देहरादून में लंबे समय से चले आ रहे तकनीकी विश्वविद्यालय की कुलपति का वुमन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की डायरेक्टर अलकनंदा अशोक से अधिकारों का विवाद इतना गहरा गया है कि 15 दिन से विश्वविद्यालय के गेट पर तालाबंदी है।
पढ़ाई लगभग ठप है। विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे शिक्षकों की इस आंदोलन में अब भाजपा के नेता भी कूद पड़े हैं।
कुलपति PK गर्ग और डायरेक्टर अलकनंदा अशोक के बीच शुरू हुई अधिकारों को हथियाने की लड़ाई अब प्रतिष्ठा के प्रश्न में बदल गई है और इसमें शिक्षकों तथा राजनीतिक व्यक्तियों के घुसने से यह तकरार और गंभीर हो चुकी है।
पर्वतजन द्वारा जब इसकी पड़ताल की गई तो कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
तकनीकी विश्वविद्यालय में सब कुछ जैसा चल रहा था, वैसा ही चलता रहता तो शायद कोई विवाद न होता। विवाद तब शुरू हुआ, जब महिला प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रतिनियुक्ति पर जी बी पंत विश्वविद्यालय से आई अलकनंदा अशोक ने कुलपति PK गर्ग द्वारा कुछ खरीद फरोख्त के कागजों पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
काफी दबाव डालने के बाद भी अलकनंदा अशोक ने हस्ताक्षर करने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि वह खरीद फरोख्त बिना उनसे पूछे तथा बिना उनकी राय लिए की गई थी।
इसमें गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए उन्होंने साफ कह दिया कि जिन्होंने भी यह खरीद-फरोख्त की है वही इसमें हस्ताक्षर करें।
निदेशक को अपने अनुसार काम न करा पाने पर कुलपति खफा हो गए। इसी तरह के एकाध और अन्य काम अपने अनुसार न करा पाने से कुलपति को लगा कि वह कुलपति होते हुए भी एक निदेशक से अपनी बात नहीं मनवा पा रहे हैं। उन्होंने निदेशक अलकनंदा की प्रतिनियुक्ति समाप्त करके उन्हें वापस भेजने की मुहिम शुरू कर दी। किंतु यहां भी कुलपति मात खा गए।
देहरादून में पढ़ रहे बच्चों और पति अशोक कुमार के देहरादून में ही सेवारत होने के कारण अलकनंदा अशोक ने देहरादून में अपनी प्रतिनियुक्ति की अवधि और बढ़वा दी।
खुद को कमजोर पड़ता देख कुलपति ने उपनल से संविदा पर नियुक्त अरुण कुमार शर्मा नाम के व्यक्ति को सहायक कुलसचिव बनाकर अपने पक्ष में कर इस लड़ाई में शामिल कर दिया।
संविदा पर कार्य कर रहे अध्यापकों के अनुबंध को रिन्यू करने का समय आया तो पहले के वर्षो की भांति अलकनंदा अशोक ने अध्यापकों को कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करने के लिए पीबीएएस फार्म भरने के लिए कहा। यह फॉर्म एक तरह से अध्यापकों की क्षमता को परखने की एक प्रक्रिया है। पीवीएएस फार्म संविदा पर कार्य कर रहे अध्यापकों की परफॉर्मेंस जानने के लिए भराया जाता है। यह फॉर्म वर्ष 2014 से प्रतिवर्ष अध्यापकों से कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूवल के समय पर भराए जाते रहे हैं। कुलपति ने इसे सही मौका देखते हुए हस्तक्षेप कर दिया और कहा कि पीबीएएस फार्म तो प्रमोशन के वक्त भराया जाता है।कुलपति ने सहायक कुलसचिव से पत्र जारी कराया कि कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करते समय यह भराया जाना जरूरी नहीं होता। कुलपति ने संविदा पर कार्यरत अध्यापकों को बहका दिया कि ऐसा करके निदेशक उन्हें बाहर का रास्ता दिखा कर अपने चहेते लोगों को संविदा पर नियुक्त कर सकती हैं। इस पर भरोसा करके और कुलपति को सर्वेसर्वा मानते हुए अध्यापकों को भी लगा की निदेशक तो प्रतिनियुक्ति पर आई हुई है और वह जल्दी ही वापस पंतनगर विश्वविद्यालय भेज दी जाएंगी, ऐसे मे उन्होंने कुलपति की बात मानने में ही समझदारी समझी और पीबीएएस फार्म भरने से इनकार कर दिया। निदेशक के संज्ञान में यह तथ्य भी है कि कुछ शिक्षकों की नियुक्ति एआईसीटीई के मानकों को नजरअंदाज करके की गई है। ऐसे शिक्षकों को भी सेवा समाप्ति का डर है।
