आरंभ से विवादों मे रहा वरुणावत पर्वत उपचार एक बार फिर सिंचाई विभाग के काम से हाथ खींच लेने के बाद से चर्चा मे है। चर्चा का कारण लगातार टपकती सुरंग है । गौरतलब है कि सुरंग के निर्माण मे करीब 7 करोड़ तो इस पर प्लास्टर करने मे 13 करोड़ खर्च किए गए थे । 20 करोड़ खर्च करने के बाद भी सुरंग का लगातार रिसना पहले
tambakhani sunrang
जानकरो की मानें तो किसी भी सुरंग के निर्माण के दौरान ये देखना बेहद जरूरी होता है कि सुरंग के आरसीसी वाले हिस्से से मिट्टी का कवर सुरंग के व्यास से कम से कम 5-6 गुना हो। तांबाखानी सुरंग का व्यास 9 मीटर है। इस लिहाज से सुरंग के ऊपर करीब 50 मीटर का मिट्टी का कुसन होना बेहद जरूरी था। जबकि सुरंग के ऊपर खोखला हिस्सा इसके निर्माण के दौरान ही नजर मे आ गया था। किन्तु उस वक्त उसे भरकर छुपा दिया गया, जो सुरंग के निर्माण के बाद पहाड़ी के ऊपर बरसात के पानी के लीकेज के रूप मे सामने आया। अब तांबाखानी सुरंग के ऊपर से ही इस नाले का उपचार होना है। सूत्रों की माने तो शासन मे प्रमुख सचिव के सामने सिंचाई विभाग के बड़े अधिकारियों के सुझाव को दर किनार करते हुए टीएचडीसी की तकनीकी को ही ज्यादा महत्व दिया गया। जिसके बाद सिंचाई विभाग ने उपचार से अपने हाथ वापस खींच लिए। अब लोक निर्माण विभाग को सिंचाई विभाग के बदले उपचार से जोड़ा गया है। जो बेमन से इसमे काम कर रहा है। दरअसल नालों के उपचार का काम कभी पीड्ल्यूडी ने किया ही नहीं। इसे सिंचाई विभाग ने ही अंजाम दिया है। जबकि सिंचाई विभाग खुद को प्रदेश की ऊर्जा देने वाले डैम के निर्माण की मुख्य कड़ी मानता है और टीएचडीसी अथवा जल विद्धुत निगम का निर्माण बहुत बाद मे हुआ। उसके जन्म से पूर्व सभी डैम सिंचाई विभाग ने ही बनाए है।
सिंचाई विभाग निर्माण खंड उत्तरकाशी के अधिशासी अभियंता पीएस पँवार ने उपचार से विभाग के हटने की पुष्टि की है। हकीकत कुछ भी हो उत्तरकाशी के लोग इस बात से चिंतित है कि खुद को तकनीकी रूप से बेहतर सिद्ध करने के चक्कर मे उपचार मे एक बार फिर से देर न हो जाय!