उत्तराखण्ड सरकार की उपलब्धि, योजनाओं और भविष्य के रोडमैप का सोशल मीडिया में प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी अब भारत सरकार के उपक्रम ‘बेसिल’ (BECIL) को सौंपने की पूरी तैयारी हो गई है, अब तक यह काम टेंडर के जरिये स्थानीय स्तर पर सौंपा जाता था। विशेषज्ञ व्यक्ति या कंपनियां ही इस काम को अपने हाथ में ले लेते थे, जिससे राज्य में रोजगार का सृजन भी होता था। सुनने में सुखद लग रहा है कि भारत सरकार का उपक्रम अब इस काम को करेगा लेकिन पर्दे के पीछे का सच कुछ और ही है।
दरअसल, सरकार के उपक्रमों को काम सौंपकर कमीशन की बन्दरबाँट का गोरखधंधा उत्तराखण्ड में खूब चल पड़ा है। इसकी शुरुआत राज्य सरकार ने अपनी निर्माण इकाइयों के बजाय बाहरी राज्यों की एजेंसियों को काम देकर की थी। यही वजह रही कि राज्य सरकार की अपनी इकाइयां जैसे पेयजल निगम, सिंचाई विभाग आदि कंगाल होती चली गईं और बाहरी एजेंसियां फलती-फूलती गईं। प्रदेश के नौकरशाहों ने कमीशन के लालच में अपनी एजेंसियों को पनपने नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि बाहरी एजेंसियों ने सिर्फ पैसे कमाये और निर्माण कार्यों के मानक व गुणवत्ता को ठेंगे पर रख दिया।
उत्तराखण्ड का सूचना विभाग (DIPR) ऐसे ही एक प्रयास को विस्तार देने का खाका तैयार कर चुका है। जिसके तहत राज्य में बेसिल की एन्ट्री करवाई जा रही है। जो प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है उसके तहत सोशल मीडिया में सरकार की इमेज बिल्डिंग का काम अब बेसिल करेगा।
ये वो काम है जिस पर राज्य सरकार हर साल करोड़ों रुपया खर्च करती है, लेकिन वास्तविकता में ‘खेल’ कुछ और है। होता यह है कि भारत सरकार के उपक्रम के नाम पर बेसिल राज्य सरकारों से काम तो झटक लेता है लेकिन खुद करने के बजाय फिर उस काम को आगे किसी और व्यक्ति या कम्पनी को सबलेट कर देता है, इसकी एवज में वो अपना ‘हिस्सा’ यानि कॉमिशन ले लेता है। इसी हिस्से में साझेदार बनते हैं राज्य के नौकरशाह। फिर चाहे सरकार के उस धन का सदुपयोग हो या न हो।
इसी तरह के ‘खेल’ का तानाबाना (बेसिल की एन्ट्री का) सूचना विभाग के एक अधिकारी की शह पर बुना जा चुका है। वो भी तब जब पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का बेसिल के साथ इसी तरह के करार को लेकर अच्छा अनुभव नहीं रहा है। उत्तराखण्ड के लिए इस तरह के कमीशन का ‘खेल’ इसलिए भी ठीक नहीं हैं क्योंकि मौजूदा समय में सरकार की इमेज बनाने का यह काम स्थानीय स्किल्ड युवकों के पास है जो इससे अपनी आजीविका चला रहे हैं।
बेसिल को काम देने का सीधा प्रभाव इन स्थानीय लोगों के रोजगार पर भी पड़ेगा। पुख्ता सूत्रों के मुताबिक यह प्रस्ताव तैयार किया जा चुका है, जो शीघ्र ही कैबिनेट बैठक में रखा जाना है। इसमें राहत की बात यह है कि कुछ कैबिनेट मंत्री इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध करने का मन बना चुके हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में एक नौकरशाह की जिद चलती है या विरोध में खड़े मंत्रियों की।
( दीपक फर्सवाण Courtesy fb wall)