दरियानगर में सार्वजनिक पार्क पर बारातघर बनवाकर कब्जा करने की साजिश
क्षेत्रवासियों ने विरोध किया तो लगाया छेडख़ानी का आरोप
पांच लोगों के खिलाफ फर्जी ढंग से दी तहरीर
जनप्रतिनिधियों से बनवाया जा रहा दबाव
80 प्रतिशत निर्माण दिखाकर प्रशासन को किया जा रहा गुमराह
रुद्रपुर। डबल इंजन सरकार से ऊंचे रसूखों के चलते छुटभैये नेता और उनके चमचे भी अब मनमानी पर उतर आए हैं। इसका एक उदाहरण रुद्रपुर के दरियानगर बस्ती में देखने को आया है।
रुद्रपुर के दरियानगर में वर्षों पुराने पार्क पर पार्षद पति की मलाईखोर नजर पड़ी तो उन्होंने स्थानीय लोगों को भनक लगाए बिना वहां पर बारातघर का प्रस्ताव पास करा दिया। यही नहीं बारातघर के लिए नगरपालिका से लगभग २६ लाख का बजट भी पास करा लिया। बस्तीवासियों ने जब यह तर्क देते हुए विरोध किया कि यह पार्क वर्ष १९९० से स्थापित है और यहां बस्ती के बच्चे, बुजुर्ग समेत तमाम लोग घूमते हैं। इसके अलावा यहां छोटे-मोटे कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। बस्ती में यही एकमात्र ऐसा खुला स्थान है, जहां लोग खुली हवा में घूम सकते हैं। ऐसे में यहां बारातघर का निर्माण कर बस्तीवासियों के हितों पर अतिक्रमण किया जा रहा है। इस पर पार्षद पति बस्तीवासियों को धमकाने के साथ ही अपनी तीन रिश्तेदारों को गवाह बनाते पांच लोगों के खिलाफ पुलिस चौकी में तहरीर दी है कि इन्होंने उनकी पत्नी के साथ अभद्रता की, लेकिन बस्तीवासी इस आरोप को निराधार व बेबुनियाद बता रहे हैं। पुलिस ने इन बेकसूर लोगों के खिलाफ एकतरफा मुकदमा कर दिया है तो स्वाभाविक है कि बस्तीवासियों का विश्वास भी डबल इंजन से अवश्य उठेगा।
बस्ती निवासी दीपक कुमार बताते हैं कि पार्षद प्रमिला साहनी नाममात्र की पार्षद हैं। उनका सारा कामकाज उनके पति फुदेना साहनी और उनके चमचे करते हैं। वह भी पूर्व में पार्षद रह चुके हैं। भाजपा से जुड़े यह पार्षद पति-पत्नी बस्ती में यह कहकर अपना रौब झाड़ते हैं कि नगरपालिका अध्यक्ष भी भाजपा के ही हैं और इस समय उनकी डबल इंजन की सरकार चल रही है।
दो माह पूर्व पार्षद ने पार्क में बारातघर बनाने का प्लान बनाया। दरअसल इसके पीछे का राज यह है कि बारातघर का निर्माण करवाकर साहनी स्थानीय निवासियों का मुंह बंद कराना चाहते हैं, लेकिन लोगों को जब यह एहसास हुआ कि उनसे यह पार्क छीनने की कोशिश हो रही है तो उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया है। चूंकि पूरे पार्क में बारातघर का निर्माण नहीं होना है, ऐसे में बारातघर के अतिरिक्त जगह पर उनकी नजर है। पार्क के एक ओर साहनी के काउंटर आदि रखे जाने तो कुछ हिस्से पर अपने रिश्तेदारों से बकरियां आदि पशु बंधवाकर इस ओर इशारा करता है कि भविष्य में साहनी परिवार की नजर पार्क के इस हिस्से पर खुर्द-बुर्द कर कब्जा करना है। उक्त तस्वीरों को देखकर स्पष्ट हो रहा कि अभी इस स्थान पर १० प्रतिशत भी निर्माण कार्य नहीं हुआ, लेकिन पार्षद धन का भुगतान कराने के लिए यहां पर ८० फीसदी निर्माण कार्य पूरा होने की स्थानीय विधायक के माध्यम से झूठे तथ्य प्रस्तुत करवा रहे हैं।
लाखन सिंह कहते हैं कि जिले की पहली जनसुनवाई में बस्तीवासियों ने बारातघर निर्माण के खिलाफ शिकायत की तो जिलाधिकारी नीरज खैरवाल ने इस निर्माण कार्य को रुकवाने के साथ ही इस पर जांच बैठा दी है। निर्माण रोकने से बौखलाए फुदेना साहनी ने अब बारातघर का विरोध करने वाले लोगों को सबक सिखाने की ठान ली। वह तरह-तरह से लोगों को धमका रहे हैं। यही नहीं लोगों पर अनर्गल आरोप लगाकर अपना पलड़ा भारी करने की कोशिश कर रहे हैं। वह स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी बस्तीवासियों पर दबाव डलवा रहे हैं, लेकिन स्थानीय निवासियों ने भी अपने सामुहिक हितों की सुरक्षा के लिए किसी भी तरह के दबाव में न आने का संकल्प ले लिया है। आवश्यकता पडऩे पर न्यायालय की शरण में भी जा सकते हंै।
कांति भाकुनी बताती हैं कि पार्क की जगह के लिए ८० के दशक में एक बड़ा आंदोलन किया गया था। तब कहीं जाकर यह जगह मिल पाई। जिसमें वर्ष १९९० में के चेयरमैन सुभाष चतुर्वेदी के कार्यकाल में सार्वजनिक पार्क का निर्माण कराया गया था। अत: सार्वजनिक पार्क में बारातघर बनाने का कोई औचित्य ही नहीं है, क्योंकि किसी भी सार्वजनिक पार्क में निर्माण आदि न किए जाने संबंधी निर्देश विभिन्न न्यायालयों की ओर से दिए गए हैं। यह भी सर्वविदित हैं कि नई कालोनियों में पार्कों का निर्माण किया जाना अनिवार्य किया गया है। ऐसे में करीब ढाई दशक से स्थापित इस सार्वजनिक पार्क पर किसी भी तरह का अतिक्रमण बस्तीवासियों को मंजूर नहीं है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार के जनप्रतिनिधि ही जब छुटभैये और पार्षद जैसे नेताओं द्वारा इस तरह की मनमानी, उत्पीडऩ व अराजकता को प्रोत्साहित कर रहे हों तो फिर न्याय की उम्मीद किससे की जा सकती है!