कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के फर्जी हस्ताक्षर करके यौन उत्पीड़न के आरोपी इंजीनियर अयाज अहमद को पीडब्ल्यूडी का मुखिया बनाने के मामले में सचिवालय के अधिकारी केवल जांच-जांच का खेल खेल रहे हैं और मामले को दबाने का भरपूर प्रयास जारी है।
सचिवालय के एक निजी सचिव ने कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की फर्जी सिग्नेचर करके अयाज अहमद को पीडब्ल्यूडी का मुखिया बनाने की फाइल मुख्यमंत्री के लिए अनुमोदित कर दी थी। जिसके चलते अयाज अहमद पीडब्ल्यूडी के मुखिया भी बन गए।
सतपाल महाराज को पता चला तो उन्होंने इस मामले में एफआईआर करने की तैयारी कर दी,लेकिन तब उन्हें दिलाशा दिया गया कि पहले सचिवालय प्रशासन अपने स्तर से इसकी जांच कर देगा,तभी एफआईआर कराना ठीक रहेगा।
लगभग 1 महीने तक सचिवालय प्रशासन के अपर सचिव प्रताप शाह आरोपित निजी सचिव और अन्य अधिकारियों के बयान अंकित करते रहे और इसके बाद अपने स्तर से जांच पूरी करके मुख्य सचिव को सौंप दी।
तब से यह कयास लगाए जा रहे थे कि अब इस मामले में एफ आई आर दर्ज करा दी जाएगी, लेकिन अब इस मामले में एक और जांच बिठा दी गई है।
अपर सचिव कार्मिक डॉ.ललित मोहन रयाल बीडी राम और संयुक्त सचिव श्याम सिंह चौहान को लेकर एक और जांच समिति बना दी गई है।
जबकी हालत यह है कि अभी तक पिछली जांच के मामले में आरोपित निजी सचिव को अभी तक आरोपपत्र तक नहीं सौंपा गया है।
अब नई टीम भी असमंजस में पड़ गई है कि इस मामले में आरोपित निजी सचिव को आरोप पत्र कौन देगा!
नई टीम उनको आरोप पत्र देगी या अपनी जांच कर चुका सचिवालय प्रशासन उनको आरोपपत्र देगा।
इस संबंध में जांच टीम ने सचिवालय प्रशासन से दिशा निर्देश तो मांगे हैं, लेकिन जांच टीम को अभी तक दिशा निर्देशों का इंतजार है।
सोचने वाली बात यह है कि आखिर क्या कारण है कि एक कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज इतने बेबस हो गए हैं कि वह अपने फर्जी हस्ताक्षरओं की जांच तक नहीं करा पा रहे!क्या ब्यूरोक्रेसी इतनी हावी है !
इससे सवाल यहां यह खड़ा होता है कि कही अयाज अहमद को बचाने में कुछ बड़े नेताओं और अधिकारियों का हाथ तो नहीं है!