भूपेंद्र कुमार
इंश्योरेंस कंपनियां किस तरह से मोटर डीलर से मिलकर फर्जी सर्वे कराकर सरकार को करोड़ों का चूना लगा रही है, आरटीआई में इसका एक खुलासा हुआ है।
सूचना के अधिकार में प्राप्त जानकारी के अनुसार एक सर्वेयर को केवल गाड़ियों के एक्सीडेंट के सर्वे करने के लिए 26 अगस्त 2015 से 11 सितंबर 2017 तक अकेले नेशनल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा 60 सर्वे करने के लिए दिए गए। जिस सर्वेयर को इस कंपनी द्वारा सर्वे दिए गए वह सर्वेयर जनवरी 2014 से बेड रेस्ट पर है। अतुल सिंघल नाम का यह सर्वेयर वह एक कदम नहीं चल सकता। उसके हाथ पैर काम नहीं करते तो फिर उसे 16 दुर्घटना ग्रस्त गाड़ियों के सर्वे नेशनल इंश्योरेंस की ओर से किसके कहने पर दिए गए, जबकि अकेले देहरादून में 1 दर्जन से अधिक सर्वेयर लगभग खाली बैठे हैं।
गौरतलब है कि दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों के सर्वे करने के लिए सर्वेयर को ऑन द स्पॉट जाना पड़ता है। सर्वे के कागजात लेकर नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के कार्यालयों पर भी जाना पड़ता है। देहरादून में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के दो कार्यालय हैं। एक इनका जिला कार्यालय है तथा एक रीजनल कार्यालय है। दोनों कार्यालय राजपुर रोड पर अलग-अलग दूरी पर दूसरी मंजिल पर हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि एक बेड रेस्ट वाला पेशेंट किस तरह दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों का सर्वे कर रहा है। जाहिर है कि सर्वेयर ने सर्वे के काम ठेके पर दे रखे हैं।
दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों के इंश्योरेंस और क्लेम भुगतानों को लेकर सूचना के अधिकार में मांगी गई जानकारी इसका खुलासा हुआ है। जब इस संवाददाता ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के राजपुर रोड स्थित क्षेत्रीय कार्यालय से सूचना मांगी।
एक तो कार्यालय ने 30 दिन के अंदर सूचना उपलब्ध नहीं कराई, दूसरा दो पेज की सूचना उपलब्ध कराने के एवज में दो कार्मिकों का 2 दिन का वेतन भी मांग लिया। कंपनी ने लिखा कि सूचनाएं संकलन करने के लिए एक अधिकारी तथा एक सहायक की नियुक्ति की जानी है। लिहाजा दो कार्मिकों का 2 दिन का वेतन उपलब्ध कराने पर संबंधित सूचनाएं दी जा सकती है।
जाहिर है कि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की भी इस पूरे गड़बड़झाले में सीधी सीधी भागीदारी है और मिलीभगत है। नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक एम एल मंगला कहते हैं कि यदि बीमार व्यक्ति को सर्वे का काम दिया गया है तो उसकी जांच कराई जाएगी।
विगत कुछ वर्षों में इंश्योरेंस कंपनियों और कार डीलरों के बीच सांठगांठ के चलते मनमाफिक फर्जी सर्वे करने वाले सर्वेयर को ही सर्वे करने के लिए कहा जाता है। यदि कोई इमानदारी से सर्वे करना चाहता है तो उसे मोटर डीलर से लेकर इंश्योरेंस कंपनियां तक बिजनेस से बाहर कर देती हैं। इससे अकेले देहरादून से प्रतिमाह सरकार को राजस्व के रूप में लाखों रुपए का चूना लग रहा है।