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पर्वतारोही  से साधू बने स्वामी सुंदरानन्द ने बनाई गंगोत्री मे विश्व स्तरीय आर्ट गैलरी

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साधू की नजर से गंगोत्री ग्लेशियर मे 60 वर्षो का बदलाव एक क्लिक मे
जल ही जीवन है को समर्पित स्वामी का जीवन 
गंगा, हिमालय और गुरु ऋण से मुक्त होने के लिए गंगोत्री मे बनाई आर्ट गैलरी 
दो लाख से अधिक फोटो डिजिटल तकनीकी से बढाएंगे पर्यावरणीय  जागरुकता 
गिरीश गैरोला
वर्ष 1948 से पूर्व एक पर्वतारोही दल के साथ हिमालय देखने की उत्सुकता के साथ गंगोत्री क्षेत्र मे पहुंचा एक नौजवान हिमालय की  सुंदरता पर ऐसा मस्त हुआ कि सदा के लिए गंगा का ही होकर रह गया।
स्वामी सुंदरानन्द ने अपनी विदेशी शिष्या के सहयोग से गंगोत्री मे अपने पूरे जीवन के हिमालयी ग्लेशियर के बदलाव को समेट कर उसे आर्ट गैलरी का रूप दे दिया है।
 अपने गुरु को समर्पित इस आर्ट गैलरी का स्वरूप भी गुरु कि कुटिया से मिलता जुलता ही रखा गया है।
“साधू की नजर से हिमालय” नाम की पुस्तक प्रकाशन के बाद चर्चा मे आए स्वामी सुंदरानन्द पर्यावरण को लेकर बेहद चिंतित हैं।
 अपने 60 वर्षो के अध्ययन के बाद इंसानी लोभ से चिंतित स्वामी सुंदरनन्द कहते हैं कि आने वाले 20 वर्षों मे गंगा विलुप्त हो जाएगी और गंगोत्री मे भी गंदे नाले के रूप मे बहेगी। वह अपने इस प्रयास को चींटी की तरह मानते हैं, ताकि बरबादी के इस समय अंतराल को कुछ तो और बढ़ाया जा सके!
गंगोत्री ग्लेशियर और उच्च हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण मे बीते 60 वर्षो मे हुए बदलाव को अब आप एक क्लिक मे देख सकते हैं। यह तस्वीरें अपने जीवन के 60 से अधिक वर्षो को हिमालय को समर्पित कर चुके एक साधू द्वारा खींची गयी हैं।·
   दो लाख से अधिक इन तस्वीरों  के लिए उन्होने गंगोत्री मे एक आर्ट गैलरी का निर्माण किया है।  90 वर्षीय स्वामी सुंदरानन्द बताते हैं कि 72 फीट ऊंची और 12 हजार वर्गफुट मे बनी इस विश्व स्तरीय गैलरी मे सभी तस्वीरों को विषयवार तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
पाँच  मंज़िला भवन की तीन मंजिल प्रदर्शनी के लिए है,जबकि चौथी मंजिल मे गेस्ट रूम और पाँचवी मंजिल मे योगशाला बनी है। भूतल के 6 कमरों मे दो ऑफिस सहित एक पाकशाला ,परिचर्चा और अभ्यास कक्ष है। भवन के प्रवेश द्वार को पहाड़ी शैली मे बनाया गया है। स्वामी ने बताया कि यह आर्ट गैलरी हिमालय की संस्कृति और जैव विविधतता की धरोहर है।
इस परिसर मे स्टील फ्रेम के पाँच मंज़िला ध्यान केंद्र का भी निर्माण किया जा रहा है। इस पिरामिड नुमा भवन मे एक साथ 100 साधक ध्यान कर सकेंगे। आर्ट गैलरी का अर्थ समझाते हुए स्वामी सुंदरानन्द कहते हैं – सर्वोच्च सौन्दर्य का नाम ही कला है ,और  प्रकृति के प्रति आपके जीवन के अनुभव आपके हृदय और मस्तिस्क से निकल कर सीधे बाण की तरह  सामने वाले के दिल को छू जाये उसे कला दीर्घा अथवा आर्ट गैलरी कहते हैं।
