रविवार 1 अक्टूबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर पौड़ी गढ़वाल की पीठ सैण में एक समारोह के दौरान किसानों के लिए ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना’ की शुरुआत की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने जानकारी दी कि
“किसानों के कल्याण के लिए हमारी सरकार सदैव प्रतिबद्ध है। इस कड़ी में किसानों को महज 2 %ब्याज दर पर 1 लाख रुपए तक का कर्ज देने की योजना शुरू की गई है। योजना के पहले दिन 101 किसानों को 2 % ब्याज दर का लोन मुहैया करवाया गया।”
यह खबर आज सभी अखबारों ने अपनी पहले पृष्ठ पर प्रमुखता से प्रकाशित की है यह तो हुई प्रेस विज्ञप्ति की बात।
खबर की बात यह है कि इस दौरान मुख्यमंत्री ने चंद्र सिंह गढ़वाली के स्मारक का भी शिलान्यास किया। पीठसैण में स्थापित होने वाले इस स्मारक की लागत एक करोड़ रुपए रखी गई है। यह जानकारी मुख्यमंत्री की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में क्यों नहीं है। यह अपने आप में एक खबर है। मुख्यमंत्री के Facebook पेज पर भी यह जानकारी अपलोड नहीं है।
दूसरी खबर यह है कि जब पुण्यतिथि पेशावर विद्रोह के नायक चंद्र सिंह गढ़वाली की थी तो उन्हीं के समाधि स्थल पीठसैण से दीनदयाल उपाध्याय के नाम से किसान कल्याण योजना की शुरुआत करने का क्या तुक था!
यह योजना गढ़वाली के नाम से भी तो शुरु की जा सकती थी। यदि यदि दीनदयाल उपाध्याय के नाम से किसी योजना की शुरुआत की ही जानी थी तो यह किसी और अवसर पर भी तो की जा सकती थी। आज किसी भी अखबार ने खबर के इस एंगल को प्रकाशित नहीं किया। ऐसा नहीं है कि खबर के इस कोण पर किसी पत्रकार का ध्यान ही नहीं गया हो।
इस पर 1 अक्टूबर की सुबह 9:30 बजे ही कम्युनिस्ट नेता इंद्रेश मैखुरी ने अपनी फेसबुक वॉल पर ऐतराज़ जता दिया था उन्होंने लिखा दीनदयाल के परदे से चंद्र सिंह गढ़वाली नहीं ढके जा सकेंगे।
खबर का तीसरा एंगिल यह था कि इस कार्यक्रम मे चंद्र सिंह गढ़वाली के पुत्र और पुत्र वधू को कोई आमंत्रण ही नहीं दिया गया। जबकि चंद्र सिंह गढ़वाली की जीवन भर उपेक्षा करने वाले व्यक्ति मंच पर विराजमान थे।
खबर का चौथा पहलू यह था कि किसान कल्याण योजना सहकारिता विभाग द्वारा शुरु की जा रही है। सहकारिता मंत्री का गृह क्षेत्र यही इलाका है। ऐसे ही अपने गृह क्षेत्र में कोई बड़ी योजना लॉन्च करने के लिए कोई बड़ा अवसर चाहिए था। चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि से बड़ा अवसर और क्या हो सकता था। ऐसे में यही मुनासिब था कि चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि के बहाने अपने क्षेत्र से योजना की शुरुआत की जाए ताकि इस योजना को वोट बैंक में बदला जा सके। अब योजना भाजपा सरकार की है तो गढ़वाली के नाम पर योजना का नाम कैसे रखा जा सकता है। इसलिए नाम तो दीनदयाल उपाध्याय का ही चलना था।
आखिर खबर के इन चार पहलुओं को क्यों छोड़ दिया गया! सिर्फ प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित करने की यह सेंसरशिप विज्ञापनों के लोभ मोह के कारण है या फिर पत्रकारों की वैचारिक दृष्टि को वाकई मोतियाबिंद हो गया है!
ऐसा नहीं है कि किसी स्थानीय पत्रकार ने इंद्रेश मैखुरी की वह पोस्ट ना देखी हो। इंद्रेश मैखुरी ने सवाल उठाया था कि गढ़वाली का उपाध्याय से ऐसा क्या रिश्ता था कि गढ़वाली की पुण्यतिथि पर उपाध्याय के नाम से योजना शुरू हो रही है।मैखुरी ने सरकार के इस कार्यक्रम को गढ़वाली के नायकत्व को छोटा करने की कोशिश बताया है और उनकी निंदा की है। इंद्रेश कहते हैं कि चंद्र सिंह गढ़वाली कोई सत्ता के गढे हुए नायक नहीं है बल्कि ब्रिटिश सत्ता से लेकर आजाद भारत की हुकूमतों से जनहित में टकराव ने ही उनको इतना बड़ा नायक बनाया कि कभी सत्ता का हिस्सा न रहने के बावजूद सत्ता प्रतिष्ठान उनका नाम लेने को विवश रहा है।
वाकई सरकार का एक अच्छे कार्यक्रम मे यह व्यवहार चंद्र सिंह गढ़वाली के चाहनेवालों को नाराज करने वाला है। कहीं ऐसा न हो कि लोग इस तरह के कार्यों के कारण दीनदयाल उपाध्याय से ही नफरत करने लगें! सत्ता के गढे हुए नायक सत्ता रहने तक ही टिके रह सकते हैं। उसके बाद जनता उन का नामोनिशान भी मिटा देती है।