विषम परिस्थिति के बावजूद भी समाज में हर समय जागरूकता का अलख जगाने वाले समाजसेवी कविन्द इष्टवाल और उनकी सहयोगी संस्था दगड्या ने इस स्कूल को गोद लेने का संकल्प लेकर अपनी जिम्मेदारी का करर्तव्यपरायणता का परिचय दिया है। इतना ही नहीं इससे पहले वे इसोटी गांव के प्राथमिक विद्यालय को भी गोद ले चुके हैं जहां कम्प्यूटर के साथ-साथ बच्चों के लिए विभिन्न ज्ञानोपयोगी पुस्तकों की व्यवथा की गई जिसके बाद यहां छात्रों की संख्या 07 से बढ़कर 18 हुई है। इतना ही नहीं इससे पूर्व कविन्द्र इष्टवाल ने इन्दिरापुरी इन्टर कालेज हेतु 02 किमी. मोटर मार्ग का निर्माण अपने निजी संसाधनों से कराया है। इसी क्रम को जारी रखते हुए उन्होंने आज की जरूरत के हिसाब से उन्होंने इंटर कॉलेज में छात्र-छात्राओं हेतु कम्प्यूटर तथा खेल सामग्री उपलब्ध करवाई है। इसके साथ ही जल्द विद्यालय को नए फर्नीचर देने का भी आवश्वासन दिया है। इसके अतिरिक्त क्षेत्र के वे लोग जिन्होंने इस विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की उनमें सुरेन्द्र सिंह चौहान (सेवानिवृत्त विधानसभा उपसचिव), कर्नल दिनेश इष्टवाल, कर्नल शांति प्रसाद थपलियाल, संदीप इष्टवाल आदि लोगों के द्वारा भी विद्यालय को यथासंभव सहायता किए जाने का आवश्वासन दिया।
सरकारी तंत्र की निष्क्रियता का जीता जागता उदाहरण है आज की डांवाडोल शिक्षा प्रणाली। सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खस्ताहाल है कि उनमें न तो भवन हैं, न पढ़ाने वाले मास्टर, और न ही अन्य सुविधाएं। फिर भी सरकारी तंत्र का हर साल दावा रहता है कि शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारा जा रहा है। अब ऐ किस सुधार कि बात कर रहे हैं ऐ पता नहीं परंतु इतना जरूर है कि समाज के जागरूक लोग अगर अपनी जिम्मेदारी न निभाएं तो सरकारी तंत्र के भरोसे तो सिर्फ ताले लटकते मिलेंगे।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पौड़ी गढ़वाल के ऐकेश्वर ब्लॉक के अन्तर्गत स्थित इन्दिरापुरी इंटर कॉलेज की। जिसकी स्थापना आजादी के समय हुई थी और जिसकी स्थापना में उस समय स्थानीय लोगों ने अहम् भूमिका निभाई थी। पट्टी मवालस्यूं के अन्तर्गत यह स्कूल उस समय यह बहुत बड़ी उपलब्धी हुआ करती थी जिसमें सासों-मासों से लेकर तमाम आसपास के गांवों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इस इंटर कालेज का अपना स्वर्णिंम इतिहास रहा था और यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले देश-विदेश के विभिन्न पदों पर सुशोभित हुए हैं। परंतु आज सरकारी तंत्र की मार झेल रहा यह इंटर कालेज बंदी की कगार पर पहुंच गया है। झर्झर भवन और खस्ताहाल व्यवस्था के आगे सब बेबस नजर आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ पलायन की मार से यह स्कूल भी अछूता नहीं है यहां लगातार बच्चों की संख्या घट रही है। इस विद्यालय में विज्ञान विषय को मान्यता लगभग दो-तीन दशक पहले मिल गई थी परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक इसे विज्ञान विषय पढ़ाने हेतु शिक्षक और अन्य सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं। बड़ा आश्चर्य होता है यह सुनकर कि बरसों पहले विषय स्वीकृत हो जाते हैं परंतु उन्हें पढ़ाने वाले मिलते ही नहीं हैं। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को मजबूरी में विज्ञान विषय पढ़ने हेतु 10-12 किमी पैदल का रास्ता नाप कर दूर जाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। आज बंदी की कगार पर पहंुच चुका यह विद्यालय गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है ऐसे में आस पास के गांवों के बच्चों की पढ़ाई का खतरा बन गया है।
इस अवसर पर इसोटी के ग्राम प्रधान रोशन सिंह नेगी, अशोक मंमगाई, बृजमोहन वेदवाल, विद्यालय के शिक्षक कैलाश थपलियाल आदि उपस्थित थे।