राज्य में लगातार स्वास्थ्य अव्यवस्थाओं के कारण नागरिकों को हो रही परेशानी किसी से छुपी नहीं है,सरकार के वादे हालांकि आसमान छूते नजर आते हैं परंतु हालात विपरीत है इसका एक मुख्य कारण स्टाफ की कमी भी है।
पिछले 13 वर्षों में नहीं हुई स्टाफ नर्सेज की नियुक्ति
जी हां,कहीं ना कहीं आज नागरिकों को इलाज ना मिल पाने के प्रमुख कारणों में से एक कारण सरकारी अस्पतालों में राज्य बनने के बाद स्टाफ नर्सेज की नियुक्ति जरूरत के अनुसार ना कर पाना और इसके प्रति राज्य सरकार की असंवेदनशीलता भी है ।
राज्य में पिछले 13 वर्षों से स्टाफ नर्सेज की नियुक्ति नहीं हो पाई है और यह बड़ा दुर्भाग्य है कि एक तरफ लगातार विज्ञापनों में अच्छा इलाज नागरिकों को देने की बात हमारी राज्य सरकार कहते तो आई हैं,लेकिन यह कैसे संभव हो पाएगा बिना नर्सेज की नियुक्ति किए इसके प्रति हम संवेदनशील कभी नहीं हुए।
राज्य में रिक्त है लगभग 10,500 से अधिक स्वीकृत पद, जिन्हें पिछले 13 वर्षों से नहीं भरा जा सका है। सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए 12 दिसंबर 2020 को 2621 पदों पर स्थायी नर्सेज भर्ती हेतु विज्ञप्ति जारी की थी,जिसके लिए लगभग 12000 लोगों से अधिक आवेदन किए गए,परंतु 3 बार यह भर्ती परीक्षा रुक गई।
उसके बाद लगातार वर्षवार नियुक्ति की मांग प्रदेश में उठती रही,लगातार आंदोलन होते रहे लेकिन आज तक नियुक्ति फिर भी नहीं हो पाई ।
सरकार ने लगातार चुनाव के दौरान नर्सेज की नियुक्ति कराने के वादे तो किए जिस पर अब तक सफल नहीं हो पायी
पिछले ही दिनों वर्ष 2022 में एलिंग वेलफेयर नर्सेज फाउंडेशन एवं बेरोजगार नर्सेज उत्तराखंड महासंघ द्वारा लगभग 102 दिन हल्द्वानी तो लगभग 113 दिन देहरादून में धरना प्रदर्शन किया,जिसमें दोनों संगठनों की मांग थी कि दिसंबर 2020 में निकली 2621 पदों की भर्ती को वर्षवार जल्द से जल्द कराया जाए।
राज्य सरकार जिसके लिए माननीय न्यायालय के समक्ष भी गई और वन टाइम सेटेलमेंट के लिए अनुमति भी प्राप्त कर लाई ।
यह आदेश के बाद दोनों संगठनों ने अनिश्चितकालीन धरने को समाप्त कर दिया,कुछ ही समय बाद राज्य सरकार द्वारा 1564 पदों पर नर्सेज भर्ती हेतु आवेदन मांगे गए और फरवरी में सभी बेरोजगार नर्सेज द्वारा यह आवेदन भर भी दिए गए हैं,लेकिन उसके बाद से अब तक भर्ती प्रक्रिया में क्या चल रहा है इसकी जानकारी फिलहाल किसी को भी नहीं है।
बेरोजगार संगठन इसके लिए आभार भी जता चुके हैं स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत जी का लेकिन अब कहीं ना कहीं ऐसा लगता है यह आभार एक कार्यक्रम रूप में ही रह सका ।
अब पुनः मीडिया सूत्रों से पता चल रहा है बेरोजगार नर्सेज एक व्यापक आंदोलन की तैयारी में है और प्राप्त जानकारी यह भी है कि कार्य बहिष्कार की रणनीति भी संगठनों द्वारा बनाई जा रही है ।
वही जानकारी यह भी है 1564 पदों पर निकाली गई यह भर्ती भी चिकित्सा स्वास्थ्य की है चिकित्सा शिक्षा मेडिकल कॉलेज की भर्तियों का क्या होगा यह भी अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।जिसके लिए पुनः नर्सेज संगठनों द्वारा ज्ञापन देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है ।
एक तरफ कुमाऊं के पहाड़ से मरीज सिर्फ हल्द्वानी सुशीला तिवारी अस्पताल के भरोसे हैं तो वहीं दूसरी तरफ गढ़वाल के मरीज श्रीनगर मेडिकल कॉलेज और दून हॉस्पिटल के भरोसे ही है।अब ऐसे में यदि नर्सेज कार्य बहिष्कार एक साथ कर देती है तो मरीजों का इलाज कैसा होगा! कैसे होगा यह भगवान भरोसे ही है और सरकार कहीं ना कहीं इसके लिए विचार ही नहीं कर रही !
आउटसोर्सिंग कंपनियां लाकर सरकार लगातार नर्सेज से छलावा करती आ रही है
एक अदृश्य शत्रु कोरोना वायरस जब भारत में पैर पसार चुका था,उस दौरान हमारे राज्य के अस्पतालों के हालात बड़े नाजुक थे,राज्य सरकार ने जल्दबाजी करते हुए अपनी पीठ थपथपाने और अपनी साख बचाने के लिए राज्य के भीतर ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को अस्पताल के भीतर नर्सेज उपलब्ध कराने का ठेका दे दिया ।
लगभग एक साल बाद इसका परिणाम भी दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा क्योंकि कंपनी ब्लैक लिस्टेड थी और नर्सेज का लगभग 3 माह का वेतन रोक कर भाग खड़ी हुई।
पुनः राज्य सरकार द्वारा फिर से एक ब्लैक लिस्टेड कंपनी को ही ठेका दे दिया गया ।
सूत्र बताते हैं मार्च 2023 में उस कंपनी का ठेका भी समाप्त होने को है अब ऐसी स्थिति में राज्य सरकार नर्सेज का भरोसा तो लगभग खो ही चुकी है लेकिन चिंता का विषय है यदि नर्सेज का कार्य बहिष्कार शुरू होता है तो राज्य के नागरिकों का क्या होगी???