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सात दशक बाद भी काला पानी जैसी सजा काटने को मजबूर  हैं कलाप गांव के वाशिंदे

नीरज उत्तराखण्डी

पुरोला। जनपद उत्तरकाशी के विकास खण्ड मोरी के सुदूरवर्ती  कलाप  गांव के वाशिंदे आजादी के सात दशक बाद भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में काला पानी जैसी सजा काटने को मजबूर  हैं। वन अधिनियम विकास में  बाधक बनें है। सडक मार्ग के अभाव में ग्रामीणों को  नैटवाड  मौताड से धौला तथा धौला में सुपिन नदी को ट्राली के सहारे पार करने के बाद 8किमी के जगह-जगह क्षतिग्रत पैदल मार्ग से जोखिम भरी चढाई  नाप कर गांव पहुंचना होता है।

मरू महाराज की ऐतिहासिक  गुफा होने से इस गांव का पौराणिक महत्व समझा जा सकता है। यहां काफी ऊँचाई से बहने बाला दुधिया झरना बरबस ही राहगीरों का मन मोह लेता है। देवदार ,बांज, मोरू के जंगल के समीप  बसा कलाप गांव का सौंदर्य देखते ही बनता  है। शीतल जल और तरो -ताजी हवा तन की थकान और मन ही उलझ गांव पहुंचे ही छू मंत्र कर देती है। प्रकृति ने यहाँ अपनी नेमतों का खजाना  मुक्त हस्त से बिखेरा हैं। प्रकृति सौन्दर्य से भरपूर यह गांव  पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे हुए है किन्तु मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पर्यटन से अछूता रह गया  है।
असुविधाओं का आलम यह है कि मौताड से कलाप 8किमी लम्बे  पैदल मार्ग पर धौला में सुपिन नदी पर लगी ट्राली खराब पडी है। उसकी कोई सुध लेने वाला नहीं  है। वही सुपिन नदी पर बना वैकल्पिक पुल जीर्ण-शीर्ण हालत में है। यदि प्रशासन समय रहते नहीं चेता तो यहाँ कभी भी कोई बडा हादसा हो सकता  है। सुपिन नदी की उभनती लहरें पुल को छू रही है। पुल पर लगी लकडी सडना शुरू हो गई है। लकडी के सडने से पुल पर बनें गड्ढे दुर्घटना को न्यौता दे रहे हैं। फिलहाल इन गडढों को पत्थरों से ढक कर पुल पर जोखिम पूर्ण आवाजाही  जारी है। ग्रामीण जान हथेली पर रखकर पुल पार करने को मजबूर है।


यदि बरसात में जलस्तर बढने से पुल नदी में समा जाता है तो ग्रामीणों को नैटवाड से कुमारला होते हुए 16 किमी भूस्खलन प्रभावित पैदल मार्ग  की खतरों भरी  दूरी तय कर कलाप गांव पहुंचना होता है। यानि कि  उन्हें गांव पहुंचने के लिए  8 किमी की  अतिरिक्त दूरी तय करनी पडती है। नैटवाड से कुमारला होते हुए ग्रामीणों को रास्ते में बहने वाली रवांगाड तथा पाटी गाड की  धार दार लहरों  से दो चार होना पड़ता है। जान जोखिम में डालकर  इन गाडो को पार करना होता है। पैदल मार्ग जगह जगह क्षतिग्रस्त है। तथा पहाड़ी से पत्थर  गिरने का भय बना रहा है। इस जोखिम भरे सफर में कई बार ग्रामीण पहाड़ी से गिरे पत्थरों से जख्मी भी हुए हैं।
आपातकाल में  प्रसव पीडित महिलाओं तथा बीमारों को ग्रामीण इसी रास्ते कुर्सी या डोली में  बैठाकर नैटवाड पहुंचाते। नैटवाड ऐलोपैथिक अस्पताल में भी कोई सुविधा न होने से प्राथमिक उपचार के बाद मरीज को मोरी या फिर पुरोला ले जाना पडता है।
ग्रामीण कहते है कि सन् 1960 में यहां  पेयजल लाइन का निर्माण हुआ था उसी के भरोसे जल आपूर्ति जल रही है। पानी की लाइन खराब होने पर गदेरे या प्राकृति जल स्रोत से  पानी पीठ पर ढोकर लाना पडता है।
आधारभूत सुविधाओं के अभाव में कलाप में  निवास करने वाले 140 परिवार आदिमानव की तरह जीवन यापन कर रहे हैं। वन्य जीव विहार व पार्क के कडे नियम विकास में  बाधक बनें है।  यही वजह है कि कलाप में स्थाई पुल का निर्माण अधर में  है।

सामाजिक कार्यकर्ता  बरदान सिंह राणा का कहना है कि यदि प्रशासन समय रहते नहीं चेता तो यहाँ कभी भी कोई बडा हादसा हो सकता  है। उन्होंने प्रशासन से पुल लगाने तथा ट्राली ठीक करने की मांग की है।

लोनिवि के सहायक अभियंता आरएस पंवार का कहना है कि क्षेत्र में विभाग द्वारा लगाई गई तथा  खराब पडी 4 ट्रालियों  को दुरूस्त करने के लिए शासन को स्टीमेट भेजा गया है। धन उपलब्ध होते ही ट्रालियों को ठीक किया जायेगा।
वही गोविन्द वन्य जीव विहार के उप निदेशक आरपी मिश्रा का कहना है कि बरसात में पुल बनाना संभव नहीं है। ट्राली से ही आवाजाही हो सकती है।
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