फॉर्म न भरने से इधर संविदा अध्यापकों का अनुबंध का समय समाप्त हो गया सेवाएं समाप्त होने के डर से अध्यापकों ने आंदोलन शुरू कर दिया। इस तरह कुलपति की पहले से चली आ रही लड़ाई में शिक्षक भी शामिल हो गए।
आंदोलन पर चल रहे संविदा शिक्षकों के कारण पढ़ाई में व्यवधान ना हो इसके लिए निदेशक अलकनंदा ने गेस्ट फेकल्टी की मदद से कक्षाएं सुचारू रखी।कक्षाओं में व्यवधान न पड़ने से कुलपति की लड़ाई कमजोर हो गई तथा संविदा शिक्षकों के मन में असुरक्षा की भावना और गहरा गई।
अब तो उन्हें लगा कि निदेशक अलकनंदा को हटाना ही एकमात्र विकल्प है।अन्यथा यदि वह यह लड़ाई जीत गई तो फिर वह संविदा शिक्षकों को भी हटा ही देंगी। जब अलकनंदा अशोक से संविदा शिक्षकों को हटाने के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि वह किसी को नहीं हटाने जा रही वह तो सिर्फ संविदा शिक्षकों के रिन्यूवल के समय पर भरी जाने वाली पीवीएस फार्म की प्रक्रिया को ही पूरा करने को कह रही हैं।
अलकनंदा अशोक का कहना है कि जब वर्ष 2014 से संविदा शिक्षक यह फॉर्म भरते आ रहे हैं तो फिर अब उन्हें किसी के बहकावे में आकर इससे मना नहीं करना चाहिए। यह केवल एक सामान्य प्रक्रिया है। अलकनंदा आशोक कहती है कि जिन शिक्षकों को पढ़ाते हुए चार-पांच साल का अनुभव हो चुका है, वह किसी भी नए शिक्षक से अधिक अनुभवी ही होंगे। ऐसे में उनकी सेवाएं समाप्त करने का प्रश्न ही नहीं उठता। संविदा शिक्षकों के मन में डर है कि वह पीबीएएस फॉर्म न भरने के कारण हटा दिए जाएंगे।इसलिए वह खुद को ना हटाए जाने का लिखित आश्वासन चाहते हैं, किंतु डायरेक्टर की मजबूरी है कि वह तय प्रक्रिया पूरी किए जाने से पहले लिखित आश्वासन नहीं दे सकती,वरना तय प्रक्रिया और औपचारिकता पर फिक्सिंग का ठप्पा लग जाएगा।कुलपति ने संविदा शिक्षकों के मन में अनियमितता के नाम पर यह भर दिया कि अलकनंदा अशोक अपना वेतन खुद ही ड्रा करती हैं तथा बायोमेट्रिक पर हाजरी भी नहीं लगाती। इस सवाल पर अलकनंदा अशोक का कहना है कि महिला तकनीकी विद्यालय स्वायत्तशासी संस्था है और स्ववित्तपोषित है इसलिए वह वर्ष 2015 मे कुलपति द्वारा ही अपने तथा स्टाफ के वेतन आदि वित्तीय मसलों को हल करने के लिए विधिक रुप से अधिकृत की गई है। और महिला तकनीकि विद्यालय ही नही बल्कि ऐसे सभी अन्य कालेजों को भी यह पावर दी गई है।
बायोमेट्रिक हाजिरी के सवाल पर अलकनंदा कहती हैं कि उन्हें विद्यालय के काम से शासन और अन्य संस्थानों से नियमित संपर्क में रहना पड़ता है, इसलिए बायोमेट्रिक हाजिरी लगाना उनके लिए अनिवार्य नहीं है। तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति ने संविदा शिक्षकों को अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई में शामिल करने के लिए उन्हें बड़ी चालाकी से सिर्फ वही कागज दिखाए, जिसमें अलकनंदा अशोक को वापस पंतनगर भेजे जाने के आदेश दिए गए थे किंतु हकीकत में अलकनंदा अशोक की प्रतिनियुक्ति अवधि अगस्त वर्ष 2018 तक के लिए बढ़ा दी गई है। यह जानकारी कुलपति ने छुपा दी ताकि संविदा शिक्षक यह समझें कि अब तो मैडम जाने ही वाली है इसलिए कुलपति का पक्ष लेना कि श्रेयस्कर है।
रही सही कसर विद्यालय को 10 करोड़ रुपए की मिली हुई ग्रांट ने पूरी कर दी। केंद्र सरकार द्वारा तकनीकी विद्यालयों को गुणवत्ता बढ़ाने के लिए 10 करोड रुपए की ग्रांट स्वीकृत की गई है। कुलपति चाहते हैं कि भारी भरकम धन राशि को खर्च करने में उनकी भूमिका रहे। इधर डायरेक्टर में इसके लिए तय नियम-कायदों के अनुसार बोर्ड ऑफ गवर्नर गठित कर लिया है। इस प्रकार से इस ग्रांट को खर्च करने में कुलपति की भूमिका शून्य हो गई है। इस एक और कदम से कुलपति बौखला गए हैं।
