गिरीश गैरोला//
हिलवेज कंपनी कर रही पुल निर्माण!
चिन्यालीसौड मे मजदूर की मौत पर न तो स्वस्थ्य केंद्र को सूचना दी गयी और न थाना धरासु को!
धरातल पर नहीं दिखती मजदूरों के कल्याण की योजनाएं!
निर्माण कार्य के दौरान घायल और मरने वाले मजदूरों को नहीं मिलता उनका हक़!
निशुल्क होता है मजदूरों का पंजीकरण फिर भी ठेकेदार नहीं दिखाते रुचि!
टिहरी झील पर निर्माणाधीन पुल के एक मजदूर की मौत हो गई लेकिन इसकी सूचना जिला प्रशासन ने दबा दी। ऐसे मामलों मे प्रशासन की कंपनी से मिलीभगत पर सवाल उठ रहे हैं।
झील के विस्तार से उत्तरकाशी के देवीसौड पुल के डूबने के बाद यहां 37 करोड़ की लागत से नया पुल निर्माणाधीन है।
28 जून 2013 के आरम्भ हुए निर्माण के बाद से ठेकेदार कंपनी हिलवेज को तीन बार समयवृद्धि मिल चुकी है किन्तु अभी तक पुल का निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ। एक बार फिर से समयवृद्धि देकर 31 जनवरी 2018 तक निर्माण कार्य पूर्ण करने का भरोसा दिया गया है।
विगत कुछ माह पहले पुल निर्माण के दौरान रस्से से लटके मजदूर की गिरने के बाद उसका जबड़ा उखड़ गया था। उसे तत्काल हायर सेंटर भेजा गया किन्तु रास्ते मे ही मजदूर की मौत हो गयी। कंपनी ने न तो स्वास्थ्य केंद्र चिन्यालीसौड को इसकी सूचना दी और न ही थाना धरासु को।
स्थानीय जनप्रतिनिधि ख़िमानन्द बिज्लवाण कहते है कि मौके पर पुनर्वास खंड के इंजीनियर नहीं रहते हैं और न ही मजदूरों के लिए सुरक्षा मानक पूरे किए गए हैं। थाना धरासु के इंस्पेक्टर रवीन्द्र यादव स्वीकारते हैं कि एक मजदूर की मौत हादसे मे हुई थी किन्तु थाने को इसकी कोई सूचना नहीं दी गयी। हैरान करने वाली बात ये है कि मजदूर के हादसे मे मरने के बाद उसके पंजीकरण के अनुरूप उसे क्या मदद मिली, इसकी जानकारी न तो लेबर ऑफिसर धरमराज को ही है और न एसडीएम डुंडा सौरभ असवाल को ही है।
ऐसे मे कंपनी के ठेकेदारों ने मजदूर और उनके परिजन के साथ क्या किया होगा अंदाज लगाया जा सकता है!
विकास कार्यो की रीढ और निर्माण कार्य मे लगे मजदूरों के हित,कल्याण के लिए बना हुआ लेबर एक्ट हवाई साबित हो रहा है।
प्रत्येक जिले मे विभाग के कार्यालय मे पहुंच रख सकने वाले मजदूरों के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की भी सुविधा दी गयी है। इसके बाद भी ठेकेदार कंपनी मजदूरों के पंजीकरण को लेकर कोई रुचि नहीं दिखाती है , और हादसे के बाद घायल अथवा मृतक के परिजनों को फटकार लगाकर भगा दिया जाता है।
अकेले उत्तरकाशी जनपद मे टिहरी से पृथक होने के बाद से जितने निर्माण कार्य हुए उसकी तुलना मे पंजीकृत मजदूरों और हादसे मे मारे गए अथवा घायल हुए मजदूरों को लेबर एक्ट के अंतर्गत मिली मदद का आंकड़ा चौंकाने वाला है।
पूर्व मे उत्तरकाशी की अस्सी गंगा जल विद्धुत परियोजना मे मारे गए मजदूरों के पंजीकरण और उन्हे दी गयी मदद का आंकड़ा पूछे जाने पर जिला प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे।
उस वक्त एक महीने तक लेबर ऑफिसर को एसडीएम कार्यालय मे बैठकर मजदूरों के पंजीकरण के लिस्ट तैयार करने के निर्देश उच्च अधिकारियों की तरफ से मिले थे, साथ ही यह भी व्यवस्था दी गयी थी कि जानकारी के अभाव मे अथवा अशिक्षित होने के चलते मजदूर अपना पंजीकरण नहीं करा सके तो संबन्धित निगरानी वाला इंजीनियरिंग विभाग उनका पंजीकरण करना सुनिश्चित करेंगे।किन्तु समय कि धूल इस फ़ाइल पर ऐसी पड़ी आज भी हादसों मे मरने वाले मजदूरों के परिजनों को ठेकेदार द्वारा डरा धमका कर भगा दिया जाता है।
जबकि मजदूरों के लिए पंजीकरण अब बेहद सरल कर दिया गया है। इसकी कोई फीस भी नहीं है और हादसे मे घायल होने अथवा मरने के अलावा भी मजदूरों के कल्याण के लिए कई योजनाओं का लाभ उसे इस पंजीकरण से मिलता है। किन्तु मजदूर के अशिक्षित होने का फायदा उठाते हुए ठेकेदार उनका शोषण करते हैं और सरकारी अधिकारी देखते रह जाते हैं। कुछ दिन रोने पीटने के बाद मजदूर के परिजन शांत हो जाते है। और पेट की आग को शांत करने के लिए एक और मजदूर फिर से उसी पंक्ति मे खड़ा हो जाता है एक असुरक्षित भविष्य के साथ।