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इनकी राजभवन जैसी किस्मत कहां?

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विभिन्न विभागों से सचिवालय में संबद्ध कर्मचारी कई वर्षों से सचिवालय में ही समायोजन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2005 से पहले अपने मूल विभागों में विनियमित हो चुके ये कर्मचारी अपने उच्चाधिकारियों की उदासीनता से खफा हैं

पर्वतजन ब्यूरो

सचिवालय में एक दर्जन से अधिक कर्मचारी अपने संविलयन की आस लगाए बैठे हैं। विभिन्न विभागों और निगमों से सचिवालय में संबद्ध कर्मचारी चाहते हैं कि उन्हें उत्तराखंड सचिवालय में ही संविलयन कर दिया जाए।
राज्य गठन से अब तक कई बार कर्मचारियों का संविलयन किया जा चुका है। इससे पहले वर्ष २००२, २००३, २००८ एवं २०१४ में भी संविलयन के माध्यम से अब तक लगभग ६०० से अधिक कर्मचारियों का समायोजन सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा किया जा चुका है।
राजभवन सचिवालय में भी विभिन्न विभागों व निगमों के दैनिक, कार्य प्रभारित एवं संविदा के आधार पर संबद्ध कर्मचारियों का राजभवन सचिवालय में समायोजन किया जा चुका है।
राजभवन में होमगार्ड विभाग से चार कर्मचारी आउटसोर्स पर तैनात थे। इन चारों कर्मचारियों को तत्कालीन राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने होमगार्ड से हटाकर एक जनवरी 2००३ से संविदा के आधार पर नियुक्त किया और फिर ये सभी स्थायी हो गए। राज्यपाल के तत्कालीन सचिव एन. रविशंकर ने इन्हें पहले एक वर्ष के लिए संविदा पर नियुक्ति दी और फिर इन्हें नियमित कर दिया।होमगार्ड से तैनात ये कर्मचारी थे सुरेंद्र सिंह पुत्र श्री कलम सिंह, दिनेश भट्ट पुत्र श्री राजाराम भट्ट, संजय क्षेत्री पुत्र स्व. श्री वीरगंज क्षेत्री और रामप्रकाश नौटियाल पुत्र श्री घनश्याम।
राजभवन के इन भाग्यशाली कर्मचारियों की तरह होमगार्ड तथा उपनल के अन्य आउटसोर्स कर्मचारियों की शायद किस्मत नहीं थी, इसलिए ये सभी आज भी जीवन बीमा, पेंशन, चिकित्सा सुविधा जैसे सामाजिक लाभों के बगैर १५-१६ सालों से सरकार के द्वारा अपना शोषण कराने को मजबूर हैं।
वर्ष २००४ से २००६ के बीच अपर निजी सचिव, कंप्यूटर ऑपरेटर और अनुसेवक के पदों पर सैकड़ों तदर्थ नियुक्तियां प्रदान की गई थी। वर्ष २०१४-१५ में इन्हें भी नियमित नियुक्ति प्रदान कर दी गई। इनमें से कई कर्मचारी अन्य सेवाओं के लिए तय उम्र सीमा की दहलीज को पार कर गए हैं। अब इनके अन्यत्र नौकरी तलाशने की संभावनाएं भी क्षीण हो गई हैं। अब तक कई बार अनुरोध के बावजूद भी यह मामला सचिवालय प्रशासन विभाग मंत्रिमंडल की बैठक तक में प्रस्तुत नहीं कर सका है। इनसे पूर्व समायोजित हो चुके कार्मिकों को कई बार शिथिलीकरण का लाभ भी दिया गया है।
फरवरी २०१६ में दो दर्जन से अधिक विधायकों ने विगत १५ वर्षों से सचिवालय में सेवाएं दे रहे इन कर्मचारियों को समायोजित करने का अनुरोध मुख्यमंत्री से किया था, किंतु महानुभावों का यह आदेश भी सचिवालय की फाइलों में कहीं गुम हो गया है। मुख्य सचिव ने कई बार सचिवालय प्रशासन को तत्काल कार्यवाही के लिए भी निर्देशित किया, किंतु यह मसला अब भी जस का तस है।
वर्ष २०१५ में इन कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री हरीश रावत से अनुरोध किया था कि ३१ दिसंबर २००५ से पूर्व के संबद्ध कर्मचारियों को सचिवालय में समायोजित कर दिया जाए। अपने अनुरोध पत्र में इन कर्मचारियों ने निवेदन किया था कि संविलयन नियमावली २००८ को संशोधित कर उन्हें समायोजित कर दिया जाए। इस पर मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को आगामी कैबिनेट बैठक में नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे, किंतु कैबिनेट बैठक तो क्या, यह प्रस्ताव विचलन के माध्यम से भी नहीं लाया जा सका। लगभग सभी कर्मचारियों के समायोजन के बाद बचे ये लगभग एक दर्जन कर्मचारी खुद को हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं।
फिलहाल जिम्मेदार अफसरों को इस गौण मसले पर ध्यान देने की फुरसत नहीं है।

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