कृष्णा बिष्ट, हल्द्वानी//
आईपीएस सदानंद दाते शक्ल से विनम्र और सौम्य लगते हैं, किंतु अपराध के अनुसंधान पर उनकी पकड़ और साफ छवि के कारण आपराधिक तत्व बड़ा खौफ खाते हैं
अपने सीधे और सरल स्वभाव के साथ –साथ कुशल नेतृत्व व तेज़ तर्राज़ छवि के लिये प्रदेश मे अपनी अलग पहचान रखने वाले आई.पी.एस अधिकारी डॉ. सदानंद दाते उन चंद अफसरों मे से हैं, जिन्होंने अपनी काबलियत का लोहा कई बार मनवाया है, चाहे एस.पी के तौर पर उत्तरकाशी में सक्रिय वन्य जीव तस्करों पर अंकुश लगाना हों, नैनीताल जिले मे रहते कई उलझे केस सुलझाने हों या एस.टी.एफ मे रहते हुए किसी भी चुनौती का सामना करना। जिस भी जिले या विभाग में दाते रहे, वहां उन्होंने अपने अनुभव, ज्ञान व कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय देकर अपने लिए गहरा सम्मान अर्जित किया है, उत्तराखंड कैडर 2007 बैच के आई.पी.एस अधिकारी सदानंद बताते है, की यूँ तो यूनिफार्म के प्रति उनके मन में बचपन से ही एक अलग आकर्षण था, किन्तु नब्बे के दशक मे दूरदर्शन के सीरियल ‘उड़ानÓ ने उन के बाल मन मे गहरी छाप छोड़ी थी कि किस प्रकार यूनिफार्म मे रहते हुए समाज के हर वर्ग को न्याय दिलवाया जा सकता है।
वर्ष 2002 मे मुंबई के प्रतिष्ठित ग्रैंड मेडिकल कालेज से एमबीबीएस सदानंद दाते एक साधारण मध्यम वर्गीय महाराष्ट्रियन शिक्षक परिवार से संबंध रखते हैं। अपनी एमबीबीएस की डिग्री के बाद डॉ. सदानंद ओएनजीसी हॉस्पिटल मे चिकित्सा अधिकारी के रूप मे कार्य करने लगे, किन्तु भारतीय पुलिस सेवा के प्रति उन का आकर्षण यहां भी कम नहीं हुआ। यह उनका सिविल सेवा के प्रति जुनून ही था जो अपने पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए अपने अथक परिश्रम के बल पर भारतीय पुलिस सेवा में चयनित हो सके।
2007 मे आई.पी.एस. प्रशिक्षण के बाद डा. दाते को पहली पोस्टिंग अंडर ट्रेनी आई.पी.एस. के तौर पर हरिद्वार और फिर श्रेत्राधिकारी (एएसपी) हल्द्वानी मिली। इसी दौरान कॉर्बेट नेशनल पार्क में हरियाणा के बावारिया गैंग के खिलाफ पुलिस व वन विभाग की संयुक्त कार्रवाई से मिले अनुभव ने उत्तरकाशी जनपद के एसपी बनने के बाद वहां सक्रिय वन्य जीव तस्करों व नशा कारोबारियों पर नकेल कसने में काफी मदद की। इस दौरान 44 से अधिक तेंदुओं की खाल के साथ-साथ कई संरक्षित प्रजाति के वन्य जीवों को तस्करों के चंगुल से छुड़वा कर इस युवा अधिकारी ने अपराध व अपराधियों के प्रति अपना रुख साफ कर दिया था।
एसएसपी नैनीताल रहते 6 वर्षीय संजना दुष्कर्म व हत्याकांड का डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से खुलासा कर इस केस को डॉ. दाते ने डीएनए के माध्यम से सुलझने वाला प्रदेश का प्रथम केस बना दिया, किन्तु ये पहला केस नहीं था जो डॉ. दाते की फॉरेंसिक विज्ञान की बारीक समझ को उजागर करता है। एसएसपी देहरादून रहते हुए भी देहरादून के ही एक सरकारी नारी निकेतन की मूक-बधिर संवासिनियों के साथ हुए दुष्कर्म को भी डीएनए प्रोफाइलिंग की मदद से उजागर कर एक बार फिर अपनी काबिलियत का परिचय दिया।
वहीं हरिद्वार जिले में जो महंत सुधीर गिरी हत्या केस बरसों से ठण्डे बस्ते में पड़ा हुआ था, उसे हरिद्वार जिले में अपने स्थानांतरण के महज कुछ महीनों में ही उजागर कर कई सफेदपोशों की पैरों तले जमीन खिसका दी थी। 2016 में जब उत्तराखंड की राजनैतिक उठापटक का दौर पूरे सबाब पर था।
जहां एक तरफ पूरे देश की मीडिया के लिए उत्तराखंड टीआरपी का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ था तो वहीं हर लिहाज से ये दौर पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था। वो दौर एसएसपी देहरादून के तौर पर सदानंद दाते के लिए बहुत बड़ी चुनौती था, जहां कानून व्यवस्था और सुरक्षा तो मुद्दा था ही, उससे भी बड़ा मुद्दा जनता के मन में पुलिस के प्रति भरोसा कायम रखना था, किंतु इस चुनौती को भी सदानंद दाते ने तटस्थ रह कर बड़े संयम के साथ उत्कृष्ट ढंग से निभा संविधान व जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया, किंतु उस दौरान शक्तिमान के मारे जाने की कसक आज भी उनके मन में है।
पुलिस की चुनौतियों पर पूछने पर डॉ. सदानंद दाते कहते हैं कि पुलिस के लिए जनता की नजरों में उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना सबसे बड़ी चुनौती तो है ही, इसके साथ ही जिस प्रकार समय के साथ तेजी से अपराध का तरीका बदल रहा है, उसी प्रकार पुलिस को भी अपने आप को अपडेट रखने की आवश्यकता है। फिर चाहे साइबर अपराध का क्षेत्र हो या आर्थिक अपराध। श्री दाते जनता के मन में पुलिस के प्रति विश्वास बनाने पर सबसे अधिक बल देते हैं, ताकि जनता पुलिस के पास आने मे असहज महसूस न करे।
डा. दाते का मानना है कि उत्तराखंड पुलिस की सबसे बड़ी तारीफ उसके पढ़े-लिखे युवा हैं, किंतु कच्ची मिट्टी की तरह ये युवा सही या गलत किसी भी दिशा का रुख कर सकते हैं। सही समय पर सही दिशा निर्देश व मार्गदर्शन देकर इन युवाओं को फोर्स की सबसे बड़ी ताकत बनाया जा सकता है, जिसका उन्हें पूर्ण विश्वास है।