुनिया परिवार इस बार महाराष्ट्र से गणपति बप्पा को खास तौर से देहरादून लेकर आया था ।
इस मौके पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रकोष्ठ के अध्यक्ष महितोश मैठाणी और पंडिय शुर्दान जुयाल भी मौजूद रहे।
धूलिया परिवार ने बताया कि वह हर साल ही गणेश उत्सव धूमधाम से मनाते है
जिसमें दूनवासी हिस्सा लेते हैं।उन्होंने बताया कि इस दौरान गणेश जी की मूर्ति को भी स्थापित किया जाता है और उन्हें पूरे विधि-विधान से विसर्जित भी किया जाता है।
महाराष्ट्र से गणेश जी की मूर्ति को लाने के पीछे धूलिया परिवार ने बताया कि अष्टविनायक से अभिप्राय है- आठ गणपति। यह आठ अति प्राचीन मंदिर भगवान गणेश के आठ शक्तिपीठ भी कहलाते हैं जो कि महाराष्ट्र में स्थित हैं। महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इनमें विराजित गणेश की प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं, यानि यह स्वयं प्रगट हुई हैं। यह मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं। अष्टविनायक के ये सभी आठ मंदिर अत्यंत पुराने और प्राचीन हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश और मुद्गल पुराण, जो हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह हैं, में किया गया है। इन आठ गणपति धामों की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से जानी जाती है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है।