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प्राथमिक की मान्यता पर जूनियर क्रिश्चयन स्कूल। बच्चों का साल खराब

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नीरज उत्तराखंडी
 उत्तराखंड के पर्वतीय कस्बों मे भी पब्लिक स्कूलों की मनमानी व शिक्षा विभाग की लापरवाही तथा मिलीभगत से अभिभावक खासे परेशान हैं।
 कुछ पब्लिक स्कूल प्राथमिक विद्यालय की मान्यता पर उच्च प्राथमिक तथा जूनियर की मान्यता पर हाई स्कूल की कक्षाएं संचालित कर रहे हैं।
हाल ही में उत्तरकाशी जिले के पुरोला नगर पंचायत में
 क्षेत्र में संचालित विनयार्ड पब्लिक स्कूल में छात्र को टीसी न मिलने पर छात्र का भविष्य चौपट करने का मामला प्रकाश में आया। जिसने स्कूल की मान्यता की सारी पोल खोल कर रख दी।
हुआ यूँ कि विनयार्ड पब्लिक स्कूल  में कक्षा 8की परीक्षा पास कर जब नवीं कक्षा में प्रवेश के लिए देहरादून के विद्यालय में गया तो उसे टीसी की जरूरत पड़ी ।
छात्र की टीसी के लिए जब उसके पिता भगत राम क्षेत्री विद्यालय प्रशासन के पास गया तो उसे टीसी नहीं मिली और टाल-मटोल कर दुबारा आने को कहा।  छात्र के अभिभावक ने टीसी के लिए स्कूल के कई चक्कर काटे, लेकिन हर बार उसे कोई बहाना बना कर टरकाते रहे। समय पर टीसी न मिलने पर छात्र का कक्षा 9 में प्रवेश  नहीं हो सका तथा विद्यालय प्रशासन व शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते एक साल शिक्षण कार्य अवरूद्ध हो गया है।
पीड़ित अभिभावक ने इस बीच शिक्षा विभाग से मामले की शिकायत की लेकिन विभाग के कानों में जूं नहीं रेंगी।
नवक्रान्ति संगठन ने जब इस मामले को उठाया तो शिक्षा विभाग व स्कूल प्रशासन कुंभकर्णी नींद से जागा और पीड़ित अभिभावक से सम्पर्क किया और फिर एक बार छात्र की टीसी देने का आश्वासन दिया।
लेकिन फिर भी टीसी न मिलने से परेशान अभिभावक भगत राम क्षेत्री ने 28अक्टूबर को उत्तरकाशी जाकर जिला अधिकारी से मामले की शिकायत की।
     डीएम ने मामले का संज्ञान लेते हुए एक सप्ताह के भीतर उपजिला अधिकारी को मामले की जांच करने के आदेश दिये। लेकिन इसके बावजूद पीड़ित अभिभावक को टीसी नहीं मिल पाई है। जिला अधिकारी के आदेश को ठंडे बस्ते में डालता देख अभिभावक ने न्यायालय का दरवाजा खटकाने का मन बना लिया है और नगर क्षेत्र  के एक नामी वकील से  संपर्क  किया है।
डिप्टी शिक्षा अधिकारी डीपी पांडे कहते हैं कि मामला सही है और यहां यह आम बात है कि क्षेत्र के कई  स्कूल बिना मान्यता के चल रहे हैं। वह कहते हैं कि मामले की जांच डीएम को सौंप दी गई है। सवाल यह है कि जब अधिकांश विद्यालय ऐसे हैं तो पांडे जी जैसे अधिकारी चुप क्यों हैं? क्या वे सिर्फ कुर्सी तोड़ने की तनख्वाह ले रहे हैं!
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