आपकी दृष्टि सीमित न होकर इतनी दूर तक होनी चाहिए कि मनुष्य संसार की माया मे न फंस सके।उन्होने कहा कि प्रकृति अनादि काल से अखंड रूप से मौन उपदेश दे रही है, उन शब्दों को ग्रहण करना ही साधक का काम है। अपने जीवन के संस्मरण सुनाते  हुए स्वामी सुंदरानन्द कहते हैं कि कैसे एक पर्वतारोहण टीम का हिस्सा बनकर हिमालय पर्वत के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच कर जो अनुभव अपनी  खुली आंखों से प्रकृति के सूर्योदय, सूर्यास्त और मध्यान्हकाल के रूप मे हुए, बस उसे ही दुनिया को  आर्ट गैलरी से समझाने का प्रयास मात्र है।
 किन्तु इसके  लिए व्यक्ति को भी सुपात्र बनना होगा यहां तक कि अपने प्राणों को भी हथेली पर रखने की क्षमता विकसित करनी होगी तभी प्रकृति के उस आनंद को प्राप्त  किया जा सकता है।
अपने गुरदेव को याद करते हुए स्वामी कहते हैं कि त्याग के बिना कभी भी प्राप्ति नहीं हो सकती है।आज से वर्षो पूर्व उनके गुरुदेव जब हिमालय की इन कन्दराओं मे आए थे, तब वे चाहते तो यहां महलनुमा आश्रम खड़ा कर सकते थे, किन्तु उन्होने ऐसा नहीं किया।
 आश्रम बनाकर माया-मोह की दुनिया मे वे वापस नहीं लौटना चाहते थे, इसलिए अपने 60 वर्षो के अनुभव दुनिया को दिखाने के लिए आर्ट गैलरी का निर्माण कराया, किन्तु खुद वह गुरुदेव की कुटिया मे ही निवास  करेंगे।
भरी बर्फवारी के चलते महज 6 महीनों के लिए खुलने वाली गंगोत्री मे आर्ट गैलरी खोलने के पीछे कारण बताते हुए स्वामी कहते हैं कि गंगा ,हिमालय और गुरुदेव के ऋण से उऋण होने का उनका ये एक प्रयास मात्र है।
प्रकृति के अनुरूप माहौल मे बनी आर्ट गैलरी के पास पहाड़ों के बीच गंगा को स्वामी ब्रह्मा के कमंडल मे गंगा से तुलना करते  हुए कहते हैं कि गंगोतर शुद्ध शब्द है जो बाद मे गंगोत्री बन गया। गंगा जहां से उत्तरवाहिनी हुई वहां सूर्य कुण्ड और गौरी कुंड के पास ये आर्ट गैलरी अनंत आकास  मे मौन रूप से अखंड-अनंत शब्दों को मौन रूप से साधकों को ग्रहण करने मे मददगार साबित होगी।
स्वामी बोले गैलरी मे 1956 से अब तक के सभी हिमालयी  बदलाव  दिखेंगे जिसमे गंगोत्री पहले कंहा थी? गौमुख कहा था ? मान सिंह ने कब गंगोत्री मंदिर का  निर्माण कराया और अमर सिंह ने कब इसमे परिवर्तन किया ,सब एक चल चित्र की  भांति सरल भाषा मे लोगों को दिखाया जाएगा।
आर्ट गैलरी मे कितनी लागत लगी इस पर स्वामी कहते हैं कि उन्होने  किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया है। वे तो जैसे खाली हाथ आए हैं वैसे ही खाली हाथ वापस जाएंगे किन्तु श्रद्धालु जो निर्माण  कर रहे हैं उस पर  कितना धन आया कितना  लगा इसके बार मे उन्हे कोई जानकारी नहीं है।
अपनी नौजवानी के समय को याद करते हुए स्वामी बताते हैं कि भोजवासा  के पास ही उस वक्त गौमुख हुआ करता था और यंहा  से साढ़े तीन किमी दूर मेरु और रक्त वन एक दूसरे से  लगे हुए थे और वहां  एक किलोमीटर मोटा ग्लेशियर था जो अब मात्र दो मीटर का रह गया है।
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