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बड़ी खबर:मानहानि मामले में पत्रकार को राहत। बीजेपी नेता को झटका 

March 7, 2025
in उत्तराखंड
बड़ी खबर:मानहानि मामले में पत्रकार को राहत। बीजेपी नेता को झटका 
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उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन भट्ट को देहरादून की जिला सत्र न्यायालय से राहत मिली है। बीजेपी नेता बलजीत सोनी द्वारा उनके खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि के मुकदमे पर अदालत ने रोक लगा दी।

क्या है पूरा मामला?

मनमोहन भट्ट ने 5 फरवरी 2023 को अपने यूट्यूब चैनल पर बीजेपी नेताओं के कारनामों को उजागर करने वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में तीन बीजेपी नेताओं का जिक्र किया गया था, जिसमें से एक का नाम हाकम सिंह था, जो उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) पेपर लीक मामले में आरोपी था। दूसरा नाम संजय धारीवाल का था, जो पटवारी भर्ती परीक्षा सहित अन्य पेपर लीक मामलों में शामिल था और बाद में गिरफ्तार हुआ।

तीसरा नाम बीजेपी नेता बलजीत सोनी का था, जिनका देहरादून के बिल्डर सुधीर विंडलास से 25 लाख रुपये के लेन-देन को लेकर विवाद चल रहा था। इस विवाद की वॉट्सऐप चैट लीक होने के बाद मामला चर्चा में आया। इसी आधार पर मनमोहन भट्ट ने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी।

बीजेपी नेता ने किया केस, कोर्ट ने दी राहत

इस रिपोर्ट के बाद बलजीत सोनी ने अपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिस पर अदालत ने वारंट जारी किए। इस पर मनमोहन भट्ट ने अपने अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी के माध्यम से उच्च अदालत में अपील की, जिसे स्वीकार कर लिया गया। अदालत ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए पत्रकार को राहत प्रदान की।

अभिव्यक्ति की आज़ादी का हवाला

अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी ने कोर्ट में दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2024 के एक फैसले का उदाहरण दिया, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को गलत ठहराया गया था।

उन्होंने तर्क दिया कि मनमोहन भट्ट द्वारा प्रसारित समाचार भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अपवाद 9 और 10 के तहत “गुड फेथ” (सद्भावना) की श्रेणी में आता है, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

यह मामला पत्रकारों के अभिव्यक्ति के अधिकार बनाम राजनेताओं के कानूनी हथकंडों का उदाहरण है। अदालत के इस फैसले से पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा हुई है और एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ कि सच्चाई की रिपोर्टिंग पर दबाव बनाने के लिए मुकदमों का सहारा लेना हमेशा सफल नहीं होता।


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