इस लड़ाई में सोशल मीडिया और राजनीतिक रंग लेने के लिए भाजपा की प्रदेश महिला प्रवक्ता शोभना रावत स्वामी भी कूदी हुई है। यूं देखा जाए तो शोभना रावत स्वामी का कोई लेना देना नहीं है। शोभना रावत स्वामी के पति अनुराग के. स्वामी भी जी बी पंत यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और वह इससे पहले घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज के डायरेक्टर रह चुके हैं। शोभना रावत स्वामी का उद्देश्य है कि वह अपने पति को पंतनगर से महिला प्रौद्योगिकी संस्थान में तैनात करना चाहती हैं। इसलिए यदि अलकनंदा अशोक यहां से विदा हो जाती हैं तो शोभना रावत स्वामी भाजपा नेत्री होने के नाते अपने पति को महिला तकनीकी विद्यालय में तैनात करने में सफल हो जाएंगी। शोभना रावत स्वामी ने भी अलकनंदा अशोक को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए जी तोड़ कोशिश की हुई है।
शोभना ने मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक भाजपा नेताओं के द्वारा काफी दबाव बनवा दिया है किंतु अभी तक वह सफल नहीं हो पाई। बौखलाकर अब शोभना रावत स्वामी भाजपा के खिलाफ ही प्रचार करने लगी है।
महिला तकनीकी विद्यालय में यह विवाद शासन के गले की हड्डी भी बनता जा रहा है। इससे पहले भी इस महिला तकनीकी विद्यालय में प्रोफेसर एस के गोयल को निदेशक बनाया गया था किंतु अप्रैल 2015 में उन पर छात्राओं ने यौन उत्पीड़न और आर्थिक उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। इन आरोपों के चलते शासन ने यह तय किया था कि महिला तकनीकी विद्यालय में पुरुष निदेशक तैनात न किया जाए। इसीलिए शासन बिना किसी आरोप के अलकनंदा अशोक को हटाने के लिए राजी नहीं है।अलकनंदा अशोक को हटाने की स्थिति में फिलहाल शासन की नजर में कोई महिला निदेशक भी नहीं है। आंदोलन कर रहे संविदा शिक्षकों और कुलपति की लड़ाई की सबसे कमजोर कड़ी यह है कि अलकनंदा अशोक पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं है।
वह केवल प्रक्रियाओं का पालन कराने पर ही अड़ी हुई है जबकि कुलपति से राज्यपाल भी बहुत खफा हैं बीते कुछ दिनों पहले कुलपति PK गर्ग ने किसी और संस्थान में नौकरी के लिए इंटरव्यू देते समय न तो राज्यपाल से अनुमति ली और न ही पूछे जाने पर उन्हें सही सूचना दी। ऐसे में डायरेक्टर का तो पता नहीं, लेकिन कुलपति के सर पर जरूर विदाई की तलवार लटकी हुई है।
बहरहाल स्थिति यह है कि सरकार के लिए यह लड़ाई सांप छछूंदर की लड़ाई बन गई है। इसमें सरकार की भूमिका तमाशबीन बने रहने के अलावा कुछ और नहीं दिख रही है। निदेशक को 3 साल की प्रतिनियुक्ति मिली हुई है और उसे खत्म करने का शासन के पास कोई वाजिब कारण नहीं है।
आंदोलन पर बैठे संविदा शिक्षकों के लिए आगे खाई और पीछे कुंआ है। इधर कुलपति एक ओर खुद को राज्यपाल की नाराजगी से बचाने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर निदेशक से हार मानने को तैयार नहीं हैं।
फिलहाल गेंद तकनीकी शिक्षा मंत्री का कार्य देख रहे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तथा अपर मुख्य सचिव तकनीकी शिक्षा ओम प्रकाश के पाले में है। अब सभी की नजरें इन्हीं पर टिकी है। तब तक के लिए सभी अपनी-अपनी ओर से अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ रहे देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है ।देखना यह है कि इस लड़ाई में अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों का भविष्य खराब ना हो।